दक्षिण को साधने में जुटी भाजपा

अब तक के विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार दक्षिण के राज्यों में भाजपा की सीटों से अधिक उसका मत प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, जिसका अर्थ यह है कि भाजपा वहां जमीनी स्तर पर मजबूत हो रही है। भाजपा ने दक्षिण में समुदाय आधारित राजनीति को निस्तेज करने में सफलता पाई है। साथ ही, ऐसे अनेक कारक इस बार दिख रहे हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत में भी भाजपा की पैठ बढ़ सकती है

Pratahkal    13-Apr-2024
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BJP in South India
 
संजय श्रीवास्तव - भाजपा (BJP) को अपने नारे "अबकी बार 400 पार' ("Abki Paar 400 paar") को चरितार्थ करने के लिए दक्षिण भारत (South India) से पर्याप्त सीटों की आवश्यकता होगी। उत्तर भारत के कई राज्यों में वह पिछली बार इतनी सीटें जीत चुकी है। कि बढ़त की गुंजाइश बहुत नहीं, उलटे इनकंबेंसी से किंचित कम हुईं या अपनी कुल सीटों की संख्या बढ़ानी है तो दक्षिण की ओर ही देखना होगा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को यदि उत्तर भारतीय दल की पहचान को राष्ट्रीय बनाना है। तो भी उसे दक्षिण में अपना जनाधार बढ़ाना होगा। भाजपा ने विगत कुछ वर्षों से इस ओर प्रयास प्रारंभ कर दिया था। चुनाव परिणाम बताएंगे कि उसकी कोशिशें कितना रंग लाई हैं।
 
निस्संदेह राजनीति संख्याओं का खेल है, परंतु मात्र सीटों की संख्या का नहीं है, यह प्राप्त मत प्रतिशत का भी खेल है। अब देखना होगा कि दक्षिण में भाजपा का मत प्रतिशत कितना बढ़ता है। चुनाव परिणामों में वह कितनी सीटों पर जीत के कितना करीब पहुंची, कितनी जीती है और आने वाले वर्षों में वहां होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत की कितनी आस बंधती है। दक्षिण भारत के पांच राज्यों, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और एक केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी में कुल मिलाकर 130 लोकसभा सीटें हैं। तमिलनाडु में 39, कर्नाटक में 28, आंध्र प्रदेश में 25 केरल में 20 और तेलंगाना में 17 के अलावा पुडुच्चेरी में एक । फिलहाल सबसे ज्वलंत सवाल यह है कि ये दक्षिण के राज्य भाजपा को कितनी सीटें देंगे साथ ही यह भी कि इस बढ़त के गैर चुनावी निहितार्थ क्या हैं?
 
वस्तुत: भाजपा का मानना है कि ऐसा कोई राज्य नहीं है, जहां पार्टी अपना खाता नहीं खोलेगी। पार्टी का मानना है कि सभी राज्यों में उसका प्रदर्शन बेहतर रहेगा । अतार्किक आत्मविश्वास राजनीति का आत्मा है। हर दिशा में बेहतर कर रही पार्टी का चुनावी माहौल में ऐसा सोच अतिशयोक्ति नहीं। भले ही विपक्षी दल भाजपा के पूर्व प्रदर्शन और इतिहास दिखाकर उसकी इन घोषणाओं को खुशफहमी मानें, क्योंकि दक्षिण के पांच राज्यों की 129 सीटों में से भाजपा ने 2009 में 19 और 2014 में 21, जबकि 2019 में कुल 29 सीटें ही हासिल कीं । इन परिस्थितियों के बीच यदि कर्नाटक से आठ-दस सीटें कम हो जाएं तो भाजपा के तमिलनाडु और केरल में खाता खुलने से भी क्या होने वाला है। पुराने आंकड़ों बनी तस्वीर बहुत गुलाबी नहीं, लेकिन भाजपा ने साल दर साल दक्षिण में जनाधार को मजबूत किया है। कार्यकर्ता, संगठन और सक्रियता बढ़ाई है।
 
यदि भाजपा तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में अपनी मतसंख्या में आशातीत वृद्धि करती है तो उसकी यह उपलब्धि इसी के चलते होगी। केरल में शून्य से दहाई, कर्नाटक में शतप्रतिशत सीटों का दावा कुछ अतिरेकी लग सकता है, लेकिन भाजपा के आत्मविश्वास के पीछे कुछ ठोस वजहें, तर्क, समीकरण और वाजिब कारण हैं। पिछले कुछ माह के दौरान प्रधानमंत्री कई बार तमिलनाडु जा चुके हैं। द्रविड़ राजनीति के दबदबे को खत्म करने और हिंदूवादी राजनीति को उभारने के प्रयास में भाजपा की तमिलनाडु में तीव्र सफलता बताती है कि वह यह बात समझाने में कुछ हद तक सफल रही है कि तमिल स्वाभिमान और संस्कृति की वही सच्ची संरक्षक है। आबादी के 14 प्रतिशत वन्नियारों के समर्थन वाली प्र.म.के से गठबंधन का भी उसे लाभ मिल रहा है। दोनों विपक्षी द्रमुक और कांग्रेस को भाजपा ने कच्चातिवु दांव से बुरी तरह घेर दिया है। राजनीतिक पर्यवेक्षक तो कच्चातिवु के इस पत्ते को भाजपा का दक्षिण में प्रवेश पत्र मान रहे हैं। इस विवाद से प्रभावित तटवर्ती इलाके में रहने वाले लाखों मछुआरों का जिनका 15 सीटों पर गहरा असर है, भाजपा से जुड़ाव बढ़ा है। विगत वर्षों की तैयारियों के चलते आज पार्टी मुख्य मुकाबले में है।
 
भाजपा का दावा है कि केरल में कांग्रेस के कमजोर होने से अब उसकी सीप्र.म. से सीधी लड़ाई है। पिछली बार भले ही वह शून्य पर थी, लेकिन इस बार उसका आंकड़ा दहाई पार करेगा। सच तो यह है कि हिंदू राष्ट्रवाद को केरल में बहुत कम समर्थन मिला और बहुत हद तक विकसित केरल पर विकास के नारे का भी असर नहीं पड़ा। यहां किसी चीज ने असर डाला है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जमीनी कामकाज ने जिसके तहत संगठन ने समाज के बड़े वर्ग में पैठ बनाई है और उनके साथ सामाजिक समरसता बनाई। पिछले चुनावों में भाजपा तीन सीटों पर कम अंतर से हारी थी और दो सीटों पर पुराना भारत उसका प्रदर्शन उल्लेखनीय था। इसी आधार पर कुछ भाजपा नेताओं का दावा है कि केरल में वे अकाद पांच जीतेंगे। सीटें यह संभव भले न हो, परंतु उससे केरल में पहली बार खाता खुल सकता है। जहां तक आंध्र का सवाल है। चंद्रबाबू नायडू के साथ के बावजूद भाजपा बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। घोटाले में गिरफ्तारी के डर से नायडू भाजपा के साथ आए हैं और भाजपा उनका सियासी सहारा लेने के लिए। लगता नहीं कि भाजपा को यह राज्य बहुत सहायता कर पाएगा। एक सर्वे में तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से भाजपा को आठ और कांग्रेस को छह सीटें दे रहा है, तो दूसरा पांच, जबकि एक दावा यह भी कि भाजपा को दो से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी।
 
प्रशांत किशोर जैसे चुनाव विश्लेषक भी तेलंगाना में भाजपा को पहले या दूसरे नंबर पर रख रहे हैं। कर्नाटक में भाजपा ने जेडीएस के साथ गठबंधन में अपनी स्थिति सुधारी है। यहां से भाजपा 2019 में 25 सीटे पा चुकी है। यानी कर्नाटक में भाजपा को घाटा नहीं होगा और तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुच्चेरी एवं केरल में भी वह 15 से 20 सीटें जीतती लग रही है।