'जब तक कोई भारतीय चंद्रमा पर नहीं उतर जाता'

इसरो चीफ ने बताया कब तक जारी रहेगी चंद्रयान सीरीज

Pratahkal    18-Apr-2024
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Chandrayaan Mission
 
नई दिल्ली (एजेंसी)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) (ISRO) के अध्यक्ष एस सोमनाथ (S. Somnath) ने बुधवार को आगामी चंद्रयान मिशनों (Chandrayaan Missions) को लेकर बहुत अपडेट दिया है। इसरो चीफ ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपनी चंद्रयान सीरीज तब तक जारी रखेगा जब तक कि देश का कोई अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर नहीं उतर जाता। पिछले साल अगस्त में, इसरो ने चंद्रयान- 3 अंतरिक्ष यान (Chandrayaan-3 spacecraft) के तहत ऐतिहासिक सफलता हासिल की थी। इसरो के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया।
 
एक कार्यक्रम से इतर सोमनाथ ने संवाददाताओं से कहा, चंद्रयान-3 ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। डेटा कलेक्ट कर लिया गया है और साइंटिफिक पब्लिकेशन अभी शुरू हुआ है। अब, हम चंद्रयान सीरीज को तब तक जारी रखना चाहते हैं जब तक कोई भारतीय चंद्रमा पर नहीं उतर जाता। उससे पहले हमें कई तकनीकों में महारत हासिल करनी होगी, जैसे वहां जाना और वापस आना । हम अगले मिशन में ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं। सोमनाथ एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में अहमदाबाद में बोल रहे थे। इस दौरान गगनयान के बारे में जानकारी देते हुए सोमनाथ ने कहा कि इसरो इस साल एक मानव रहित मिशन, एक टेस्ट व्हीकल फ्लाइट मिशन और एक एयरड्रॉप टेस्ट करेगा। इसरो अध्यक्ष ने कहा, एयरड्रॉप टेस्ट 24 अप्रैल को होगा। फिर अगले साल दो और मानव रहित मिशन लॉन्च होंगे और फिर मानव मिशन लॉन्च होगा। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो अगले साल के अंत तक मानव मिशन को अंजाम दिया जाएगा। बता दें कि गगनयान प्रोजेक्ट में 3 सदस्यों के क्रू मेंबर्स को 3 दिनों के मिशन के लिए 400 किमी की कक्षा में प्रक्षेपित करके और उन्हें भारतीय समुद्री जल में उतारकर सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन की परिकल्पना की गई है। रॉकेट इंजनों के लिए इसरो के नव विकसित कार्बन-कार्बन (सी-सी) नोजल पर उन्होंने कहा कि यह हल्का होने के कारण पेलोड क्षमता में सुधार करेगा और इसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान या पीएसएलवी में स्थापित किया जाएगा।
 
उन्होंने कहा, यह वह तकनीक है जिसे हम पिछले कई वर्षों से विकसित करना चाहते थे। अब हमने इसमें महारत हासिल कर ली है, इसे बना लिया है और इंजन में इसका परीक्षण किया है। यह एक कार्बन-कार्बन नोजल है। यह हमें धातु और इसकी तुलना में वजन में बढ़त देता है। यह हमें उच्च तापमान पर भी काम करने की अनुमति देता है। वजन में कमी से इंजन की दक्षता और पेलोड क्षमता में सुधार होता है। हम इसे पीएसएलवी में डालने जा रहे हैं।