पायलट बनाम गहलोत : किसका पलड़ा रहा भारी

जालौर-सिरोही सीट पर क्यों हारे वैभव ?

Pratahkal    06-Jun-2024
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loksabha election 
 
जयपुर (कार्यालय संवाददाता)। राजस्थान (Rajasthan) में लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) के आए चौंकाने वाले परिणामों से जहां भाजपा (BJP) सदमे में है, वहीं कांग्रेस (Congress) खेमे में जीत का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच एक सवाल फिर खड़ा हो रहा है कि कांग्रेस की दस साल बाद शानदार वापसी के बावजूद पूर्व सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के बेटे वैभव गहलोत कैसे हार गए? हार भले ही वैभव की हुई हो लेकिन इससे प्रतिष्ठा अशोक गहलोत की जुड़ी हुई थी। वैभव की जालौर-सिरोही सीट से हार को लेकर एक बार फिर से गहलोत बनाम पायलट की पुरानी राजनीतिक अदावत की चर्चाएं तेज हो गई हैं। कांग्रेस ने जिन 8 सीटों पर जीत दर्ज की है उनमें से 5 चुने गए सांसद पायलट खेमे के हैं।
 
राजस्थान में इस बार लोकसभा चुनाव के कांग्रेस की ज्यादा उसके पक्ष में आए हैं। कांग्रेस ने यहां अपने बूते 8 और गठबंधन के साथ 3 सीटें जीती हैं। कांग्रेस और उसके गठबंधन इंडिया को यहां 25 में से कुल 11 सीटें मिली हैं। पूर्व में यहां कांग्रेस के नेता और राजनीतिक पंडित 7 से 9 सीटें मिलने का अनुमान जता रहे थे। एग्जिट पोल ने भी यहां कांग्रेस के लिए लगभग इतनी ही सीटों का अनुमान जताया था। लेकिन परिणाम कांग्रेस की उम्मीदों से बेहतर आया।
 
गहलोत के पास अमेठी की भी जिम्मेदारी भी थी
 
इस बार लोकसभा चुनावों में सचिन पायलट (Sachin Pilot) और अशोक गहलोत ने भी पूरा जोर लगाया। गहलोत के पास उत्तर प्रदेश की अमेठी की भी जिम्मेदारी थी। लेकिन इससे पहले राजस्थान में पहले और दूसरे चरण में मतदान पूरा हो चुका था। गहलोत समेत उनकी टीम के करीब 25 से ज्यादा बड़े नेता और कार्यकर्ता वहां कांग्रेस से छीनी गई सीट को वापस पाने के लिए रणनीति बनाने में जुटे थे। लेकिन इन चुनावों गहलोत के साथ राजस्थान में उनके बेटे की टीम के साथ 'खेला' हो गया। गहलोत ने खुद जालोर सिरोही सीट के लिए अतिरिक्त मेहनत की थी, लेकिन परिणाम उम्मीद के अनुरूप नहीं आए। इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं।
 
जालौर सिरोही में पायलट का है अच्छा खासा प्रभाव
 
जालौर-सिरोही में माली मतदाताओं के साथ राजपूत समुदाय के भी वोट अच्छी खासी संख्या में है। लेकिन पश्चिमी राजस्थान के इस इलाके में सचिन पायलट का भी प्रभाव कम नहीं है। उसके बावजूद पायलट वहां चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए।
 
पार्टी सूत्रों की मानें तो अंदरखाने की हकीकत यह है कि उन्हें वहां बुलाया नहीं गया और पायलट खुद भी वहां जाने से बचते रहे। जातीय समीकरण के अलावा चुनाव पूर्व हुए घटनाक्रमों के कारण पायलट समर्थक वहां वैभव से दूरी बनाए रहे। इसके कारण वहां पार्टी साफ तौर पर दो खेमों में बंटी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस यह सीट खो बैठी।
 
चुनाव पूर्व आई एक फोटो से ही बदलने लग गया था माहौल
 
हालांकि सचिन पायलट भी अन्य राज्यों चुनाव प्रचार के लिए गए थे लेकिन उन्होंने राजस्थान पर भी पूरा फोकस किया। पार्टी सूत्रों के मानें तो वैभव गहलोत (Vaibhav Gehlot) के चुनाव में पिछड़ने की शुरूआत उनके टिकट मिलने बाद सोशल मीडिया में आई एक फोटो के बाद ही शुरू हो गई थी। टिकट मिलने पर आभार जताने वाली फोटो से सचिन पायलट गायब थे। इससे वहां के पायलट समर्थक उनसे छिटक गए। दूसरे जालौर सिरोही में पार्टी संगठन की टॉप टू बॉटम टीम पायलट खेमे की मानी जाती है। तीसरे पायलट समर्थक एक युवा राजपूत नेता को अपने क्षेत्र से दूर जालौर-सिरोही जाकर दूसरे क्षेत्र में अनावश्यक 'पंचायती' करने के कथित मामले को लेकर पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।
 
पायलट समर्थकों ने बना ली थी दूरी
 
इसके है इशारों ही इशारों यह कह डाला कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। इससे पायलट समर्थकों ने चुनाव से लगभग दूरी बना ली थी। कुल मिलाकर बिना कुछ कहे और बिना कुछ किए ही जालौर सिरोही में ऐसा नैरेटिव सैट हुआ कि पूरा गणित वैभव के खिलाफ होता चला गया। बेशक गहलोत ने खुद इस सीट के लिए काफी प्रयास किए लेकिन इन तमाम कारणों से माहौल पक्ष में नहीं हो और परिणाम सबके सामने है।