मुंबई। आयकर (आई-टी) विभाग ने सैकड़ों पुराने मूल्यांकन मामलों को दोबारा खोलना शुरू कर दिया है, जिसमें उन व्यवसायों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने फर्जी या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए खरीद बिलों का सहारा लेकर लाभ को दबाया और कर देयता घटाई। सूत्रों के अनुसार, कुछ मामलों में अधिकारियों ने पिछले पांच वर्षों तक के मामलों को भी खोला है, जहाँ कर चोरी के विश्वसनीय प्रमाण सामने आए हैं।
व्यापार, इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण जैसे क्षेत्रों के कई व्यवसायों पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी चालान का इस्तेमाल किया, जिन्हें अक्सर "एंट्री ऑपरेटर" कहा जाता है—ऐसे आपूर्तिकर्ता जो वास्तव में अस्तित्व में नहीं होते—ताकि खर्च को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा सके और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अंतर्गत अनुचित रूप से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा किया जा सके।
"हालांकि इन टैक्स रिटर्न्स को पहले बिना किसी आपत्ति या सवाल के स्वीकार कर लिया गया था, अब जीएसटी अधिकारियों द्वारा प्राप्त नए साक्ष्यों के आधार पर इन्हें फिर से खोला जा रहा है, जो फर्जी खरीद या जाली बिलों के प्रयोग की ओर संकेत करते हैं," एक सूत्र ने बताया।
सूत्रों के अनुसार, टैक्स अधिकारी डेटा एनालिटिक्स और जीएसटी व आयकर रिटर्न्स के बीच क्रॉस-वैरिफिकेशन पर अत्यधिक निर्भर कर रहे हैं ताकि इस तरह की विसंगतियों का पता लगाया जा सके।
ये मामले आयकर अधिनियम की धारा 147 के तहत दोबारा खोले जा रहे हैं, जो विभाग को यह अधिकार देती है कि यदि उसे लगता है कि कर योग्य आय का मूल्यांकन से बचाव हुआ है, तो वह आय का पुनर्मूल्यांकन कर सकता है।
इस अधिनियम के अनुसार, कर विभाग सामान्य मामलों में संबंधित वित्तीय वर्ष की समाप्ति के तीन वर्षों तक के मामलों को दोबारा खोल सकता है, और यदि 50 लाख से अधिक की आय छुपाई गई हो तथा वह किसी संपत्ति, व्यय या बहीखाते में प्रविष्टि से जुड़ी हो, तो इसे पाँच वर्षों तक खोला जा सकता है। यदि कोई करदाता अपनी खरीद की वास्तविकता को विश्वसनीय दस्तावेजों से साबित करने में असफल रहता है, तो उस खर्च को अव्याख्यायित माना जाता है और उसके अनुसार कर सहित दंड लगाया जा सकता है।