मुंबई । मुंबई (Mumbai) को आध्यात्मिकता के आलोक से आलोकित करने अग्रसर आचार्य महाश्रमण (Acharya Mahashraman) मंगलवार को पारगांव से प्रस्थान कर खाणिवडे पहुँचे, जहां लोगों ने उनका अभिनंदन किया। आचार्य तुलसी (Acharya Tulsi) के महाप्रयाण दिवस पर मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जैन शासन में आचार्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। तेरापंथ के प्रथम आचार्यश्री भिक्षु हुए। तेरापंथ धर्मसंघ (Terapanth Sangh) को स्थापित हुए लगभग 263 वर्ष हो गए। आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा तेरापंथ की स्थापना का दिन है। अब तक अतीत में दस आचार्य हो चुके हैं। तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें आचार्य गणाधिपति तुलसी (Ganadhipati Tulsi) हुए। वे 22 वर्ष की उम्र में ही वे धर्मसंघ के सरताज बन गए। धर्मसंघ में उनका सर्वाधिक लम्बा आचार्यकाल रहा। उनका अलग ही व्यक्तित्व था। वे राजस्थान से कोलकाता और फिर राजस्थान से दक्षिण भारत में भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी तक पधारे थे। वे कोलकाता, दक्षिण भारत जाने वाले तेरापंथ के प्रथम आचार्य थे। आज के दिन ऐसे महान व्यक्तित्व का महाप्रयाण हो गया। वे तेरापंथ धर्मसंघ के पहले आचार्य थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में ही आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने पद का विसर्जन कर आचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। आज के दिन उनका सश्रद्धा स्मरण करते हैं। उनके जीवन से प्रेरणा, पथदर्शन आदि अनेक रूपों में प्राप्त हो। साध्वीप्रमुखा ने भी आचार्य तुलसी के प्रति विनयांजलि समर्पित की। मुनि अभिजीतकुमार ने संस्कृत भाषा में अभिव्यक्ति दी। मुनि अनेकांतकुमार ने गीत का संगान किया।