चीन और पाकिस्तान से परहेज

एससीओ के आगामी शिखर सम्मेलन को लेकर वर्चुअल रूप में आयोजित करने का फैसला करके भारत ने चीन और पाकिस्तान को एक जरूरी संदेश दे दिया.

Pratahkal    07-Jun-2023
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Pratahkal - Lekh Update - Avoid China and Pakistan 
विजय क्रांति
 
शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के चार जुलाई को प्रस्तावित शिखर सम्मेलन को लेकर भारत की इस घोषणा ने सभी को चौंका दिया कि इसका आयोजन अब वर्चुअल रूप में किया जाएगा। जो लोग यह अनुमान लगाने में व्यस्त थे कि सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भाग लेंगे या नहीं, वे अब इस कयासबाजी में जुट गए हैं कि भारत ने आखिर ऐसा फैसला क्यों किया? दो जून को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इन सवालों के जवाब में कहा कि हमने यह फैसला किसी एक विशेष कारण से नहीं लिया, बल्कि वर्तमान स्थिति के विभिन्न पहलुओं को ध्यान खते हुए किया कि आगामी शिखर सम्मेलन को वर्चुअल रूप में करना ही अधिक उपयोगी रहेगा। हालांकि इस घोषणा से पहले ऐसे समाचार आए कि इस शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली के प्रगति मैदान में निर्माणाधीन अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हाल को समय रहते तैयार रखने के प्रयास चल रहे थे। विकल्प के तौर पर राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में इसके आयोजन की संभावना की भी चर्चा थी। इससे पहले गोवा में एससीओ विदेश मंत्रियों के सम्मेलन के दौरान पांच मई को भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने भाषण के अंत में यह कहकर नई दिल्ली में नेताओं की व्यक्तिगत भागीदारी की उम्मीदें बढ़ा दी थीं कि हम सब मिलकर नई दिल्ली में एससीओ शिखर सम्मेलन को बहुत बड़ी सफलता बना सकते हैं।
 
स्पष्ट है कि इस सम्मेलन में भले ही शासनाध्यक्षों की सहभागिता की संभावनाएं बढ़ गई हों, मगर इस दौरान नेताओं की आपसी बातचीत के लिए कोई संभावना शेष नहीं। कहने को तो इससे शिखर सम्मेलन का महत्व कुछ कम हो जाएगा, लेकिन मेजबान भारत के साथ चीन और पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए इसे असहजता से बचने वाली स्थिति कहना उपयुक्त होगा। भारत ने एससीओ शिखर सम्मेलन को वर्चुअल रूप में आयोजित करने का फैसला करके चीन के साथ पाकिस्तान को एक संदेश भी दिया और वह यही है कि मौजूदा हालात में उनके साथ रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते । चिनफिंग और शहबाज शरीफ की व्यक्तिगत उपस्थिति के बावजूद मेजबान भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का उनके साथ अलग बैठक न करना या फिर मात्र दिखावे भर की अर्थहीन बैठक कर रस्म अदायगी कर लेना परस्पर संबंधों के लिए भी उचित न होता। शायद यही कारण है कि बागची ने जब अपने बयान में यह जोड़ा कि शिखर सम्मेलन के वर्चुअल रूप में होने का यह अर्थ भी है कि सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय वार्ताओं की कोई संभावना नहीं होगी। उनके बयान का मर्म समझें तो भारत की अध्यक्षता में हो रहे इस सम्मेलन में कड़वाहट पैदा होने की एक आशंका टल गई। उल्लेखनीय है कि एससीओ का गठन चीन की पहल पर ही सितंबर 2003 में हुआ था। आरंभ से ही यह चीनी वर्चस्व वाला संगठन रहा। भारत और पाकिस्तान इसमें स्वेच्छा से और अपनी- अपनी रणनीति के तहत जून 2017 में शामिल हुए थे। चीन ने अपने हितों को देखते हुए रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान को इसमें शामिल किया। राष्ट्रपति शी की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना का न केवल बहिष्कार, बल्कि उसका खुला विरोध करने के बाद भी भारत का एससीओ में शामिल होना एक बड़ी कूटनीतिक घटना थी । इसमें शामिल होकर भारत को इन देशों के और निकट आने एवं मध्य एशिया में चीन तथा पाकिस्तान के संदर्भ में अपने हितों को सुरक्षित रखने का एक ऐसा अवसर मिला, जिसे कूटनीति की भाषा में बोनस माना जाना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि एससीओ गठन के बाद इसका यह 22वां शिखर सम्मेलन होगा और यह पहली बार है जब भारत को इसकी अध्यक्षता करने और मेजबानी का अवसर मिला है।
 
सम्मेलन को वर्चुअल रूप में करने की घोषणा को लेकर सरकार ने अपना पक्ष तो रख दिया, लेकिन किसी भी कारण को लेकर बहुत ठोस वजह नहीं बताई है। ऐसे में इसके पीछे के कारणों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। इनमें से एक वजह लद्दाख में चीनी आक्रामकता मानी जा रही है, जिसके जवाब में मोदी सरकार ने चीन के साथ वार्ता से परहेज की नीति अपनाई। चीन के साथ अतीत के अनुभव भी अच्छे नहीं रहे। पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने पड़ोसी देशों के नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था, लेकिन उसमें चीनी राष्ट्रपति को नहीं बुलाया। फिर चीनी आग्रह पर शी चिनफिंग की भारत यात्रा हुई, लेकिन उस यात्रा का कड़वा अनुभव भुलाए नहीं भूला जा सकेगा । चिनफिंग के दौरे के समय ही चीनी सेना के लद्दाख में घुस आने पर जब मोदी सरकार ने चिनफिंग की भारत यात्रा को बीच में समाप्त करने की धमकी दी थी तब मजबूर होकर शी को अपनी फौज को रातोंरात वापस पीछे हटने का आदेश देना पड़ा था। इसलिए शिखर सम्मेलन के लिए भारत की यात्रा का विचार शायद शी के लिए भी बहुत सहज न हो। इसी तरह पाकिस्तान की आतंकवाद पर नीति के विरूद्ध उसके साथ कूटनीतिक रिश्तों को ठंडे बस्ते में रखने की भारतीय नीति ने भी प्रधानमंत्री शरीफ की उपस्थिति पर प्रश्न चिह्न लगा दिए थे। इन्हीं दिनों रूसी राजधानी पर यूक्रेन के हवाई हमलों से उपजी स्थिति ने भी राष्ट्रपति पुतिन की उपस्थिति पर शंकाएं उत्पन्न कर दी थीं। भारत के सबसे बड़े हितैषी की अनुपस्थिति यकीनन भारत के लिए कठिनाई पैदा कर देती ।
 
वस्तुतः, कूटनीति का पहला नियम ही यही है कि मौजूदा परिस्थितियों के बीच अपने राष्ट्रीय हित में उनका पूरा लाभ उठाया जाए और मौका मिलते ही प्रतिकूल परिस्थितियों को बदलकर अपने अनुकूल बनाया जाए। इसलिए शिखर सम्मेलन को वर्चुअल रूप में आयोजित करना शायद एससीओ के सभी दिग्गज देशों के लिए साझा सुविधा का सही विकल्प है।