निचले तबके तक पहुंच रहा विकास

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर देश की अब तक की यात्रा उल्लेखनीय रही है। कई चुनौतियों को हम पार कर चुके हैं, तो कई बाकी हैं। लेकिन संतोष की बात है कि हम उम्मीद के साथ भविष्य की ओर देख सकते हैं।

Pratahkal    07-Feb-2024
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Development in lower classes
 
मोहनदास पाई । यह हमारे देश की उपलब्धि रही है कि हमारा लोकतंत्र (democracy) न केवल बीते साढ़े सात दशकों में परिपक्व हुआ है, बल्कि समृद्ध भी हुआ है। जब हमने 1950 में अपने संविधान को अपनाया, तब दुनिया दूसरे विश्वयुद्ध (world war II) और उपनिवेशवाद (colonialism) के परिणामों से निपट रही थी । उस समय देश गरीबी और औपनिवेशिक शोषण के गहरे घाव झेल रहा था। कई पर्यवेक्षक तो यहां तक कहते थे कि भारत में लोकतंत्र ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रहेगा, लेकिन आज हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और जीवंत लोकतंत्र है।
 
सामाजिक-आर्थिक विकास (socio-economic development) और राजनीतिक शक्ति निचले तबके के 40 फीसदी लोगों सहित समाज के हर वर्ग में पहुंचा है। 1991 में हुए आर्थिक उदारीकरण के चलते आर्थिक विकास की गति तीव्र हुई है, जो वित्त वर्ष 1991 के 5.32 लाख करोड़ रूपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 296.57 लाख करोड़ रूपये तक पहुंच गई है। यानी 33 वर्षों में 13 फीसदी की संचयी वार्षिक विकास दर ! यह भारतीय इतिहास की एक अनूठी उपलब्धि है । इस दशक में आधारभूत ढांचे के विकास पर खर्च में भारी बढ़ोतरी, वित्तीय क्षेत्र में बचत एवं निवेश में वृद्धि, विनिर्माण एवं उत्पादन में वृद्धि और बहुत बड़ी आबादी का तकनीकी आधारित समावेश पहल विकास को गति दे रही है। भारत अब नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले कुछ वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है।
 
हमारी उपलब्धियां जहां हमें अब तक की यात्रा के बारे में बताती हैं, वहीं कमियां आगे की चुनौतियों का पता देती हैं। हमारी सबसे बड़ी कमियों में से एक है न्याय की कमी, जो आबादी के एक बड़े हिस्से को देर से मिलता है। एक अनुमान के मुताबिक, ढाई लाख विचाराधीन कैदी जेलों में बंद हैं, जो अदालतों के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और जिन आरोपों में वे जेल में बंद हैं, उनकी अधिकतम सजा का आधे से ज्यादा हिस्सा उन्होंने जेल में बिता दिया है। कई ऐसे भी मामले हैं, जिनमें निर्दोष लोग 15-20 वर्षों तक जेलों में बंद रहे और फिर सबूतों के अभाव में रिहा हो गए । न्याय प्रणाली द्वारा मुकदमा चलाने की धीमी गति के कारण भ्रष्ट राजनेता अपनी कपटपूर्ण गतिविधियों को जारी रखने में सक्षम हैं। ऐसे में न्याय क्षमता का निर्माण तेजी से होना चाहिए, खासकर निचली अदालतों में । भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर मुश्किल से 21 जज हैं, जबकि 100 जज होने चाहिए। न्याय एक सभ्य समाज का आधार है, और भारत को तुरंत इस आधार का सशक्तीकरण सुनिश्चित करना चाहिए।
 
समान नागरिक संहिता और इस तरह के अन्य कानून की कमी देश को धर्म और जाति में बांट रही है। 75 वर्षों से ज्यादा समय से आरक्षण यह सुनिश्चित करने का साधन रहा है कि सभी समूहों को समान अवसर मिले। हालांकि आरक्षण ने निश्चित रूप से बहिष्कृत समाजों की भागीदारी और समावेशन बढ़ाने का काम किया है, लेकिन निर्विवाद रूप से क्रीमी लेयर का उदय आरक्षण के लाभों पर हावी है। इसके अलावा, समान नागरिक संहिता का न होना, निश्चित रूप से समाज के कुछ समूहों पर अन्यायपूर्ण प्रभाव डाल रहा है, जैसे मुस्लिम महिलाएं, जो आबादी का 8 प्रतिशत हैं। संविधान में अंतर्निहित समानता के वादे में पूर्ण लैंगिक समानता भी शामिल होनी चाहिए। हिंदू महिलाओं को अपने पुरूष समकक्षों की तरह अधिकांश अधिकार प्राप्त हैं, जबकि अलग धार्मिक कानून की वजह से मुस्लिम महिलाओं को वह लाभ नहीं मिलता, जिसका फायदा अनुचित रूप से मुस्लिम पुरूष उठाते हैं। समान नागरिक संहिता, जो लिंग, धर्म और जाति की परवाह किए बिना सभी नागरिकों से समान व्यवहार करे, इस वक्त की जरूरत है।
 
पुलिस सुधार भी एक और तात्कालिक जरूरत है। ऐसा लगता है कि पुलिस बल अब भी अपने औपनिवेशिक साम्राज्यवादी मूल्यों से मजबूती से जुड़े हुए हैं। पुलिस बर्बरता के कई मामले सामने आए हैं, मसलन, शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर लाठीचार्ज या जेलों में विचाराधीन कैदियों की पिटाई पुलिस सुधार, जो अनिवार्य रूप से नागरिकों की सुरक्षा और कानून के राज पर केंद्रित है, बेहद महत्वपूर्ण विषय है, और ऐसा करने पर समाज में पुलिस का सम्मान बढ़ेगा और यह हमारे समृद्ध लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण होगा। वित्तीय क्षेत्र में मजबूत पूंजीकरण के साथ बैंकिंग प्रणाली अच्छी स्थिति में है और शेयर बाजार में खुदरा भागीदारी बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति आय निरंतर बढ़ रही है और नागरिक आर्थिक विकास के कई नए रास्ते तलाश रहे हैं, लेकिन कर चोरी एवं इससे जुड़े विवाद भी बढ़ रहे हैं। कर विवादों की मात्रा वर्ष 2014 के 4.5 लाख करोड़ रूपये से बढ़कर वर्ष 2023 में 12 लाख करोड़ रूपये तक पहुंच गई है। कर अधिकारियों को पहले जरूरी सबूत इकट्ठा करने और तार्किक संदेह करने की आवश्यकता के बिना लोगों को परेशान करने के लिए काफी अधिकार दे दिए गए हैं। ऐसे में, उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिए, और उनकी मनमानी शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए सुधार किए जाने चाहिए।
 
सामाजिक स्तर पर देखें, तो शिक्षा के क्षेत्र में भारत काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। लगभग सभी बच्चे स्कूल में हैं और अब शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। 18 से 23 आयु वर्ग के 28 फीसदी युवा कॉलेजों में हैं और एक दशक में इनकी संख्या 50 फीसदी तक बढ़ाने के लिए पहल की जरूरत है। इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों के लिए पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क स्थापित करने की भी जरूरत है। अनुमान के मुताबिक, 13 करोड़ भारतीय आज 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं और अनुमान है कि इनकी संख्या 2030 तक बढ़कर 20 करोड़ हो जाएगी। पेंशन व्यवस्था या स्वास्थ्य सेवा की कमी के कारण उनमें से कई गरीबी में जी रहे हैं। एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क उनके सम्मानपूर्ण जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करेगा ।
 
अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए ये सभी बातें जरूरी हैं और इन्हें तेजी से लागू करने से देश वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में आगे बढ़ पाएगा। कुल मिलाकर, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले बड़े लोकतंत्र के रूप में हमारी अब तक की उपलब्धियां उल्लेखनीय रही हैं। हालांकि काफी समय से लंबित कई बड़े सुधारों के साथ भारत को अभी मीलों चलना है, लेकिन संतोष की बात है कि हम उम्मीद के साथ भविष्य की ओर देख सकते हैं।