संजय गुप्त... तमिलनाडु (tamilnadu) के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (CM MK Stalin) के बेटे और मंत्री उदयनिधि स्टालिन (Udayanidhi Stalin) ने सनातन धर्म (Sanatan dharma) को डेंगू और मलेरिया बताते हुए यह जो कहा कि उसका विरोध नहीं, बल्कि पूरी तरह खात्मा कर दिया जाना चाहिए, उस पर भाजपा (bjp) के साथ हिंदू संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया होनी ही थी। इसके बाद भी वह अपने बयान पर कायम हैं। उदयनिधि के बाद उन्हीं की पार्टी यानी द्रमुक (dmk) के एक अन्य नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा (A raja) ने सनातन धर्म को एड्स और कुष्ठ रोग जैसा करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन धर्म केवल भारत के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए खतरा है।
आश्चर्य यह है कि एमके स्टालिन समेत द्रमुक के अन्य नेता उदयनिधि के बयान को सही ठहरा रहे हैं। साफ है कि इसके चलते यह मुद्दा शांत होने वाला नहीं। उदयनिधि के बेतुके और भड़काऊ बयान का संज्ञान खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने लिया और यह कहा कि इसका समुचित जवाब दिया जाना चाहिए। उन्होंने बीते दिनों मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में एक सभा को संबोधित करते हुए विपक्षी दलों के गठबंधन आइएनडीआइए पर यह कहते हुए प्र कि यह गठजोड़ भारत (India) की उन पंरपराओं, विचारों और संस्कृति को खंड-खंड करना चाहता है, जिसने हजारों वर्षों से देश को जोड़े रखा है। प्रधानमंत्री ने सनातन धर्म के अपमान को आइएनडीआइए का गुप्त एजेंडा बताते हुए यह भी याद दिलाया कि गांधी (gandhi) जी ने किस तरह सनातन संस्कृति का सहारा लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जिस सनातन को महात्मा गांधी (Mahatma gandhi) ने जीवन पर्यंत माना और जिस सनातन ने उन्हें अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया, उसे आइएनडीआइ के लोग समाप्त करना चाहते हैं।
द्रमुक कांग्रेस का सहयोगी दल ही नहीं, आइएनडीआइए का एक प्रमुख घटक है। द्रमुक नेताओं के सनातन धर्म विरोधी आपत्तिजनक बयानों ने इस गठबंधन के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। कुछ घटक दलों ने द्रमुक नेताओं के बयानों से असहमति जताई है, लेकिन कांग्रेस ने केवल इतना ही कहा, हम सभी धर्मों को साथ लेकर चलते हैं। किसी धर्म को कमतर नहीं करना चाहिए । संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता और कांग्रेस सर्वधर्म समभाव में विश्वास करती है।
कांग्रेस (congress) के नेता उदयनिधि और ए. राजा के बयानों की आलोचना नहीं कर सके। यह किसी से छिपा नहीं कि भाजपा जनसंघ के समय से ही हिंदुत्व को प्रमुखता देती रही है। वह हिंदुत्व को भारतीयता का पर्याय मानती है और जब कभी हिंदुत्व को लेकर कहीं कोई अनुचित बयान दिया गया तो उसने उसका खुलकर विरोध किया। कांग्रेस और आइएनडीआइए के घटक इससे अवगत हैं कि अतीत में हिंदुत्व या हिंदू संस्कृति पर बेतुके बयान देने वालों को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन वे उदयनिधि की आलोचना नहीं कर पा रहे हैं।
तुष्टिकरण की राजनीति के तहत जब भी किसी दल ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर बेजा टिप्पणियां कीं, उनकी हिंदू समाज के साथ भाजपा ने निंदा की। हिंदुत्व तो भाजपा के डीएनए में है। इसी कारण उसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए शुरू किए गए आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। भाजपा विरोधी दल भले ही अपने एजेंडे के तहत हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा करते रहे हों, लेकिन भाजपा ने उससे कभी समझौता नहीं किया। उसने उसे राजनीतिक चश्मे से भी नहीं देखा । राम मंदिर का निर्माण भाजपा का उसी तरह कोर एजेंडा रहा, जैसे समान नागरिक संहिता। इस पर आश्चर्य नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर का भव्य निर्माण सुनिश्चित करने के बाद भाजपा अब समान नागरिक संहिता की पैरवी कर रही है। उसका मानना है कि समान नागरिक संहिता का निर्माण तुष्टिकारण की राजनीति का खात्मा करेगा और देश में एकता का भाव जगाएगा।
यह भाजपा की हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता का ही परिणाम रहा कि समय-समय पर उसके विरोधी दलों ने हिंदू समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नरम हिंदुत्व का सहारा लिया और राम मंदिर पर आए फैसले का स्वागत किया। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से तो कांग्रेस भी स्वयं को हिंदुत्व से जोड़ती दिखी। राहुल गांधी मंदिरों में जाते और पूजा-पाठ करते दिखे। इससे उन्हें कोई राजनीतिक लाभ इसलिए नहीं मिला, क्योंकि देश की जनता यह समझ रही थी कि केवल राजनीतिक कारणों के तहत ही वह मंदिर - मंदिर जा रहे हैं और खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण बता रहे हैं। सनातन संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है। उसके धार्मिक ग्रंथों में कहीं पर भी जातिवाद, छूआछूत आदि की बातें नहीं की गईं, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि परिस्थितियों के चलते हिंदू समाज में जातिवाद घर कर गया और छूआछूत की भावना भी फैली। इसके चलते दलित कही जाने वाली जातियों को मंदिरों में प्रवेश करने से रोका गया। हिंदू समाज ने इन विसंगतियों को दूर 2024करने की पहल स्वयं की। इन विसंगतियों और बुराइयों से हिंदू समाज ने आजादी के पहले से ही लड़ना शुरू कर दिया था। इसी कराण जातिगत भेदभाव और छूआछूत के खिलाफ कानून बनाए गए। यह लड़ाई अब भी जारी है। और उसे जारी रखने की आवश्यकता भी है।
हिंदू समाज में जातिवाद और छुआछूत जैसी बुराइयों को रेखांकित कर द्रमुक जैसे कुछ दलों ने अपना राजनीतिक आधार बढ़ाया। इससे समाज में एक तरह का विभाजन पैदा हुआ और इन दलों ने इसका राजनीतिक लाभ उठाया । यह स्पष्ट है कि द्रमुक नेता राजनीतिक कारणों से ही सनातन धर्म पर बेजा और उकसावे वाली टिप्पणियां कर रहे हैं। हो सकता है कि सनातन धर्म पर द्रमुक नेताओं के भड़काऊ बयानों से उन्हें तमिलनाडु में कुछ राजनीतिक लाभ मिल जाए, लेकिन उनके कारण शेष देश में आइएनडीआइए की कठिनाई बढ़ने वाली है । द्रमुक और उसके सहयोगी दलों के नेताओं को इसका भान होना चाहिए कि सनातन धर्म को अपमानित कर भाजपा के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकते। यह तय है कि भाजपा नेता द्रमुक नेताओं के बयानों और उन पर आइएनडीआइए के कई घटकों की चुप्पी या फिर लीपापोती को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली। यह विचित्र है कि जो कांग्रेस खुद को गांधीजी के मूल्यों का वारिस बताती है, वह द्रमुक नेताओं के सनातन धर्म को अपमानित करने वाले बयानों की निंदा नहीं कर पा रही है।