मुंबई। आचार्य महाश्रमण (Acharya Mahashraman) अपनी विहार यात्रा (vihaar yaatra) के दौरान गोल्ड वैली से तामिनी घाट (Tamini Ghat) पहुंचे। यहाँ अपने प्रवचन में उन्होंने कहा कि अहिंसा काफी व्यापक और प्रिय शब्द है। धर्म शास्त्रों में अहिंसा का बहुत महत्व है। अहिंसा (nonviolence) को शास्त्र में परम धर्म कहा गया है। शास्त्र में यह भी कहा गया है कि ज्ञानी के ज्ञानी बनने का सार अहिंसा है। अहिंसा के पालन के लिए समता होना आवश्यक होता है। समता कारण और अहिंसा कार्य बन सकती है। समता गृहस्थ जीवन में रहने वाला आदमी भी अपने जीवन में अहिंसा की चेतना का विकास करने का प्रयास करे। साधु के लिए तो अहिंसा महाव्रत होता है। वे जीवन भर के लिए अहिंसा महाव्रत को स्वीकार कर पालन करते तो वे कितने हिंसा मुक्त जीवन जीने वाले होते हैं। हिंसा और अहिंसा मूलतः आदमी की चेतना में होता है। निश्चय नय में बताया गया कि आत्मा ही अहिंसा और आत्मा ही हिंसा है। जो अप्रमत्त वह अहिंसक और प्रमादी हिंसक होता है। एक वीतराग साधु के चलने के दौरान कोई जीव मर गया तो हिंसा तो हो गई, किन्तु वह साधु उस हिंसा का भागीदार नहीं बनता, क्योंकि वह हिंसा बाहर हुई और भीतर की चेतना से वह पूर्णतः अहिंसा का पोषक है। भीतर में अहिंसा है तो आदमी बाहर भी हिंसा नहीं कर सकता। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी जितना संभव हो सके, अहिंसापूर्ण व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिए।मानव जीवन में आचार, विचार और व्यवहार तीनों में अहिंसा का दर्शन हो।