आम आदमी के सरोकार साधती विदेश नीति

अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत जो भी नीतिगत कदम उठा रहा है, उसके प्रत्यक्ष लाभार्थी भारतीय नागरिक बन रहे हैं....

Pratahkal    22-Mar-2024
Total Views |
आम आदमी के सरोकार साधती विदेश नीति - Pratahkal
 
श्रीराम चौलिया : नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के दस वर्ष प्रधानमंत्री के कार्यकाल में विदेश नीति के मोर्चे पर जितनी सक्रियता देखी गई, उतनी किसी पूर्ववर्ती सरकार में नहीं रही। प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश नीति को पर्यास प्राथमिकता देते हुए उसमें अपनी ऊर्जा एवं समय का अपेक्षित निवेश किया। यही कारण है कि 2014 के पश्चात हुए अधिकांश जनमत सर्वेक्षणों में मोदी सरकार के विदेश नीति प्रदर्शन पर उत्तरदाताओं ने खासी संतुष्टिः व्यक्त की है। जबकि पहली सरकारों के समय विदेश नीति में केवल बुद्धिजीवी और एक विशेष वर्ग ही दिलचस्पी रखते थे। मोदी युग में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्तर पर आम नागरिकों में भी अभिरूचि और भागीदारी के भाव उजागर हुए हैं। जटिल अंतरराष्ट्रीय समीकरणों और संकटों से निपटने के लिए देश में पूरे समाज को अंशभागी बनाना कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। स्वाधीन भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। इसका कारण है जनमानस में बढ़ता विश्वास कि सामान्य जन के हितों का भी विदेश नीति से सीधा सरोकार है। भारत के सामान्य नागरिक महसूस कर रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत जो भी नीतिगत पहल या कदम उठा रहा है, उसके वे प्रत्यक्ष लाभार्थी हैं। इस संदर्भ में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यथार्थ ही कहा कि अगर हमने अच्छी विदेश नीति नहीं बनाई होती तो पेट्रोल की कीमत बहुत अधिक होती, खाद्य तेल के भाव आसमान छू रहे होते और आपके मोबाइल फोन का मूल्य भी काफी अधिक होता । आज हम अपने विदेशी साझेदारों के साथ जो करते हैं, उसका भारतीयों के दैनंदिन जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है। उल्लेखनीय है वर्ष 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भारत में औसत मुद्रास्फीति दर 8.2 प्रतिशत थी। मोदी सरकार के एक दशक के दौरान यह दर 5 प्रतिशत से कम रही। महंगाई पर लगाम लगाए रखने में घरेलू आर्थिक नीतियों के साथ ही साथ इसका श्रेय कुशल विदेश नीति को भी जाता है।
 
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय रूझानों से निर्धारित होती हैं। भारत के मामले में तो यह और भी मुखरता से रेखांकित होता है, क्योंकि देश कच्चे तेल की 85 और प्राकृतिक गैस की 50 प्रतिशत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में विदेश नीति और देश की ऊर्जा सुरक्षा एक दूसरे पर आश्रित हैं। जब 2022 में रूस यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी शक्तियों ने भारत को रूस के विरूद्ध पक्ष लेने का दबाव डाला, तब हमने अपने लोगों की बुनियादी जरूरतों को सर्वोपरि रखकर उस दबाव को नकारते हुए रूस से सस्ते तेल की आपूर्ति के समझौते किए। स्वतंत्र एवं दबाव मुक्त विदेश नीति से जुड़े उस निर्णय की वजह से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें उतनी नहीं बढ़ीं, जितने दाम वैश्विक बाजारों में चढ़ गए थे। तब जयशंकर ने पश्चिमी आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया था कि भारत सरकार का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के लिए सबसे उत्तम सौदेबाजी करे। लोकतांत्रिक देशों में सरकारें नागरिकों के प्रति ही प्राथमिक रूप में जवाबदेह होनी चाहिए। भारत सर्वप्रथम की विदेश नीति हमारे जैसे विकासशील देश के लिए समुचित और न्यायसंगत है।
 
विदेश व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की नीतियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को मौजूदा राह पर आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। पिछले दस वर्षों में आंतरिक स्तर पर जो मूलभूत सुधार और प्रशासनिक परिवर्तन हुए हैं, उनसे विश्व भारत 
की ओर आकर्षित हुआ है। इस प्रकार भारत पूंजी तथा कारोबार के अवसर प्राप्त कर पाया है। वर्ष 2000 से 2023 तक भारत में कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश यानी एफडीआई प्रवाह 953 अरब डालर रहा। जबकि इसमें 2014 से 2023 के दौरान एफडीआई प्रवाह 615.73 अरब डालर रहा। यानी कुल एफडीआई का करीब 65 प्रतिशत मोदी सरकार के दौरान आओ 2023 में भारत को 10 अरब डालर एफडीआई मिला, जो चीन के 33 अरब डालर से दोगुना अधिक था। चीन दशकों तक एफडीआई के मोर्चे पर अपराजेय रहा, किंतु भारत ने स्वयं को पश्चिमी पूंजीपतियों और सरकारों के समक्ष चीन से बेहतर और आकर्षक गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करने के भरसक प्रयास किए, जो अब परिणाम भी दिला रहे हैं।
 
हमारी विदेश नीति से यह संदेश भी गूंजा है कि निरंकुश और विस्तारवादी चीन का विकल्प लोकतांत्रिक एवं जिम्मेदार भारत है। स्वयं को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में पेश करने के भारत के प्रयासों ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर उसके लिए संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं। इस सक्रियता ने विदेश व्यापार समझौतों तथा भारतीय नागरिकों के सुगम प्रवास एवं आवाजाही को संभव बनाया है। विश्व में अगली बड़ी शक्ति के रूप में भारत के बारे में दीर्घकालिक आशावाद जगाने हेतु हमने मित्र राष्ट्रों के साथ सामरिक साझेदारियों को गहराइयों तक ले जाने में कई कसर नहीं छोड़ी है, जिसके फलस्वरूप भारत में कई उद्यम आरंभ हुए हैं। इससे रोजगार सृजन के साथ ही आर्थिकी को तेज गति मिली है। मिसाल के तौर पर वैश्विक दिग्गज एमेजोन को ही देखें तो उसने 2030 तक भारत में 26 अरब डालर निवेश करने की योजना बनाई है, जिससे करीब 20 लाख भारतीयों को नौकरियां मिलेंगी। इस प्रकार का व्यापक वाणिज्यिक फैसलों के पीछे केवल कंपनी प्रबंधन ही नहीं, बल्कि अन्य तमाम तत्व एवं पहलू भी प्रभावी होते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि 'महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों' के भारत में विकास के पीछे प्र.म. मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल जैसे दिग्गजों को भी भूमिका है।
 
विकसित भारत का सपना साकार करने के लिए विदेश नीति की महत्ता को कम करके नहीं आंका जा सकता। भारतीयों के लिए उच्च आय, अच्छे जीवन स्तर और सहूलियतें प्रदान करने के लिए सक्षम विदेश नीति का होना अत्यावश्यक है। गत एक दशक में भारत ने विदेश में जो कुछ किया है, उसके प्रति देश में व्यापक उत्साह और समर्थन में वृद्धि स्पष्ट संकेत है कि हम सही राह पर हैं और आगे इसी पथ पर प्रयासरत रहकर चलना पड़ेगा।