भारत के डायलाग और डिप्लोमेसी के नजरिये को दिखाते हुए जी-20 सम्मेलन संपन्न हो गया। भारत ने जिस तरीके से दिल्ली उद्घोषणा में पूरी संवेदनशीलता के साथ वैश्विक चुनौतियों और समाधान के मुद्दे को एक साथ उठाया है, उससे भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और एनएसजी जैसे संगठनों की स्थायी सदस्यता ग्रहण करने की राह आसान East-EL होगी। एक ऐसे समय में, जब विश्व के देश अपनी संरक्षणवादी नीतियों से समझौता नहीं करते दिख रहे, जी -20 के मंच पर सर्वसम्मति बनना नए दौर में बहुपक्षीयतावाद के मोर्चे पर शुभ संकेत है ।
विवेक ओझा... विश्व की सबसे तेज गति से उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था (Economy) के रूप में भारत (India) ने जी -20 (G-20) नेताओं के शिखर सम्मेलन (Summit) का आयोजन करते हुए दिल्ली (Dehli) उद्घोषणा, 2023 को अंगीकार किया है। हालिया संपन्न शिखर बैठक के दौरान 9 सितंबर को भारत ने विश्व समुदाय को अपना विजन स्पष्ट कर दिया। भारत ने जी -20 के आधिकारिक घोषणापत्र में कहा है कि वर्तमान युग युद्ध का नहीं हो सकता। यह कहकर भारत ने संदेश दे दिया है कि चाहे रूस यूक्रेन (Ukraine) के बीच युद्ध हो या चीन (China) द्वारा ताइवान (Taiwan), तिब्बत (Tibet) को दी गई धमकी हो, चाहे इजरायल (Israel) और फिलिस्तीन (Palestine) के बीच युद्ध हो, ये न तो स्वीकार्य हैं, न ही वांछनीय। वस्तुत: भारत ने भू-राजनीतिक शत्रुता रखने वाले देशों को वैश्विक जिम्मेदारी का अहसास कराने की कोशिश की है। क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का हर हाल में सम्मान करने की बात कर भारत ने परोक्ष रूप से अरूणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh), लद्दाख (Ladakha), गुलाम जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान (Pakisthan) को संदेश भी दे दिया। जी-20 समिट में भारत ने कहा है कि किसी भी रूप और प्रकृति का आतंकवाद स्वीकार्य नहीं है। इस रूप में जी- 20 घोषणापत्र में भारत ने अपने जीरो टालरेंस पालिसी को ही दर्शाया है। जी -20 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी पांचों स्थायी सदस्य शामिल हैं, जो देश ग्लोबल पालिसी मेकर्स और नीति क्रियान्वयनकर्ता की भूमिका में रहे हैं और इन देशों व इनके साझेदारों को भारत के बारे में यह विश्वास हो चुका है कि भारत विश्व राजनीति, समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में एक बेहतर बदलाव लाने के लिए बड़ी भूमिका निभा सकता है।
भारत वैश्विक संस्थागत मूल्यों में विशेष आस्था प्रदर्शित करता आया है जी-20 समिट में भी इसे देखा गया है। अफ्रीकी संघ को जी -20 का स्थायी सदस्य बनाने के लिए भारत की पहल इसी बात का परिचायक है। अफ्रीकी संघ (African Union) की सदस्यता से भारत को कई और फायदे हैं। 55 देशों वाले अफ्रीकी संघ के बारे में कहा जाता है कि पिछली सदी जहां एशिया की थी, वहीं अगली सदी अफ्रीकी महाद्वीप की होगी। अफ्रीका के प्राकृतिक गैस, तेल, खनिज, यूरेनियम, हाइड्रोकार्बन के भंडार, एक बड़ा बाजार और हिंद महासागर (Indian Ocean) की सुरक्षा में अफ्रीकी देशों की भूमिका उन्हें ग्लोबल पालिटिक्स में एक विशेष जगह दिलाने में सक्षम है।
भारत ने अफ्रीकी संघ की जी -20 में शामिल होने की वकालत करके यह साबित किया है कि उसका 'ग्लोबल साउथ' कहे जाने वाले विकासशील देशों का नेतृत्व करने का दावा गलत नहीं है । उधर अफ्रीका भर में चीन, रूस (Russia), तुर्की (Turkey) और अमेरिका (America) समेत भारत ने काफी निवेश किया है। अफ्रीकी महाद्वीप में इन देशों के बीच इस बात की होड़ है कि अफ्रीका पर कौन कितना असर बनाने में कामयाब हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन (Climate change) और ग्लोबल वार्मिंग (global warming) से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना जरूरी हो गया है। वहीं इस शिखर सम्मेलन के पहले दिन भारत- मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनमिक कारिडोर पर बहुत महत्वपूर्ण समझौता हुआ है और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, सऊदी अरब के प्रिंस सलमान और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों समेत कई राष्ट्राध्यक्षों ने इस प्रोजेक्ट की सराहना की है। यह भविष्य में भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम होगा। यह पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबल दिशा प्रदान करेगा। इसे चीन के दो प्रोजेक्ट 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' और 'चीन-पाकिस्तान इकोनमिक कारिडोर' (China-Pakistan Economic Corridor) का जवाब भी माना जा रहा है। भारत- मिडिल ईस्ट- यूरोप इकोनमिक कारिडोर अपनी तरह का पहला आर्थिक गलियारा होगा, जिसमें भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका को शामिल किया गया है।
संरचना और उद्देश्य : जी-20 विश्व के 20 सर्वाधिक औद्योगिकृत देशों का संगठन है जिसका गठन वर्ष 1999 में जी - 7 सदस्य देशों ने किया था। इसे विकासशील और विकसित देशों के मध्य आर्थिक संवाद के ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस: इस एलायंस एक फोरम के रूप में गठित किया गया था।
जी - 20 वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित चुनौतियों जैसे आर्थिक मंदी, वैश्विक निर्धनता और बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, खाद्य असुरक्षा, काला धन, मनी लांड्रिंग, आर्थिक अपराध आदि से निपटने के लिए रणनीतियां बनाता है। ब्लैक मनी और मनी लांड्रिंग से निपटने के लिए जी-20 ने राष्ट्रों से समय समय पर अपील की है। वैश्विक स्तर पर कंपनियों द्वारा कर की चोरी रोकने और गंभीर आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए भी जी -20 ने एजेंडा निर्धारित किया है। इसके साथ ही जी-20 संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन में सुधार की बात करता है।
इसमें यूरोपीय संघ एक स्थायी सदस्य है। इसकी बैठक में आइएमएफ, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। वैश्विक वित्तीय चुनौतियां, मुद्रास्फीति, पेट्रोलियम की कीमतों का बढ़ना, रूपये या डालर का अवमूल्यन, विश्व के कई हिस्सों में आर्थिक संकट, शरणार्थियों का विस्थापित होना, भुगतान संतुलन संकट, वैश्विक बेरोजगारी और निर्धनता, खाद्यान्न असुरक्षा, कुपोषण, मानव और वन्य जीवों की तस्करी और ग्लोबल वार्मिंग जैसी स्थितियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित कर रही हैं। ऐसे में दुनिया के 20 शीर्षस्थ औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों पर यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करें ।