6.7 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी मामले में जूलर को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

Pratahkal    28-Feb-2025
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मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने नासिक स्थित विजया बैंक से जुड़े हाई-प्रोफाइल 6.7 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी मामले में चोरी के सोने के बार प्राप्त करने के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 411 के तहत दोषी ठहराए गए एक जूलर को बरी कर दिया है।
 
अदालत ने कहा कि सिर्फ चोरी की संपत्ति का कब्जा होना दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकता, जब तक यह साबित न हो कि आरोपी को यह जानकारी थी या उसे यह विश्वास करने का कारण था कि संपत्ति चोरी की गई थी।
चूंकि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि जूलर से जब्त किए गए सोने के बार धोखाधड़ी से प्राप्त संपत्ति से संबंधित थे, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए जब्त की गई संपत्ति वापस लौटाने का आदेश दिया। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने की। यह मामला 1997 में फर्जी टेलीग्राफिक ट्रांसफर (टीटी) के जरिए की गई वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़ा था।
 
बैंक में मेसर्स ग्लोब इंटरनैशनल नामक एक फर्जी खाते के माध्यम से 6.7 करोड़ रुपए की जाली टेलीग्राफिक ट्रांसफर राशि जमा की गई थी, जिसे बाद में फर्जी डिमांड ड्राफ्ट के जरिए व्यवस्थित रूप से निकाला गया। निकाली गई धनराशि कथित रूप से सोने के बार खरीदने में इस्तेमाल की गई थी, जिन्हें बाद में कई लोगों के पास ट्रेस किया गया, जिनमें उक्त जूलरी कारोबारी भी शामिल था। सीबीआई के नेतृत्व में की गई जांच के बाद जूलर सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
निचली अदालत ने जूलर को चोरी की संपत्ति प्राप्त करने का दोषी ठहराते हुए जब्त किए गए सोने के बार जूलर को वापस लौटाने का आदेश दिया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए सोने के बार लौटाने के आदेश को पलट दिया और राज्य सरकार को संपत्ति को जब्त करने का निर्देश दिया।
 
हाईकोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए, न्यायमूर्ति मिश्रा द्वारा लिखित फैसले में कहा गया कि जब्त किए गए सोने के बार को धोखाधड़ी से प्राप्त संपत्ति से जोड़ने के लिए ठोस सबूतों के अभाव में ज्वेलर की दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता।