कार्यालय संवाददाता जयपुर। राजस्थान (Rajasthan) में दूसरे चरण की 13 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव प्रचार चरम पर है। प्रचार की कमान पूरी तरह से गहलोत-पायलट और डोटासरा के हाथ में है। चुनाव प्रचार के लिए 2 दिन बचे है। ऐसे में माना जा रहा है कि राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) प्रचार के लिए नहीं आ पाएंगे।
एक वजह यह भी मानी जा रहा है कि राहुल गांधी की तबीयत ठीक नहीं है। ऐसे में राजस्थान के स्थानीय नेताओं जैसे-गहलोत, पायलट और डोटासरा के हाथ में प्रचार की कमान रहेगी। स्थानीय नेताओं में सचिन पायलट दो दिन के केरल दौरे पर हैं, जबकि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का पूरा फोकस अब अपने पुत्र वैभव गहलोत की जालौर सिरोही की सीट पर हो गया है। लिहाजा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (Govind Singh Dotasara) एकमात्र ऐसे नेता हैं जो सभी सीटों पर जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी का दूसरे चरण में राजस्थान का कोई कार्यक्रम जारी नहीं हुआ है। कांग्रेस पार्टी (congress party) कोशिश कर रही है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) की एक चुनावी सभा करवाई जाए। इस परिस्थिति में 13 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को स्थानीय नेताओं के भरोसे ही काम चलाना होगा।
प्रचार के 2 दिन बचे
पायलट दो दिन के केरल दौरे पर हैं, जबकि अशोक गहलोत का पूरा फोकस अब अपने पुत्र वैभव गहलोत की जालोर सिरोही की सीट पर हो गया है. लिहाजा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा एकमात्र ऐसे नेता हैं जो सभी सीटों पर जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि अशोक गहलोत, सचिन पायलट (Sachin Pilot) के कुछ कार्यक्रम 13 लोकसभा सीटों पर रखे गए हैं. लेकिन 2 दिनों में सभी जगह पहुंच पाना बेहद मुश्किल होगा। दूसरी ओर भाजपा कोशिश कर रही है कि दूसरे चरण की हॉट सीटों के लिए प्र.म. नरेंद्र मोदी अमित शाह और योगी जैसे नेताओं के रोड शो और जनसभाएं करवाई जाएं। उल्लेखनीय है कि पहले चरण में भी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी का राजस्थान में एक ही कार्यक्रम हो पाया था। जबकि कांग्रेस के अधिकांश स्टार प्रचारकों ने भी राजस्थान से दूरी बनाए रखी थी।
कांग्रेस के प्रत्याशी मानते हैं स्टार प्रचारकों के नहीं आने से उन्हें नुकसान हो सकता है क्योंकि सामने भाजपा (BJP) के नेताओं की चुनौती बड़ी है। बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार के लिए आने से बड़ी जनसभा के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश लाया जा सकता है, लेकिन अब बड़े नेताओं के नहीं आने की सूरत में कोशिश की जाएगी कि स्थानीय नेताओं के सहारे ही काम चलाया जाए।