क्या हमेशा के लिए बदल जाएंगे चुनाव

एक बार चुनाव में एआई का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर शुरू हो गया, तो इसका इस्तेमाल सभी करने लगेंगे। एक वक्त ऐसा आएगा, जब मशीनें ही मशीनों के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी।

Pratahkal    12-Mar-2024
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Voting - Pratahkal
 
हरजिंदर : नवंबर महीने की शुरूआत में एक ई-मेल इनबॉक्स में आया। यह मेल एक वेबसाइट का था, जो एआई वॉयस जेनरेटर है, यानी कृत्रिम बुद्धि से तरह- तरह की आवाजें तैयार करने वाली वेबसाइट। इस मेल में दो लिंक थे- एक वेबसाइट का और दूसरे में नाम लिखा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। जब इस दूसरे लिंक को क्लिक किया, तो वहां पंजाबी का एक गाना मिला- तू मेरी हीर लगदी...। 45 सेकंड के इस गाने की खासियत यह थी कि इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हूबहू आवाज में तैयार किया गया था। यह दरअसल एक नमूना था यह बताने के लिए कि वह वेबसाइट क्या कमाल कर सकती है? दूसरे लिंक को क्लिक करने पर जब हम वेबसाइट पर पहुंचे, तो वहां बताया गया कि आप 399 रूपये का सब्सक्रिप्शन लेकर किसी की आवाज में कुछ भी रिकॉर्ड कर सकते हैं। कोई भी बात किसी के मुंह से कहलवा सकते हैं। अगर आपको लगता है कि 399 रूपये का यह सब्सक्रिप्शन ज्यादा है, तो इंटरनेट पर यही काम कराने के मुफ्त विकल्प भी मौजूद हैं।
 
अभी चंद रोज पहले जब पाकिस्तान के चुनाव में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, तो पार्टी ने इमरान खान की आवाज में एक धन्यवाद संदेश जारी किया। इमरान खान जेल में बंद थे और वहां इस तरह की किसी रिकॉर्डिंग की सुविधा उनके पास नहीं थी। साफ है, वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी एआई से तैयार आवाज थी, जो बिल्कुल उसी तरह की थी, जैसी इमरान खान की आवाज है। 2024 को चुनावों का साल कहा जा रहा है। इस साल दुनिया के कई बड़े और महत्वपूर्ण देशों में चुनाव होने हैं। पाकिस्तान का चुनाव इस साल का पहला महत्वपूर्ण चुनाव था और इस चुनाव में ही एआई ने दस्तक दे दी।
 
ऐसा नहीं है कि एआई का इस्तेमाल इसके पहले के चुनावों में नहीं हुआ है। अगर हम भारत का ही उदाहरण लें, तो दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में इसका इस्तेमाल सीमित स्तर पर हुआ था। एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी की भाजपा को वोट देने की अपील के कुछ वीडियो जारी हुए थे। जो मूल वीडियो रिकॉर्ड हुआ, उसमें तो वह हिंदी में दिल्ली के मतदाताओं से वोट देने की अपील करते हैं। एआई की एक वीडियो तकनीक डीपफेक से इसके कई संस्करण तैयार हुए, जिनमें किसी में वह हरियाणवी में वोट देने की अपील कर रहे हैं, तो किसी वीडियो में भोजपुरी में और किसी में पंजाबी में। ये वीडियो इतनी अच्छी तरह तैयार किए गए थे कि किसी में कोई लब-ओ-लहजा गलत नहीं लग रहा था।
 
एआई का इस तरह का इस्तेमाल आपत्तिजनक नहीं है। समस्या वास्तव में इसके आपत्तिजनक इस्तेमाल को लेकर ही है, जिसके संकेत दिखने लग गए हैं। इसी साल के अंत में अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनाव हैं। पिछले दिनों वहां राष्ट्रपति जो बाइडन का एक वीडियो हर जगह दिखाई देने लगा, जिसमें वह कह रहे थे कि अगर डोनाल्ड ट्रंप चुनाव लड़ते हैं, तो लोगों को वोट ही नहीं डालने चाहिए। जाहिर है, यह फर्जी वीडियो था, जो डीपफेक से तैयार किया गया था। इस नए रूझान को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डीपफेक को लेकर देश और अपनी पार्टी के लोगों को एक से अधिक बार आगाह कर चुके हैं।
 
ऐसा नहीं है कि झूठ हमारी राजनीति में इससे पहले नहीं था। यह हमेशा से रहा है और सोशल मीडिया के आगमन के बाद पिछले एक दशक में फेक न्यूज के रूप में इसने बहुत उथल-पुथल मचाई है। इसने तनाव पैदा किए हैं, दंगे करवाए हैं और यह मॉब लिंचिंग का कारण भी बनी है। इसने अतीत की महान हस्तियों पर कीचड़ उछाला है, प्रतिष्ठित महिलाओं का चरित्र हनन किया है और तमाम तरह के झूठे इतिहास लोगों के दिमागों में ठूंस दिए हैं। फेक न्यूज के इन तौर-तरीकों ने हमारे चुनावों के नैरेटिव बदल डाले हैं। मगर एआई इससे कहीं आगे की चीज है।
 
फेक न्यूज के झूठ की देर-सबेर कलई खुल ही जाती थी, लेकिन एआई के झूठ से पार पाना शायद इतना आसान नहीं होगा। एआई झूठ को तैयार करने, परोसने का काम इतनी कुशलता से कर सकती है कि किसी को भी इस पर संदेह न हो सके। एआई की कुशलता इतनी ज्यादा है कि वह एक ही झूठ अलग-अलग तरह के लोगों के सामने अलग-अलग तरीके से पेश कर सकती है। सोशल मीडिया के फेक न्यूज वाले जमाने में हमने देखा है कि किस तरह फोटोशॉप के जरिये तस्वीरों से छेड़छाड़ करके उनको मनमाफिक फसाने में बदला जाता है। हालांकि, फोटोशॉप से इसे अंजाम देने के लिए जो कौशल चाहिए, वह हर किसी के पास नहीं होता। एआई में ऐसे कौशल की जरूरत भी खत्म हो गई है। ऐसी बहुत सी वेबसाइट हैं, जहां आपको सिर्फ यह लिखना है कि आप तस्वीर में क्या चाहते हैं और कुछ ही सेकंडों में आपको तस्वीर तैयार मिल जाती है।
 
एआई का चुनावी सिरदर्द सिर्फ सफेद झूठ तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ चुनावों में हमने देखा है कि किस तरह से बिग डाटा का इस्तेमाल चुनावी रणनीति को तैयार करने और विरोधी को परास्त करने के लिए किया जाता रहा है। इसके आगे बिग डाटा से मतदाताओं की सोच बदलने की कोशिश भी की जाती रही है। एआई इन सारे कामों को ज्यादा कुशलता से अंजाम दे सकती है। साल 2023 में अमेरिकी सीनेट की एक सुनवाई के दौरान ओपेन एआई नाम की कंपनी के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने क्लॉगर नामक एक मशीन की अवधारणा दी थी। ऑल्टमैन का कहना था कि चुनाव के दौरान यह सुपर एआई मशीन किसी के भी जीतने की संभावनाओं को अधिकतम कर सकती है।
 
हमें पता नहीं कि ऐसी कोई मशीन है या नहीं? कोई इसका इस्तेमाल कर रहा है या नहीं? यदि कोई इस्तेमाल कर भी रहा होगा, तो वह इसे गोपनीय ही रखेगा। यह तय है कि एक बार चुनावों में एआई का इस्तेमाल इतने बड़े पैमाने पर शुरू हो गया, तो कुछ समय बाद इसका इस्तेमाल सब दल करने लगेंगे। यानी, एक वक्त ऐसा आएगा, जब मशीनें ही मशीनों के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी। क्या हम अपने लोकतंत्र का भविष्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाली मशीनों के हवाले करने को तैयार हैं?