केरल, कर्नाटक में कांटे की टक्कर

लोकसभा चुनाव 2019 में केरल में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा था, तो कर्नाटक में भाजपा का झंडा लहराया था, इस चुनाव में भी दोनों पार्टियां अपने उसी प्रदर्शन को दोहराना चाहती हैं।

Pratahkal    24-Apr-2024
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Elections in Kerala and Karantaka
 
एस. श्रीनिवासन - पहले चरण में तमिलनाडु (Tamilnadu) में मतदान (voting) संपन्न होने के साथ ही अब ध्यान पड़ोसी राज्य केरल और कर्नाटक (Kerala and Karnataka) पर केंद्रित हो गया है। इन दोनों राज्यों में 26 अप्रैल को मतदान होने जा रहा है। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर चुनाव होंगे, जबकि कर्नाटक की आधी यानी 14 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान होगा, बाकी 14 सीटों पर तीसरे चरण में वोट पड़ेंगे।
 
इन दोनों राज्यों के चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए दो वजहों से खास हैं: एक वाम-शासित केरल में सेंध लगाने के अपने लंबे समय से पोषित सपने को साकार करना और दूसरा कर्नाटक को फिर से हासिल करना, जहां उसने 2019 में 28 लोकसभा सीटों में से 25 हासिल की थीं। भाजपा के अपने दम पर 370 और गठबंधन के सहयोगियों के साथ 400 से ज्यादा सीटें जीतने के दावे को साकार करने के लिए विशेष रूप से कर्नाटक में उसका जीतना जरूरी है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का चुनाव अभियान मतदाताओं से इस वादे के साथ एक सोधी अपील है कि वह दोनों राज्यों को भ्रष्ट राजनेताओं से छुटकारा दिलाएंगे और राज्य को चमकदार 'न्यू इंडिया' में ले जाएंगे। दूसरी ओर, विपक्ष लोकतंत्र, संविधान और उसके संघीय ढांचे की रक्षा के अधिक बुनियादी मुद्दों पर भरोसा कर रहा है। उसकी यह भी शिकायत है कि केंद्रीय धन के हस्तांतरण में उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है। चूंकि दोनों राज्य अत्यधिक साक्षर हैं, इसलिए प्रधानमंत्री यहां के अपने सार्वजनिक संबोधनों में अधिक उदार हैं, मगर जब पिनाराई विजयन या सिद्धारमैया जैसे मुख्यमंत्रियोंपर सियासी हमले की बात आती हैं, तब प्रधानमंत्री पीछे नहीं रहते हैं।
 
साल 2019 की तुलना में 2024 में केरल की कहानी थोड़ी अलग है, क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ और सीप्र.म. के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा ज्यादातर सीटों पर आमने सामने हैं। एनडीए का नेतृत्व करने वाली भाजपा कम से कम कुछ चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की इच्छुक है। यूडीएफ और एलडीएफ 2019 में पार्टी कार्यकर्ताओं के स्तर पर एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे, लेकिन 2024 में वाम मोर्चे के शीर्ष नेता पिनाराई विजयन और राहुल गांधी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में कूद पड़े हैं।
 
यह बदलाव मुख्य रूप से वायनाड में राहुल गांधी के खिलाफ सीपीआई की प्रमुख नेता एनी राजा को मैदान में उतारने के वाम मोर्चे के फैसले के कारण है। केरल के वामपंथी राहुल गांधी पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह भाजपा से डरे हुए हैं और इसीलिए अपेक्षाकृत सुरक्षित केरल में छिपने की कोशिश कर रहे हैं। वाम नेताओं का प्रचार अभियान तब और अधिक तल्ख हो गया, जब पिनाराई ने राहुल गांधी को परोक्ष रूप से 'अमूल बेबी' कहना शुरू कर दिया। राहुल अभी तक पिनाराई के खिलाफ सीधे हमले से बचते रहे हैं, पर इस बार उन्होंने आरोप लगा दिया कि भ्रष्टाचार की शिकायत के बावजूद नरेंद्र मोदी ने पिनाराई के खिलाफ ईडी को केरल नहीं भेजा है, जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भेजा है। पिनाराई ने भी इस पर पलटवार करते हुए कहा कि राजनीतिक कैद उनके लिए नई बात नहीं है, यहां तक कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया था।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने भी जले पर नमक छिड़कते हुए कहा है कि कांग्रेस के उत्तराधिकारी जल्द ही वायनाड से भी भाग खड़े होंगे, जैसे उन्होंने अमेठी से किया था। उन्होंने आश्चर्य जताया कि कोई भी 'इंडिया ब्लॉक' के उन घटकों को चुनने के बारे में कैसे सोच सकता है, जो जनता के बीच ही इतने खुले तौर पर लड़ रहे हैं।
 
बहरहाल, कांग्रेस और वामपंथियों के बीच खींचतान को समझा जा सकता है। वाम मोर्चा विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अपने विजय अभियान को जारी रखना चाहता है, जबकि कांग्रेस साल साल 2019 के प्रदर्शन को दोहराना चाहती है। कांग्रेस ने 2019 में केरल की 20 में से 19 लोकसभा सीटें जीती थीं। हालांकि, कांग्रेस और वाम मोर्चा में से कोई नहीं चाहता कि केरल में भाजपा के पांव जमें। देखना है कि उनकी यह रणनीति सफल होती या नहीं। केरल में भाजपा की रणनीति तिरूवनंतपुरम और त्रिशूर जैसी कुछ सीटों पर केंद्रित है, जहां उसे उम्मीद है। इसने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को कांग्रेस प्रत्याशी शशि थरूर के खिलाफ और अभिनेता सुरेश गोपी को कांग्रेस के सुरेंद्रन के खिलाफ मैदान में उतारा है।
 
जहां तक कर्नाटक की बात है, तो भाजपा वहां 2019 के अपने प्रदर्शन को दोहराना चाहती है, लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में उसे बडी हार का सामना करना पड़ा है। वैसे, येदियुरप्पा का पुनर्वास कर दिया गया है और उनके बेटे को राज्य भाजपा का प्रमुख नियुक्त किया गया है और साथ ही पार्टी ने जद (एस) ओर, के साथ गठबंधन भी किया है। दूसरी कर्नाटक में कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो सत्तारूढ़ कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रही हैं। एक, मुसलमानों ने, जो आबादी का 15 प्रतिशत हिस्सा हैं, धर्मनिरपेक्ष दल को बोट देने का मन बनाया है। एक मत के अनुसार, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले कुल वोटों में से लगभग 30 प्रतिशत वोट मुसलमानों के थे। दूसरी अहम बात, बड़े पैमाने पर राज्य के दलित भी, जो 18 प्रतिशत हैं, कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं।
 
लिंगायत प्रमुख रूप से कट्टर भाजपा समर्थक रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस समुदाय को आकर्षित करने के लिए प्रयास किए हैं। एक अन्य प्रमुख जाति वोक्कालिगा देवेगौड़ा का समर्थन कर रही है, जो उनके सबसे बड़े नेता हैं। मगर उप-मुख्यमंत्री डीके शिव कुमार भी वोक्कालिगा नेता हैं, देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना को हराने के लिए मैसूरू में जोरदार प्रचार कर रहे हैं।
 
भाजपा अपने मुद्दों के साथ सक्रिय है। पिछले दिनों कर्नाटक में स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा और कांग्रेस पार्षद की बेटी नेहा की उसके पूर्व सहपाठी फैयाज ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी। शर्मिंदा कांग्रेस ने इसे एक निजी मामला बताया, लेकिन भाजपा ने दावा किया कि यह लव जिहाद है। भाजपा के लिए बेंगलुरू के एक रेस्तरां में हाल ही में हुआ बम विस्फोट भी बड़ा मुद्दा है। हालांकि, ये मुद्दे कांग्रेस के लिए झटका थे, पर वह भाजपा से कम से कम दर्जन भर सीटें छीनने के लिए कमर कसे हुए है। नतीजा यह कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है।