बारामती सीट पर सुले का अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा से मुकाबला होगा कड़ा

Pratahkal    03-May-2024
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मुंबई। तीन दशक से अधिक समय तक शरद पवार (Sharad Pawar) के परिवार का गढ़ रहा बारामती क्षेत्र (Baramati region) इस बार परिवार की ही जंग में फंसा दिखाई दे रहा है। न सिर्फ पूरा पवार परिवार इस चुनावी जंग का हिस्सा बन गया है, बल्कि बारामती के घर-घर में दो गुट बने दिख रहे हैं। 50-55 से ऊपर की उम्र के ज्यादातर बुजुर्ग शरद पवार और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले के साथ दिखाई दे रहे हैं, तो उससे नीचे के मतदाता अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के साथ।
 
शरद पवार द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (Nationalist Congress Party) (राकांपा) में पिछले वर्ष हुई बड़ी टूट के बाद करीब-करीब तीन चौथाई विधायक टूटकर उनके भतीजे अजीत पवार (Ajit Pawar) के साथ चले गए थे। तभी तय हो गया था कि शरद पवार का मजबूत गढ़ अब दरक चुका है। जिस बारामती संसदीय सीट पर अब तक शरद पवार के विरोधियों की दाल नहीं गली थी, वहां लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के पहले ही इस बार अजीत पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ाने के संकेत दे दिए थे। 15 वर्ष से इसी सीट से उनकी चचेरी बहन एवं शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले सांसद हैं, जबकि अजीत पवार इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बारामती विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। वह कहते हैं कि अब तक तो सुप्रिया सुले सिर्फ पर्चा भरने क्षेत्र में आती थीं, बाकी उन्हें चुनाव जिताने से लेकर पूरे संसदीय क्षेत्र में काम करने तक का जिम्मा मेरा होता था। काफी हद तक ये बात सही भी है। सुप्रिया सुले 2019 का लोकसभा चुनाव 1,55,774 मतों से जीती थीं। इसमें 1,30,000 से अधिक की बढ़त तो उन्हें अजीत पवार के बारामती विधानसभा क्षेत्र से ही मिली थी। इस बार भी बारामती की पड़ोसी इंदापुर विधानसभा सीट के विधायक दत्तात्रेय भरणे तो अजीत पवार के साथ हैं ही, इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली दो विधानसभा सीटें दौंड और खड़कवासला अजीत पवार की सहयोगी भाजपा के पास हैं। यानी सुप्रिया के सामने मुश्किलें बड़ी हैं। उनके समर्थक कहते हैं कि बारामती के लोगों की सहानुभूति बड़े साहब (शरद पवार) के साथ है। इसका लाभ सुप्रिया को मिलेगा, जबकि अजीत पवार के सहयोगी बारामती के विकास की कहानी बताते हुए कहते हैं कि ये सारा विकास कार्य अजीत पवार का किया हुआ है। उन्हें खुद एक-एक चीज को गढ़ते, उसका निरीक्षण करते बारामतीवासियों ने देखा है। वे जानते हैं कि सुनेत्रा पवार के चुनकर आने से विकास की गति और तेज होगी। इसलिए सहानुभूति यहां कोई मुद्दा नहीं है।
 
सुप्रिया सुले (Supriya Sule) अक्सर अपनी जनसभाओं में यह सवाल पूछकर अपनी भाभी सुनेत्रा पवार (Sunetra Pawar) को कमतर दिखाने की कोशिश करती हैं कि आपको संसद में आपकी आवाज उठाने वाला जनप्रतिनिधि चाहिए या प्रधानमंत्री के पीछे बैठकर मेजें थपथपानेवाला जनप्रतिनिधि । ऐसा कहकर वह सुनेत्रा को घरेलू महिला साबित करना चाहती हैं, लेकिन समर्थक इसका भी जवाब देते हुए कहते हैं कि सुनेत्रा अब तक राजनीतिक रूप से भले सक्रिय न रही हों, लेकिन सामाजिक गतिविधियां उनकी भी कम नहीं हैं। बारामती के टेक्सटाइल पार्क में काम करने वाली हजारों महिलाओं के संगठन से लेकर और भी कई महिला एवं सामाजिक संगठनों में उनकी सक्रियता, उनका मृदु स्वभाव उन्हें लाभ पहुंचाएगा। राजनीतिक समीकरणों की बात की जाए तो 1991 से इस सीट से पवार परिवार ही जीतता रहा है, लेकिन जमीनी कामकाज अजीत ही देखते रहे हैं। इसका लाभ भी उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार को मिलेगा।
जो रचेगा, वही बचेगा
 
बारामती क्षेत्र में धनगर समाज भी जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाता है। इस समाज के करीब 5 लाख मतदाता यहां हैं। 2014 में भाजपा इसी को ध्यान में रखते हुए अपने सहयोगी दल राष्ट्रीय समाज पक्ष के नेता महादेव जानकर को यहां से उतारा था। वह सिर्फ 69,719 मतों से सुप्रिया सुले से पीछे रह गए थे। इस बार जानकर को शरद पवार पड़ोस की माढा सीट से उतार कर बारामती के समीकरण साधना चाहते थे, लेकिन भाजपा (BJP) नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) एवं अजीत पवार ने उन्हें परभणी लोकसभा सीट देकर अपने पक्ष में कर लिया। परभणी में मतदान हो चुका है। अब जानकर बारामती में सुनेत्रा पवार के लिए काम कर रहे हैं। सुनेत्रा पवार को इसका लाभ भी अवश्य मिलेगा। कुल मिलाकर बारामती की लड़ाई रोचक हो चली है। ननद-भौजाई और चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में जो जीत कर इतिहास रचेगा, वही बचेगा।