राजस्थान में इसलिए हारी भाजपा

आपसी गुटबाजी और जातियों की नाराजगी ने बिगाड़ा खेल

Pratahkal    06-Jun-2024
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हरिसिंह राजपुरोहित जयपुर। लोकसभा 2024 (Loksabha Election 2024) के इस चुनाव में राजस्थान (Rajasthan) के नतीजों में भाजपा (BJP) को 14 बनाम 11 के आंकड़े ने सत्तारूढ़ भाजपा और उसके समर्थकों को बहुत बेचैन कर दिया है। भाजपा के किसी नेता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि राजस्थान के नतीजे इस तरह के रहने वाले हैं।
 
ख़ासकर 2014 और 2019 में सभी 25 लोकसभा सीटों पर परचम फहराने वाली भाजपा के लिए इन नतीजों को पचा पाना आसान नहीं है। चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से पहले सभी लोकसभा क्षेत्रों में से ऐसे संकेत आ रहे थे कि मानो मतदाताओं का बड़ा वर्ग कह रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और भाजपा से कोई प्यारा नहीं है। लेकिन नतीजे आए तो ऐसा लगा कि कुछ ही दिन में खंडित जनादेश देने वाले मतदाता ने कह दिया कि तेरा साथ इतना भी गवारा नहीं है।
 
राजस्थान की सियासत के साहिल पर जिस तरह भाजपा की कश्तियां एक-एक कर डूबी हैं और जिस तरह कांग्रेस (Congress) और उसके सहयोगी जीते हैं, उससे प्रदेश में हैरानियां तैर रही हैं। इससे प्रदेश नेतृत्व में एक तरह की छुपी हुई घबराहट सी है। इसकी वजह भी है। यह चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) के नए कंधों पर आकर टिक गया। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी का अपने चुनाव क्षेत्र चितौड़गढ़ के अलावा दूसरी सीटो पर ध्यान दे पाना मुश्किल था। अब भाजपा के कुछ दिग्गज विधायकों का खेल शुरू हुआ। बस एक ही मकसद अपने लोग जीतें, बाकी प्रत्याशियों के साथ भितरघात पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार धौलपुर करौली, भरतपुर, सीकर, झुंझुनं चूरू, नागौर, टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, बाड़मेर, बांसवाड़ा सीट पर अपने तमाम वजीरों को भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ ही सक्रिय कर दिया गया। यह भितरघात भाजपा के लिए पुराना प्रदर्शन दोहराने में बाधा बन गया।
 
कांग्रेस इस मामले में कुछ हद तक भाजपा से बेहतर रही। हालांकि भाजपा से ज्यादा गुटबाजी और भितरघात कांग्रेस के बड़े नेताओं में कायम रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे चुनाव के दौरान अपने बेटे वैभव गहलोत को जिताने के प्रयास में जालोर से ज्यादा बाहर नहीं निकल सके। ऐसे में सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा (Govind Singh Dotasara) ने चुनाव की कमान संभाल ली। दोनों की जोड़ी ने पूरे चुनाव में कांग्रेस का माहौल बनाए रखा। कांग्रेस का अन्य दलों से गठबंधन के साथ एकजुटता से लड़ने का फार्मूला भी सफल रहा।
 
उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस ने पलटी बाजी
 
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में शानदार प्रदर्शन किया। उत्तरी राजस्थान के शेखावाटी की चूरू, झुंझुनं, सीकर और गठबंधन में नागौर लोकसभा सीट पर बाजी मारी, वहीं पूर्वी राजस्थान की दौसा, भरतपुर, धौलपुर करौली और टॉक सवाई माधोपुर सीट जीती। वहीं पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान में एक-एक सीट जीतने में कामयाबी मिली है।
 
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला फिर जीतने के साथ संसद पहुंच गए हैं। चार केन्द्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को बाड़मेर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा। शेखावाटी में सीपीएम से गठबंधन और भाजपा के बागी राहुल कस्वां को टिकट दिलाने में डोटासरा ने अहम भूमिका निभाई। इसी के दम शेखावटी से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। उधर, पायलट ने अपने करीबी ब्रजेन्द्र ओला, भजनलाल जाटव, मुरारीलाल मीना, हरीश मीना, संजना जाटव और कुलदीप इंदौरा को न केवल टिकट दिलाए बल्कि उनकी जीत में भी अहम भूमिका निभाई।
 
बाडमेर, नागौर और चुरु से बदले समीकरण
 
प्रदेश में पूरे चुनाव में ये तीनों सीट राजपूत और जाटों का केंद्र बिंदु बनी। बाडमेर में रविंद्र सिंह भाटी के बागी ताल ठोकने के बाद राजपूत भाजपा के खिलाफ हो गए।
 
जलती हुई आग में गुजरात के भाजपा नेता पुरूषोतम रूपाला के बयान ने घी का काम किया। रूपाला के बयान से पूरा राजपूत समाज भड़क गया और सड़क पर उतर आया। इसी तरह चुरु से सीटिंग सांसद राहुल कसवा का टिकट काटकर भाजपा ने जाटों से सीधा पंगा ले लिया।
 
रही सही कसर नागौर से उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल से भाजपा ने इसबार गठबंधन तोड़ कर पूरी कर दी। बेनीवाल ने कांग्रेस को समर्थन देकर जाटों को लामबंद करने में सफल रहे कि भाजपा किसान और जाट विरोधी है। इस असंतोष का पूरा फायदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने उठाया और कांग्रेस को बड़ी सफलता दिलाने में सफल रहे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अनदेखी को भी कई राजनीतिक विश्लेषक भाजपा की इस दुर्गति का मुख्य कारण मान रहे है। जानकारों का कहना है कि वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) की जाट और राजपूत दोनों समाज पर अच्छी पकड़ है अगर उनके हाथ में पार्टी की कमान होती तो दोनों समाज इस तरह की बगावत पर नहीं उतरते। वसुंधरा की अनदेखी और चुनाव से ठीक पहले प्रदेश संगठन मंत्री चंदशेखर का हटाना। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया को हरियाणा भेजना। ऐसे में प्रदेश का भाजपा नेतृत्व प्रभावहीन हो गया। पूरा चुनाव केवल मोदी मैजिक के भरोसे पर लड़ा गया। कई ऐसे अनगिनत कारण है जिससे भाजपा को 10 साल बाद इतनी बड़ी हार मुंह देखना पड़ा है।