उदयपुर (प्रा.स)। झीलों तालाबों का शहर
(City of Lakes and Ponds) बंगलुरु
(Bangalore) आज से दो वर्ष पूर्व बाढ़ से पीड़ित हुआ। आज वो एक एक बूंद पानी के लिए तरस रहा है। उससे सबक ले झीलों की नगरी उदयपुर
(Udaipur) को अपने जल भविष्य को बचाना होगा। यह विचार पिछले दिनों आयोजित झील
(Lakes) संवाद में व्यक्त किये गए। विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि बंगलुरु के सैंकड़ों तालाबों, जल नालों, खुले कुंओं को पाट देने के कारण वहां अति पानी अथवा शून्य पानी की स्थितियां बन रही है। शहर की आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक गतिविधियां रुक गई है। झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि उदयपुर में भयंकर जल बर्बादी हो रही है। होटलों व रिसोर्ट में प्रति जल खपत घर मे मुकाबले पांच सौ से सात सौ प्रतिशत ज्यादा है। गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि कुछेक बस्तियों व छोटे व्यवसाय केंद्रों को छोड़कर हर घर, व्यवसाय स्थला, संस्थानों में गहरे ट्यूबवेल हैं। पर्यावरण प्रेमी कुशल रावल ने कहा कि हर घर, हर व्यवसाय स्थल, होटल रिजॉर्ट में जल खपत को नियंत्रित करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। वरिष्ठ नागरिक रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि जिस भी समाज ने जल का अपमान किया, उसे दुर्दिन देखने पड़े है। संवाद से पूर्व झील स्वच्छता श्रमदान
(Lake Sanitation Shramdaan) किया गया।