राम से राष्ट्र की ओर

यह समय की मांग है कि प्रभु राम के विचार एवं उनके आदर्श जनमानस का हिस्सा बनें और राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता मिले

Pratahkal    29-Jan-2024
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aalekh 
 
संजय गुप्त: आखिरकार रामलला (Ralalla) अयोध्या (Ayodhya) में अपने धाम आ गए। लगभग 500 वर्ष पहले आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बकी ने राम जन्मस्थान मंदिर (Ram Janmasthan Temple) पर मस्जिद बनवाकर हिंदू समाज को जो आघात पहुंचाया था, उस पर अब जाकर मरहम लगा। यह काम स्वतंत्रता के बाद ही हो जाना चाहिए था, जैसे सोमनाथ मंदिर का जीणोंद्धार करके किया गया, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी आवश्यकता नहीं समझी। इसका कारण उनकी सेक्युलरिज्म की अपनी अवधारणा और तुष्टीकरण की राजनीति ही रहा । नेहरू के बाद के प्रधानमंत्रियों ने भी अयोध्या मामले की अनदेखी की। इस अनदेखी के चलते ही अयोध्या आंदोलन ने आकार लिया। इसकी भी अनदेखी की गई। इसके चलते ही मंदिर की जगह बनाया गया मस्जिद का ढांचा ढहा। यह ठीक है कि अंततः न्यायपालिका ने अयोध्या मामले में अपना फैसला सुनाया, लेकिन यह एक तथ्य है कि उसके स्तर पर भी देरी हुई। राम जन्मस्थान पर राम मंदिर के निर्माण में अनावश्यक देरी की ओर संकेत करते हुए ही प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी ही तपस्या से कोई कमी रह गई होगी, जो मंदिर बनने में इतना विलंब हुआ।
 
22 जनवरी को हुए राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट (Shri Ram Janmabhoomi Teerth Trust) और विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) ने देश के हर वर्ग से लोगों को बुलाया। इनमें विरोधी दलों के नेता भी शामिल थे, लेकिन कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेताओं ने इस आयोजन से दूरी बना ली। कांग्रेस के इस फैसले पर इसलिए हैरानी हुई, क्योंकि वह इसका श्रेय लिया करती थी कि अयोध्या में विवादित ढांचे का ताला राजीव गांधी ने खुलवाया था और उन्होंने ही मंदिर का शिलान्यास कराया था। इसके अलावा कुछ समय पहले तक राहुल गांधी मंदिर मंदिर जाते थे। यह मानने के अच्छे भले कारण हैं कि वह ऐसा होने का दिखावा करते थे और इसके पीछे उनका उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ लेना था। जब उन्हें मंदिरों के चक्कर काटने से कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला तो वह मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति पर उतर आए। इसमें संदेह नहीं कि तुष्टीकरण की इसी राजनीति के कारण कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया। इस समारोह में शामिल न होना अलग बात थी और उसका बहिष्कार करना अलग बात ।
 
अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करना इसलिए कांग्रेस की एक बड़ी भूल है, क्योंकि यह महज एक मंदिर नहीं है। यह देश की अस्मिता और उसके स्वाभिमान का भी प्रतीक है। राम मंदिर भारत की पहचान से जुड़ा है। इस पहचान को महत्ता प्रदान करने का काम सभी दलों को करना चाहिए था। अब देश में राजा - महाराजा तो हैं नहीं कि देश की पहचान बचाने बढ़ाने के लिए वे आगे आते। आज के युग में तो यह काम राजनीतिक दलों को ही करना होगा, चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में। यह विडंबना है कि राम मंदिर जैसे जिन प्रतीकों से भारत की पहचान बनती है और देश के स्वाभिमान को बल मिलता है, उनसे मुंह मोड़ने का ही काम अधिक किया गया। जब अधिकांश राजनीतिक दल भारतीयता
और भारतीय संस्कृति के प्रतीकों की अनदेखी कर रहे थे, तब भाजपा और उसके पूर्व अवतार जनसंघ ने उन्हें अपनाया। भाजपा जैसे अनुच्छेद 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता लाने को लेकर प्रतिवद्ध रही, वैसे ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर भी। यह कहा जाता रहा है कि भाजपा ने अयोध्या मामले में राजनीति की, लेकिन यह एक सार्थक और सकारात्मक राजनीति थी। राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर सकारात्मक राजनीति ही होनी चाहिए। भाजपा को इस सकारात्मक राजनीति का लाभ भी मिला। यह लाभ उसे आगे भी मिलेगा।
 
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने राम की महिमा का बखान करते हुए यह सही कहा कि भारत के सामाजिक भाव की पवित्रता से अनभिज्ञ कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। ऐसा कहने वालों को उन्होंने यह सटीक जवाब दिया कि राम आग नहीं ऊर्जा हैं। राम विवाद नहीं, समाधान है। राम विजय नहीं, विनय हैं। उन्होंने देशवासियों से अगले हजार वर्ष के भारत की नींव रखने का आह्वान करते हुए कहा कि हमें अपने अंत:करण और चेतना को विस्तार देते हुए देव से देश और राम से राष्ट्र की भावना को साकार करना होगा। उन्होंने यह जो कहा कि राम मंदिर का कार्य पूरा हो गया, अब राष्ट्र निर्माण का संकल्प लेना होगा, उस पर देशवासियों को गंभीरता से ध्यान देना होगा। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को एक नए युग की शुरूआत बताया। वास्तव में ऐसा ही है। राम मंदिर ने देशवासियों में जैसी ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है, वह उन्हें आत्मिक संतोष और बल प्रदान करने वाला है। इसका उपयोग देश के उत्थान में किया जाना चाहिए। इससे ही एक सक्षम भारत का निर्माण किया जा सकता है। यह समय की मांग है कि राम के विचार और उनके आदर्श जनमानस का हिस्सा बनें। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी देशवासियों को एक आवश्यक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि रामलला तो आ गए, अब रामराज्य लाने की जिम्मेदारी रामभक्तों की है। उन्होंने यह सही कहा कि हम सब इस देश की संतानें हैं। अब हमें कलह को विदाई देनी पड़ेगी और छोटी- छोटी बातों को लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़नी होगी । निःसंदेह यह तभी संभव होगा, जब रामलला जिस धर्म स्थापना का संदेश लेकर आए हैं, उसे हम खुले मन से ग्रहण करें।
 
भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने एक पुत्र, पति, शासक के रूप में तमाम कष्ट सहते हुए समस्त मर्यादाओं का पालन किया। आज जब सभी इससे भाव विभोर हैं कि अयोध्या में प्रभु राम के जन्मस्थान पर उनके नाम का भव्य मंदिर बन गया, तब फिर सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे देश को आगे ले जाने के लिए एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें। भारत आज एक ऐसे मोड़ पर है, जहां से उसे अगले तीन-चार दशकों में एक सर्वश्रेष्ठ देश के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम सबको अपने जीवन में राम के आदशों को उतारना पड़ेगा ।