राजनीतिक अनिश्चितता से घिरा पाकिस्तान

पाकिस्तानी सेना ने वे सभी दांव चले हैं, जिनसे लोकप्रिय होने के बाद भी इमरान खान की पार्टी सत्ता की दौड़ से बाहर हो जाए ...

Pratahkal    08-Feb-2024
Total Views |
 
Pakistan surrounded by political uncertainty- Pratahkal
 
विवेक काटजू : पाकिस्तान में आठ फरवरी को नेशनल और प्रांतीय असेंबली के चुनाव होने हैं। नेशनल असेंबली का कार्यकाल गत वर्ष अगस्त में समास हो चुका है। शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी पीडीएम सरकार ने पाकिस्तानी संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप चुनाव से पहले त्यागपत्र दे दिया था, ताकि कार्यवाहक सरकार गठित हो सके। पाकिस्तान में यही व्यवस्था है कि नेशनल असेंबली भंग होने के 90 दिनों के भीतर कार्यवाहक सरकार के अंतर्गत चुनाव संपन्न होने चाहिए। हालांकि पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने जारी परिसीमन प्रक्रिया के चलते निर्धारित अवधि में चुनाव कराने में असमर्थता जताई थी। आयोग का आग्रह कुछ हद तक सही, लेकिन पूरी तरह सच्चाई के करीब नहीं था। चुनावों को टालने के पीछे की वास्तविक बजह यही थी कि सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर यह सुनिश्चित करने में लगे थे कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआइ सत्ता की होड़ से बाहर हो जाए इमरान खान और पीटीआई को राजनीतिक रूप से पूरी तरह किनारे लगाने के लिए कुछ समय तो चाहिए ही था ।
 
जनरल मुनीर और इमरान के बीच टकराव पुराना है। इमरान ने प्रधानमंत्री रहते हुए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बाजवा को इसके लिए मनाया था कि वह आईएसआई के मुखिया पद से मुनीर को विदा कर दें। आईएसआई प्रमुख का पद पाकिस्तान में रूतबे का प्रतीक माना जाता है। बाद में बाजवा और इमरान के बीच ही समीकरण बिगड़ गए। बाजवा ने अप्रैल 2022 में इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई और उनकी जगह पीडीएम सरकार गठित करा दी। पीडीएम असल में इमरान विरोधी दलों का एक गठबंधन है, जिसमें नवाज शरीफ की पीएमएल-एन, भुट्टो जरदारी परिवार की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी और मौलाना फजल उर रहमान की जेयूआइ- एफ शामिल हैं।
 
जब बाजवा को सेना प्रमुख के रूप में मिला सेवा विस्तार नवंबर 2022 में समाप्त हो गया, तब नवाज शरीफ ने सुनिश्चित किया कि शीर्ष सैन्य पद पर आसिम मुनीर की ताजपोशी हो। वह भी तब जबकि उनकी नियुक्ति की राह में कुछ तकनीकी बाधाएं थीं। नवाज शरीफ इमरान और मुनीर के बीच कड़वाहट से भलीभांति परिचित थे और उन्हें अनुमान था कि इमरान को सत्ता से दूर रखने के लिए मुनीर किसी भी सोमा तक जाने से संकोच नहीं करेंगे। अभी तक नवाज शरीफ सही साबित होते दिख रहे हैं। मुनीर और न्यायपालिका की एक प्रकार की जुगलबंदी के चलते इमरान गत वर्ष मई से ही जेल में हैं और कई मामलों में दोषी भी सिद्ध हो चुके हैं, जिसके लिए उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है। इसके चलते वह चुनाव लड़ने के लिहाज से भी अयोग्य हो गए हैं। चुनाव आयोग ने पीटीआई का चुनाव चिह्न 'क्रिकेट बैट' भी जब्त कर लिया है। इस कारण पीटीआई प्रत्याशियों को निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ना पड़ रहा है। यूं तो पूरी चुनाव प्रक्रिया ही कुछ निस्तेज किस्म की है, लेकिन पीटीआई पर रैलियां आयोजित करने पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। उसका चुनाव प्रचार तरह इंटरनेट मीडिया के भरोसे है।
 
पूरी इमरान खान की छवि को हरसंभव तरीके से खराब करने के बावजूद इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि युवा और महिला मतदाताओं के बीच वह खासे लोकप्रिय हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सेना, अन्य राजनीतिक दलों और न्यायाधीशों द्वारा इमरान को किनारे करने की तमाम कोशिशों के बाद भी लोग निर्दलीय के रूप में लड़ रहे पीटीआई प्रत्याशियों के पक्ष में कैसे मतदान करते हैं। पठान होने के नाते इमरान खैबर पख्तूनख्वा यानी केपी प्रांत में भी काफी लोकप्रिय हैं। ऐसे में वहां उनके समर्थकों के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। पाकिस्तान की सियासी तकदीर का फैसला पंजाब प्रांत ही करता आया है। केपी, सिंध और बलूचिस्तान में नेशनल असेंबली की जितनी सीटें हैं, उससे अधिक अकेले पंजाब में हैं। इसलिए असली राजनीतिक लड़ाई पंजाब में लड़ी जाएगी। इस बीच सेना ने वे सभी दांव भी चले हैं, जिनसे इमरान की पार्टी के अधिकांश बड़े नेता उनका साथ छोड़ गए और बचे खुचे नेता भारी दबाव में हैं।
 
वर्तमान परिस्थितियों में नवाज शरीफ ही मुनीर की पहली पसंद होंगे। नवाज राजनीतिक वनवास के बाद गत वर्ष नवंबर में ही पाकिस्तान लौटे हैं। तब से वह लगातार इमरान पर हमलावर हैं। उन पर लगे सभी प्रतिबंध हट गए हैं। वह नेशनल असेंबली की दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। सेना भी हरसंभव प्रयास करेगी कि उनकी पार्टी सरकार बनाने लायक सीटें ले आए। नेशनल असेंबली में 342 सीटें हैं। इनमें से 272 पर प्रत्यक्ष चुनाव होता है तो 60 सीटें महिलाओं और 10 गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों का वितरण आनुपातिक प्रतिनिधित्व और चुनाव आयोग को प्रेषित अग्रिम सूची के आधार पर होता है चूंकि पीटीआई आधिकारिक रूप से चुनाव ही नहीं लड़ रही है तो फिर उसे आरक्षित सीटों में कोई हिस्सा भी नहीं मिलेगा। सिंध पीपीपी का मजबूत गढ़ है और वहां सत्ता हासिल करने में उसे खास परेशानी नहीं आएगी। वह पंजाब में पीएमएल-एन को टक्कर देने की कोशिश में लगी है, लेकिन उसे शायद ही कामयाबी मिले। बलूचिस्तान भौगोलिक रूप से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन राजनीतिक रूप से उतना महत्वपूर्ण नहीं। क्या पीएमएल-एन वहां अपना दमखम दिखा पाएगी ?
 
अगर चुनाव जनरल मुनीर को मंशा के अनुरूप होते हैं तो पीएमएल-एल न केवल केंद्र में सरकार बनाने में सफल होगी, बल्कि पंजाब की सत्ता पर भी काबिज हो जाएगी। हालांकि नवाज शरीफ की सेहत पूरी तरह दुरूस्त नहीं, लेकिन कम से कम कुछ समय के लिए तो वही पाकिस्तान की कमान संभालते हुए नजर आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रशासनिक कामकाज का व्यापक दारोमदार उनके भाई शहबाज शरीफ पर रहेगा, जिनके सेना के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। वहीं, अगर पीटीआइ के समर्थक बड़ी संख्या में जीतकर आते हैं और भले ही सरकार बनाने में सफल न भी हों तो यह इमरान खान के लिए बड़ी नैतिक विजय होगी, जिससे सेना पर भी दबाव बढ़ेगा। तब पाकिस्तान एक ऐसे समय भारी अनिश्चितता की ओर बढ़ेगा, जब उसकी आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है।