Who against Modi? संजय गुप्त: चुनावों के लिए प्रचार और प्रत्याशियों के लोकसभा नामांकन का सिलसिला तेज होने के बीच यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि और | लोकप्रियता के चलते भाजपा बढ़त पर दिख रही है। लोकप्रियता के मामले में कोई अन्य नेता उनका मुकाबला करने की स्थिति में नहीं। इसी के चलते भाजपा प्रत्याशी यह मानकर चल रहे हैं कि मोदी की साख और छवि ही उनकी चुनावी नैया पार कराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएगी। यह स्थिति पिछले लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिली थी। कई भाजपा प्रत्याशी इसलिए आसानी से जीत गए, क्योंकि मतदाता मोदी को फिर से प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे । इसके चलते कई ऐसे भाजपा प्रत्याशी भी जीत गए, जिनके कार्यों से उनके क्षेत्र की जनता खुश नहीं थी। भाजपा नेता इसलिए तीसरी बार सत्ता में आने को लेकर आश्वस्त हैं, क्योंकि पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो अपने आप में मिसाल हैं। इसके चलते मोदी भारतीय राजनीति के ऐसे भरोसेमंद ब्रांड बन गए हैं, जिनके सामने अन्य कोई नहीं ठहरता । कोविड महामारी के बाद जहां अन्य अनेक देशों की अर्थव्यवस्थाएं सुस्ती का शिकार हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ रही है । इसी कारण विश्व भारत की ओर देख भी रहा और सराहना भी कर रहा है। आज प्रधानमंत्री मोदी की गिनती विश्व के प्रभावशाली नेताओं में होती है । भारतीय प्रधानमंत्री की एक सक्षम और विश्वसनीय नेता की जैसी छवि देश में है, वैसी ही विदेश में भी ।
एक ऐसे समय जब आम तौर पर सरकारों को अपने एक कार्यकाल के बाद ही सत्ता विरोधी रूझान का सामना करना पड़ता है, तब दस वर्षों के शासन के बाद भी मोदी सरकार के प्रति कोई विशेष सत्ता विरोधी रूझान नहीं दिख रहा है। जिन लोगों को यह भी यह मानते हैं उनका समाधान करने की लगता है कि अभी कुछ समस्याएं शेष हैं, वे सामर्थ्य मोदी सरकार में ही है। इसी भरोसे के कारण वे मोदी सरकार को एक और मौका देने को तैयार दिख रहे हैं। इस भरोसे का एक बड़ा कारण यह है कि मोदी सरकार ने विका और जनकल्याण की अपनी योजनाओं पर प्रभावी ढंग से अमल करके दिखाया है। देश में बुनियादी ढांचे का तेज गति से जो निर्माण हो रहा है, वह जनता को न केवल दिख रहा है, बल्कि वह उससे लाभान्वित भी हो रही है। मोदी सरकार के कुछ साहसिक फैसले भी भाजपा की एक बड़ी ताकत हैं, जैसे जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद- 370 की समाप्ति, पाकिस्तान पर सर्जिकल एवं एयर स्ट्राइक और अयोध्या में राम मंदिर का भव्य निर्माण मोदी ने यह साबित किया है कि वह जो कुछ कहते हैं, उसे करके दिखाते हैं। इसे वह 'मोदी की गारंटी' की संज्ञा देते हैं। हालांकि ऐसी गारंटी अन्य दलों के नेता भी दे रहे हैं, लेकिन जनता उन पर उतना भरोसा नहीं कर पा रही है, जितना मोदी पर कर रही है। भाजपा की एक अन्य सामर्थ्य उसका मजबूत वैचारिक आधार है । वह आधारित दल है और उसके कार्यकर्ता पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं। वैसे तो वाम दल भी काडर आधारित हैं, लेकिन उनकी विचारधारा अब अप्रासंगिक हो चुकी है। विडंबना यह है कि कांग्रेस वाम दलों की इसी अप्रासंगिक विचारधारा को अंगीकार करती दिख रही है।
हालांकि आइएनडीआइए के रूप में विपक्षी दलों ने एक हद तक अपने को एकजुट कर लिया है, लेकिन उनके मतभेद किसी से छिपे नहीं । इन मतभेदों के कारण कांग्रेस और सहयोगी दलों में अपेक्षित तालमेल नहीं हो पाया। वाम दल और तृणमूल कांग्रेस कहने को तो आ घटक हैं, लेकिन जहां केरल में वाम दल कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं, वहीं बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ रही है। विपक्ष के पास मोदी जैसा राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव रखने वाला भी कोई नेता नहीं । मोदी ने पहले संघ के प्रचारक के रूप में देश को जाना समझा, फिर भाजपा नेता के तौर पर कई राज्यों में संगठन का काम देखा-परखा। इसके बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासन चलाने का लंबा अनुभव प्राप्त किया । इसी अनुभव और विशेष रूप से विकास के गुजरात माडल ने उन्हें 2014 में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया। देश की जनता ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाकर उन पर जो भरोसा जताया वह उस पर खरे उतरे और इसी कारण 2019 में भाजपा को 2014 से भी अधिक सीटें मिलीं । निःसंदेह भारत में जनता सांसदों को चुनती है, न कि प्रधानमंत्री को, लेकिन पिछले कुछ समय से जनता एक तरह से प्र.म. पद के प्रत्याशी का चयन करने लगी है ठीक वैसे ही जैसे कुछ देशों में सीधे राष्ट्रपति चुना जाता है। विपक्ष की समस्या यह है कि उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि आखिर मोदी के मुकाबले कौन है ?
विपक्षी दल मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का तो आरोप लगाते हैं, लेकिन उन नेताओं का बचाव भी करते हैं, जिन पर भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई हो रही है। चुनावी बांड का मसला उठने और ईडी- सीबीआई आदि केंद्रीय एजेंसियों दुरूपयोग के विपक्ष के आरोपों के बाद भी भाजपा यह संदेश देने में सफल है कि जहां मोदी सरकार भ्रष्टाचार हटाओ पर जोर दे रही है, वहीं विपक्ष भ्रष्टाचार बचाओ की कोशिश में है । आइएनडीआइए की हाल की दिल्ली की रैली में विपक्षी दलों ने जिस तरह हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाया, उसे भाजपा ने भ्रष्टाचार बचाओ करार दिया । वह ऐसा करने में इसलिए सफल रही, क्योंकि जो भी नेता भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हुए हैं, उन्हें अदालतों से राहत नहीं मिल सकी है और यह एक तथ्य है कि अभी कुछ समय पहले तक कांग्रेस के नेता केजरीवाल को शराब घोटाले में लिप्त बता रहे थे । विपक्षी नेता भाजपा पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाते हैं, वे इसलिए असर नहीं करते कि मोदी की अपनी छवि पाक साफ है । उनकी साख भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेता की इसलिए भी बनी है, क्योंकि बीते दस वर्षों में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार का विपक्ष का कोई आरोप ठहर नहीं सका है।