विकसित भारत की दिशा में

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी "विकसित भारत" के जिस लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध हैं, उसे प्राप्त करने के लिए राजग गठबंधन के सभी दलों में एक प्रतिबद्ध भाव जगाना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। देखना यह है कि एक राष्ट्र के रूप में भारत एवं उसकी राजनीति आने वाले दिनों में किस दिशा में आगे बढ़ती है।

Pratahkal    11-Jun-2024
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Vikasit Bharat
 
बद्री नारायण - भारत के संसदीय चुनाव 2024 का परिणाम आ चुका है। एक बार फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसे सामान्यतः राजग कहा जाता है, ने बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली है। नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। भारतीय जनतांत्रिक इतिहास में यह दूसरी घटना है। इसके पूर्व भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था।
 
चुनाव परिणामों पर काफी समीक्षा हो चुकी है। अब तक शायद ही किसी के पास कुछ नया कहने के लिए बचा हो। लेकिन इतना तो तय है कि यह चुनाव अनेक आश्वर्यों का चुनाव रहा। पहला आश्चर्य तो यह कि जिन दक्षिण भारतीय राज्यों का दरवाजा भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक सफलता के लिए बंद था, या यों कहें कि जहां की जमीन भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के लिए माकूल नहीं मानी जाती थी, इस चुनाव परिणाम ने उन राज्यों, यथा केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना को भाजपा के लिए नई संभावनाओं का प्रदेश बना दिया है।
 
दूसरा आश्चर्य यह देखने में आया कि ओडिशा, जहां राजनीतिक विचारक बीजू जनता दल (बीजद) के नेता नवीन पटनायक के जादू को उनके जीवित रहने तक समाप्त होता नहीं देख रहे थे, वहां भाजपा ने अपनी महान सफलता दर्ज की। इसका मुख्य कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति ओडिशा की जनता में बढ़ता आकर्षण ही है। प्रधानमंत्री मोदी और ओडिशा के प्रभावी नेता धर्मेंद्र प्रधान ने पूरे चुनाव अभियान में 'उड़िया अस्मिता' के प्रश्न को एक 'लोकप्रिय जन प्रश्न' में बदल दिया। इस लोकप्रिय अभियान ने ओडिशा की राजनीति के पूरे परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया। इस चुनाव परिणाम ने यह भी बताया कि विकास का मोदी मॉडल, नवीन मॉडल पर प्रभावी रहा। ओडिशा के युवाओं में नए डिजिटल भारत के प्रति आकर्षण बढ़ा है।
 
तीसरा आश्चर्य यह रहा कि जहां उत्तर प्रदेश के आस-पास के हिंदी प्रदेशों, यथा मध्य प्रदेश, बिहार में भाजपा और राजग ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, वहीं उत्तर प्रदेश में इसका प्रदर्शन प्रभावी नहीं रहा।
 
'इंडिया' गठबंधन ने आरक्षण, संविधान इत्यादि के खतरे पर आधारित जो वृत्तांत तैयार किया, उसने उत्तर प्रदेश में जातीय गोलबंदी की जमीन तैयार की। कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि यह ऐसी जातीय गोलबंदी की राजनीति थी, जिसने पिछड़े- अति पिछड़े एवं दलितों के एक हिस्से को समाजवादी पार्टी या 'इंडिया' गठबंधन की तरह गोलबंद होने का आधार तैयार किया। ऐसे विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रकार की जातीय गोलबंदी ने ही उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के वृहत वृत्तांत को तोड़कर जातियों के अस्मितापरक वृत्तांत को शक्तिवान बनाया।
 
अब प्रश्न यह उठता है कि अगर ऐसा है, तो यह पैटर्न मंडल राजनीति से गहरे रूप से प्रभावित बिहार या उत्तर प्रदेश से सटे मध्य प्रदेश में क्यों सफल होता नहीं दिखाई पड़ा? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि बिहार में भाजपा और राजग गठबंधन के पास अनेक पिछड़े एवं दलित प्रभावी चेहरों का एक कोलाज मौजूद था, जिसमें नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी, जीतन राम मांझी, चिराग पासवान जैसे नेता शामिल हैं। नीतीश कुमार का गैर-यादव, पिछड़े समूहों, महादलित सामाजिक समूहों में अपना प्रभाव तो है ही, अगड़े वोटों के एक हिस्से पर भी उनका अच्छा असर है। वहीं जीतन राम मांझी के कारण मुसहर, जो बिहार में एक बड़ी 'महादलित जातीय समूह' है, राजग की तरफ बड़े पैमाने पर झुकी।
 
चिराग पासवान के कारण संख्या बल में बिहार की सबसे बड़ी दलित जाति दुसाध या पासवान की गोलबंदी राजग के पक्ष में हुई। इसलिए बिहार में 'इंडिया' गठबंधन के भयदोहन पर आधारित गोलबंदी के वृत्तांत
पिछड़ों एवं दलितों में प्रभावी नहीं हो सके।
 
मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन की कमजोरी, उसमें प्रभावी नेताओं का अभाव इत्यादि के कारण 'इंडिया' गठबंधन की जातीय अस्मिता आधारित गोलबंदी की राजनीति सफल नहीं हो सकी। वहीं दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश में भाजपा के पास पिछड़े एवं अति पिछड़े समूहों से जुड़े अनेक नेता मौजूद हैं। शिवराज सिंह चौहान, मोहन यादव, प्रह्लाद सिंह पटेल आदि अनेक पिछड़े, अति पिछड़े चेहरों ने वहां कांग्रेस एवं 'इंडिया' गठबंधन के पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) की राजनीति को इस चुनाव में कमजोर बना दिया।
 
यह ठीक है कि आगे आने वाले समय में हिंदी पट्टी की राजनीति भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण तो होगी ही, 'इंडिया' गठबंधन के लिए भी चुनौतियां कम नहीं होंगी। एक तरफ भाजपा को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा इत्यादि राज्यों में अपनी सांगठनिक एवं चुनावी रणनीति पर विचार कर उसे पुनर्नवा करना होगा। वहीं दूसरी तरफ 'इंडिया' गठबंधन से जुड़े राजनीतिक दलों के लिए भी उत्तर प्रदेश में अपने अर्जित प्रभाव को बचाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
 
गैर-यादव पिछड़े, अति पिछड़े एवं दलितों का जो हिस्सा उनकी तरफ झुका है, उन्हें अपने साथ जोड़े रखना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। राजग गठबंधन को उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी पट्टी के प्रदेशों में पिछड़े, अति पिछड़े एवं दलित समूहों में जमीन से जुड़े नेता एवं कार्यकर्ताओं की एक फौज तैयार करनी होगी, जो इन समूहों को पुनः अपनी तरफ ला सके। हिंदुत्व एवं विकास की राजनीति के साथ उसे अपने पक्ष में सामाजिक समूहों के गठबंधन को पुनर्गठित करना होगा।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'विकसित भारत' जिस लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध हैं, उसे प्राप्त के करने के लिए राजग गठबंधन के सभी दलों में एक प्रतिबद्ध भाव जगाना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। प्रधानमंत्री मोदी अपने चिर-परिचित संवाद शैली में राजग गठबंधन की सरकार को अपनी लक्ष्यों की प्राप्ति के दिशा में चला पाएंगे, ऐसा हम सबको विश्वास है। देखना यह है कि एक राष्ट्र के रूप में भारत एवं उसकी राजनीति आने वाले दिनों में किस दिशा में आगे बढ़ती है।