एमएसएमई के लिये टैक्स कानून में बदलाव

बन गया चिंता की वजह, अब फिर सुधार की संभावना

Pratahkal    23-Apr-2024
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Changes in Tax law
 
मुंबई। छोटे कारोबारियों को उनके द्वारा की गई सप्लाई का भुगतान समय पर हो, इसके लिये इनकम टैक्स कानून (Tax Law) में पिछले साल एक बदलाव किया गया था। लेकिन इस कानूनी बदलाव का एक ऐसा असर भी देखने को मिल रहा है जिसका अंदाजा केंद्र सरकार समेत किसी को नहीं था। इस बदलाव का असर अब छोटे कारोबारियों से खरीदारी पर पड़ने की आशंका है। आशंका है कि बड़ी कारोबारी कंपनियां इस कानूनी प्रावधान के कारण छोटे कारोबारियों से खरीदी पर ब्रेक लगा सकती है। लिहाजा अब यह संभावना भी जताई जा रही है कि जुलाई में वर्ष 2024-25 के बजट (Budget 2024-25) में केंद्र सरकार इस अधिनियम में एक बार फिर से संशोधन कर जरूरी बदलाव कर सकती है।
 
हालांकि यह अभी साफ नहीं है कि सरकार क्या सुधार करेगी। सूत्रों के मुताबिक, इस बात की संभावना है कि इस पूरे संशोधन प्रावधान को ही हटा दिया जाये। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अभी से इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी। दरअसल सरकार ने एमएसएमई यानि सूक्ष्म, लघु और मध्यम कारोबारियों को उनकी वस्तुओँ और सेवाओं की बिक्री से मिलनेवाले भुगतान को समयबद्ध तरीके से नियोजित करने के लिये इनकम टैक्स एक्ट की धारा 43बी में एक खण्ड एच जोड़ा गया था। यह बदलाव फाइनेंस एक्ट 2023 में पेश किया गया था जिसके मुताबिक, छोटे कारोबारियों को किये जानेवाले भुगतान को निर्धारित अवधि से आगे देरी के बाद खर्च के तौर पर दावा (टैक्सयोग्य कमाई से कटौती) उसी वित्त वर्ष में किया जा सकता है जिसमें उक्त भुगतान किया गया हो। यानि बड़ी कारोबारी कंपनियां जिस वर्ष में भुगतान करेंगी, उसी वर्ष के लिये इस तरह से इस खर्च को टैक्स में कटौती के लिये दावे के तौर पर पेश कर सकेगी। अब चूंकि बड़ी कंपनियों को टैक्स के लिहाज से यह फायदा नहीं मिलेगा तो ऐसे में वे छोटे कारोबारियों से खरीदारी भी तभी करना पसंद करेगी जब उन्हें वास्तविक तौर पर आवश्यकता पड़ेगी। यानि बड़े कारोबारी छोटे कारोबारियों से खरीदारी से परहेज कर सकते हैं। जाहिर है, इस तरह के प्रावधान का यह असर सोचा नहीं गया था, लेकिन अब इसकी संभावना बन गई है। यह आशंका अब छोटे कारोबारियों को सता रही है क्योंकि इससे उनका कारोबार प्रभावित होगा। छोटे कारोबारियों की इसी चिंता को आगामी वित्त विधेयक में दूर किया जा सकता है। यह विधेयक वर्ष 2024-25 में पूर्ण वार्षिक बजट के तौर पर पेश किया जायेगा।
 
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के पूर्व अध्यक्ष तथा टैक्स विशेषज्ञ वेद जैन इस प्रावधान को पूरी तरह से हटाने की वकालत करते हैं। उनके मुताबिक, बड़े आर्थिक सामाजिक उद्देश्यों के लिये इस तरह से इनकम टैक्स कानून का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। इसके लिये अन्य कानून हैं। जैन के मुताबिक, एमएसएमई वस्तु एवं सेवाओं के खरीदार को इससे टैक्स देयता में कटौती के लाभ उसी वित्त वर्ष में हासिल करने से वंचित किया जायेगा जो उनके लिये नुकसानदेह है। टैक्स कटौती का यह लाभ लेने में अगर एक साल की देरी होगी तो कंपनियों को देरी से भुगतान के कारण पूर्व में उत्पन्न टैक्स देयता से छुटकारा नहीं मिलेगा। बल्कि अगले साल के लाभ पर भी इसका असर पड़ेगा।