सबके साथ सबके विकास की ओर

इस बजट ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया कि सरकार एक लोकलुभावन बजट पेश करेगी। मोदी सरकार ने लोकलुभावन रास्ता छोड़कर विवेक का रास्ता चुना है। सरकार ने राजस्व बढ़ाकर खर्च बढ़ाया है और अपने राजस्व से अधिक खर्च तथा राजकोषीय घाटा बढ़ाने के दबाव का लगातार विरोध किया है।

Pratahkal    03-Feb-2024
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India's Interim Budget 2024 Focus on Fiscal Prudence and Growth - Pratahkal
 
के अशोक कुमार लाहिड़ी : सामान्य केंद्रीय बजट से एक दिन पहले वित्तमंत्री लोकसभा में आर्थिक सर्वे प्रस्तुत करते हैं। इस वर्ष ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि 17वीं लोकसभा का कार्यकाल मई, 2024 में खत्म होने वाला है। एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का जो अंतिम बजट पेश किया गया, वह अंतरिम बजट था। 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव के बाद जो नई सरकार चुनकर आएगी, वह वर्ष 2024-25 के लिए नियमित बजट पेश करेगी। इस तरह से वर्ष 2024-25 के लिए दो बजट होंगे। दिलचस्प बात है कि वर्ष 1947-48 में यानी आजादी के पहले वर्ष में भी भारत के दो बजट पेश किए गए थे। संविधान सभा, जिसने 1947-48 का नियमित बजट पेश किया था, वह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खत्म हो गया। इसलिए 15 अगस्त, 1947 से 31 मार्च, 1948 तक के लिए आजाद भारत के पहले वित्तमंत्री एम. शण्मुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को बजट पेश किया।
 
अंतरिम बजट में लेखानुदान शामिल है- वित्त वर्ष 2024-25 के पहले दो महीनों के लिए खर्च की स्वीकृति। यह वित्त और विनियोग विधेयकों के साथ नियमित बजट पारित होने तक सरकार को ठीक से काम करने में सक्षम बनाने के लिए अग्रिम अनुदान की तरह है। इसमें अनुदान की राशि आमतौर पर पूरे वर्ष के अनुमानित व्यय का छठा हिस्सा होती है। अंतरिम बजट में वार्षिक वित्तीय विवरण और राजस्व के साथ-साथ व्यय को भी चचर्चा होती है। इसमें कोई नया कर प्रस्ताव नहीं है। हालांकि नियमित बजट चर्चा के बाद ही पारित किया जाता है, लेकिन एक परंपरा के रूप में लेखानुदान बिना चर्चा के पारित किया जाता है।
 
अपने बजट भाषण में विसमंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि एनडीए सरकार ने पिछले दस वर्षों में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की तर्ज पर कदम उठाए और उसके सकारात्मक परिणाम निकले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले दिनों की गई घोषणा को दोहराते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि जुलाई में पूर्ण बजट में हमारी सरकार विकसित भारत के हमारे लक्ष्य का विस्तृत रोडमैप पेश करेगी।
 
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, जब दुनिया कोविड महामारी के बाद के प्रभावों, भू-राजनीतिक उथल पृथल, खासकर यूक्रेन रूस संघर्ष और एक बड़ी आर्थिक मंदी से जूझ रही है, पिछले दस वर्षों में भारत का प्रदर्शन वास्तव में प्रशंसनीय रहा है। भारत ने 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से चाहर निकाला है। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पिछले तीन वर्षों में भारत सबसे तेजी से विकास कर रहा है। वर्ष 2022 में जीडीपी के मामले में हम ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। लेकिन दुनिया की सबसे चड़ी आबादी वाले देश के रूप में हमें प्रति व्यक्ति आय के मामले में विकसित देशों की बराबरी करने और यहां तक चीन तक पहुंचने के लिए मीलों चलना होगा।
 
आजादी से पहले सदियों के अविकास या मामूली विकास की भरपाई के लिए हमें आने वाले वर्षों में दूसरों से तेजी से विकास करना होगा। हमारे कई पड़ोसियों, जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने वर्षों तक दोहरे अंकों की विकास दर बनाए रखी। ऐसे में कोई कारण नहीं है कि हम न केवल प्रति वर्ष सात-आठ फीसदी की विकास दर पाने का प्रयास करें, बल्कि उसे हासिल भी करें। नियमित आर्थिक सर्वे के बदले इस वर्ष जारी किया गया 'द इंडियन इकनॉमिकः ए रिव्यू' इस बात को लेकर आश्वस्त दिखता है कि हम 2023-24 में सात प्रतिशत या उससे अधिक की विकास दर हासिल करेंगे और 2024-25 में इसे दोहराएंगे।
 
वर्ष 2024-25 के बजट ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया कि एनडीए सरकार एक लोकलुभावन बजट पेश करेगी। मोदी सरकार ने लोकलुभावन रास्ता छोड़‌कर दुस्साहस के ऊपर विवेक का रास्ता चुना है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है कि कैसे देशों को अपने राजस्व से अधिक खर्च करने की नीतियों, बड़े राजकोषीय घाटे, उच्च मुद्रास्फीति और बाहरी मोर्चे पर भुगतान संतुलन की समस्याओं के कारण संकट उठाना पड़ा है। भारत जैसे विकासशील देश में खपत बाने और निवेश को प्रोत्साहित करने का दबाव लगातार रहता है। एनडीए सरकार ने राजस्व बढ़ाकर खर्च बढ़ाया है और अपने राजस्व से अधिक खर्च बढ़ाने तथा इस प्रक्रिया में राजकोषीय घाटा बढ़ाने के दवाव का लगातार विरोध किया है।
 
राजकोषीय संकट के समय में देश अवस्स अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पाने के लिए बजटीय राजस्व जुटाने और साचं घटाने में विफल रहते हैं। इसके अलावा, वे अक्सर सड़क, रेलवे व सिंचाई जैसी वस्तुओं पर पूंजीगत व्यय और शिक्षा व स्वास्थ्य पर खर्च कम कर देते हैं, जो दीर्घकालिक टिकाक विकास के लिए बहुत आवश्यक हैं। पर एनडीए ने ऐसा नहीं किया। इसका कुल खर्च संशोधित अनुमान के चरण में कमोबेश 45,000 अरब रूपये के बजटीय अनुमान के बराबर रहा और इसका राजकोषीय घाटा 2023-24 में 17,868 अरब (बजटीय अनुमान) से घटकर 17,348 अरब (संशोधित अनुमान) रहने की उम्मीद है। जीडीपी के अनुपात में, 2023-24 में राजकोषीय घाटे में केवल 10 आधार अंकों की कमी, बजट अनुमान पर 5.9 प्रतिशत से संशोधित अनुमान पर 5.8 प्रतिशत तक, आंशिक रूप से विभाजक में कमी के कारण सीमांत रही है। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए एनडीए सरकार ने पूंजीगत व्यय में कटौती का आसान रास्ता नही अपनाया है।
 
एनडीए सरकार को इसका श्रेय जाता है कि कर दरों में वृद्धि किए बिना, और ज्यादातर प्रक्रियाओं को सरल बनाकर तथा अनुपालन लागत को कम करके उसने राजस्व जुटाया है। जीएसटी लागू करने, कर प्रशासन सुव्यवस्थित करने और पैन व आधार को जोड़ने का लाभ खजाने को मिलने लगा है। वर्ष 2023-24 में निजी आयकर से प्राप्त राजस्व 9,006 अरब रुपये के बजट अनुमान से बढ़कर संशोधित अनुमान के चरण में 10,233 अरब रूपये पर पहुंच गया और इससे सीमा शुल्क व केंद्रीय उत्पाद कर से हुई राजस्व में कमी को पूरा किया गया। जीएसटी से राजस्व का पृर्वानुमान सटीक साबित हुआ और बजटीय अनुमान एवं संशोधित अनुमान समान रहा। कुल मिलाकर, वित्तीय लक्ष्य हासिल करने में प्रगति हुई है। अब ऐसा नहीं है कि सरकार बजट अनुमान में ऊंचे राजस्व लक्ष्यों की घोषणा करती है और फिर इसके खराब प्रदर्शन के लिए कई कारण गिनाती है। आगामी चुनाव में एनडीए और उसके घटक दल उम्मीद कर रहे हैं कि मतदाता मोदी सरकार की चतुर राजकोषीय नीतियों को अपना पूरा समर्थन देंगे।