जिस राह भारत आर्थिक महाशक्ति बनेगा

तमाम मुश्किलों के बावजूद भारत आज दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसमें शायद ही किसी को शक है कि यह जल्द तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

Pratahkal    03-Apr-2024
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India an economic powerhouse
 
आलोक जोशी। अमृतकाल के अंत में, यानी 15 अगस्त 2047 तक क्या भारत एक विकसित राष्ट्र (India an economic powerhouse) हो जाएगा? क्या हम चीन और अमेरिका को पछाड़ने या कम से कम बराबर की टक्कर देने में कामयाब होंगे? भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन का कहना है कि यदि भारत 8 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से बढ़ता रहे, तो सन् 2047 तक 55 ट्रिलियन, यानी 55 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुका होगा। सुब्रमण्यन इस वक्त अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर हैं। उनका कहना है कि इतने वक्त तक इस रफ्तार से तरक्की के लिए और बड़े सुधारों की जरूरत होगी। मगर दूसरी तरफ, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और मशहूर अर्थशास्त्री रघुराम राजन का कहना है कि 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की बात करना एकदम बकवास है। दोनों के पास अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि दोनों की बातें एक दूसरे से इतनी विपरीत क्यों नजर आ रही हैं?
 
सन् 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब देश की जीडीपी महज 2.70 लाख करोड़ रूपये थी। उस वक्त एक डॉलर की कीमत थी तीन रूपये तीस पैसे। यानी, देश की जीडीपी लगभग 82 हजार करोड़ डॉलर बनती थी। तब से अब तक यह पहुंची है लगभग 3.75 लाख करोड़ डॉलर यानी 3.75 ट्रिलियन तक। मतलब यह हुआ कि पिछले साढ़े सात दशक में भारत की औसत वृद्धि दर करीब 5.12 प्रतिशत सालाना रही हैं। इस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था इस दौरान लगभग साढ़े चार गुना हो चुकी है। मगर सवाल यह है कि जब भारत अपनी आजादी की शताब्दी मना रहा होगा, तब तक क्या वह एक विकसित देश बन चुका होगा?
 
तमाम मुश्किलों के बावजूद भारत आज दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसमें शायद ही किसी को शक है कि ब्रिटेन के बाद अब यह जल्दी जापान व जर्मनी को भी पीछे छोड़ने की तरफ बढ़ रहा है। इसके साथ ही, वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मगर क्या इतना काफी होगा? खासकर, यह देखते हुए कि भारत जिन देशों को पछाड़ेगा, उनकी सालाना वृद्धि दर अब मुश्किल से एक से दो फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। तो अब भारत का असली मुकाबला बचा है अमेरिका और चीन से अमेरिका की अर्थव्यवस्था का आकार अभी लगभग 28 लाख करोड़ डॉलर है। भारत से लगभग साढ़े सात गुना ज्यादा। उधर चीन की अर्थव्यवस्था का आकार करीब 18 लाख करोड़ डॉलर है। यहां यह याद रखना चाहिए कि जिस वक्त भारत आजाद हुआ, तब भारत और चीन आर्थिक पैमाने पर लगभग बराबरी के पायदान पर खड़े थे। दोनों ही गरीब देश थे और भारी आबादी के बोझ से दबे हुए थे। 1979 तक भारत और चीन की अर्थव्यवस्था करीब-करीब बराबर ही थी। मगर उसके बाद से चीन ने जो छलांग लगाई, वह आधुनिक विश्व इतिहास का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। 1979 से 2007 तक चीन की अर्थव्यवस्था सालाना 9.9 फीसदी की औसत रफ्तार से बढ़ती रही। दुनिया के किसी देश ने ऐसी विकास दर इतने समय तक हासिल नहीं की। यही नहीं, आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत से पहले, 1990 में भी भारत की प्रति व्यक्ति आय 367 डॉलर थी, जबकि चीन में 317 डॉलर। सन 2000 तक यही आंकड़ा भारत में 1,357 डॉलर और चीन में 4,450 डॉलर हो चुका था, जबकि 2022 में भारत के 2,388 डॉलर के मुकाबले चीन 12,720 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय पर पहुंच चुका था।
 
फिक्र की बात इसलिए भी है कि चीन ने भारत के मुकाबले तेज छलांग ऐसे दौर में लगाईं, जबकि उसकी आबादी भारत से ज्यादा थी। आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन चुका है। वैसे जब चीन तेज रफ्तार से बढ़ रहा था, तब भारत में क्या हो रहा था? भारत 1990 के दशक में 5.6 प्रतिशत की रफ्तार से, 2000 से 2009 तक 6.5 प्रतिशत और 2010 के दशक में 5.1 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा।
 
1980 से 2005 तक भारत की औसत वृद्धि दर 5.8 फीसदी रही। मगर इन्हीं तीन दशकों में चीन ने 11.7 प्रतिशत, 16.5 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत की जबर्दस्त वृद्धि दर हासिल की। यही वजह है कि जब भी आर्थिक विकास की बात होती है, तो भारत को चीन के बरअक्स ही खुद को देखना पड़ता है। यहां दो और बातों पर ध्यान देना जरूरी है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और चीन में लोकतंत्र का निशान नहीं मिलता। दूसरी बात, 1962, 65 और 71 की जंगों ने भी भारत के आर्थिक विकास के मोर्चे पर बड़े स्पीड ब्रेकर का काम किया। बहुत समय बाद बीते साल के आखिरी तीन महीनों में भारत की जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की बढ़त दर्ज हुई है और इसी की वजह से साल की बहुत 7.6 फीसदी होने का अनुमान है। इसी को देखकर सुब्रमण्यन शायद कृष्णमूर्ति आशावान हैं, हालांकि, उनका यह भी कहना है कि इसके लिए भारत में पिछले दस साल में जो आर्थिक सुधार हुए हैं, उनकी रफ्तार दिन दूनी रात चौगुनी के अंदाज में बानी पड़ेगी। ऐसा कैसे होगा? चीन में तो लोकतंत्र है नहीं, वहां कैसे होता है? भारत में भी एक वरिष्ठ अधिकारी 'टू मच डेमोक्रेसी' यानी 'लोकतंत्र की अति' का जिक्र कर चुके हैं।
 
मगर रघुराम राजन की चिंता लोकतंत्र नहीं है। उनका कहना है, भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का सपना गलत नहीं है, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए क्या करना है, यह साफ होना चाहिए। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी नौजवान आबादी हैं, अगर इसे सही रास्ता न मिला, तो मुश्किल हो सकती है। उनका कहना है कि सरकार की प्राथमिक व उच्च शिक्षा में सुधार का काम तेज करना चाहिए, न कि सेमीकंडक्टर जैसे बड़े प्रोजेक्ट पर ध्यान केंद्रित करना।
 
यह विवाद चलता रह सकता है, मगर इसमें शक नहीं है कि आने वाले ढाई-तीन दशकों में भारत का आर्थिक विकास तेज होगा और वह दुनिया की दो बड़ी आर्थिक शक्तियों में से एक होगा। दिग्गज अमेरिकी निवेशक जिम रोजर्स ने 2015 में एलान किया था कि वह भारतीय कंपनियों के अपने शेयर बेच रहे हैं, लेकिन अब उनका कहना है कि दुनिया में जो भी अमीर होना चाहता है, उसे भारत के शेयर बाजार पर ध्यान देना चाहिए।
 
जिम रोजर्स अकेले नहीं हैं। मगर रघुराम राजन की यह बात याद रखनी चाहिए कि हमें हवाबाजी में उलझ नहीं जाना चाहिए कि भारत आर्थिक महाशक्ति बनने वाला है, कि उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए. जो भारत को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी हैं।