जयपुर (कासं ) । जन्म अकेले का होता है और विकसित भी खुद को ही करना पड़ता है न तो कोई समाज साथ देगा न ही परिवार और ना ही कोई समूह साथ देगा। अपने को ही खुद को विकसित करना होगा। पहले निर्भर फिर आत्मनिर्भर फिर परस्पर निर्भर की यात्रा होती है ब्रेन की। मन को समझने पर कैपेसिटी कई गुना बढ़ जाती है, अभी हम समझने का प्रयास करते हैं बाहर देखकर लेकिन ज्ञानियों ने कहा की बेसिक से ही मन को पकड़ा जा सकता है, बीच में से मन को समझा नहीं जा सकता खुद के साथ ईमानदारी हो तो ही कर सकता है। विकास मन का मनुष्य कई बार खुद को धोखा दे देता है उसे नुकसान भी उसी का होता है। क्योंकि लक्ष्य की स्पष्टता नहीं होती अगर लक्ष्य स्पष्ट हो तो धारा नदी में परिवर्तित हो जाते है और नदी महानदी में परिवर्तित हो जाती है और महानदी सागर में परिवर्तित हो जाती है धारा को सागर में जोड़ना पड़ता है अगर लक्ष्य सागर का हो तो ही नदी मिलेगी। (Param Alayji) परम आलयजी ने यह बात सन टयू हयुमन की ओर से भवानी निकेतन में आयोजित छह दिवसीय आयोजन के तहत उपस्थित रहें। परम आलयजी ने आगे कहा कि बाहर के पदार्थ साधन है, दृश्य से अदृश्य को पकड़ने के, आकाश से निराकार भेद से अभेद की यात्रा करने के, बाहर अटकना मत साधन में, आप जितने भी मंदिर है, वह साधन है हमारे अंदर के निराकार को निखारने के अदृश्य बहुत बड़ा होता है और दृश्य बहुत छोटा होता है, पृथ्वी भी एक साधन है व्यक्ति के विकास के लिए मन की गति बहुत आवश्यक है। गति फैलना है और अगति सिकुड़ना है जितनी गति बढ़ेगी उतना मन विकसित होगा।
आनंद अति संवेदनशील है गति धर्म है, अगति अधर्म हैं। व्यक्ति किसी समाज का नहीं होता व्यक्ति किसी समूह का नहीं होता है व्यक्ति पूरे ब्रह्मांड का हिस्सा है। अपने को बदलने से शुरुआत करना है हमे अगर स्पेस और टाइम को जोड़गे तो जीवन का विकास आसान हो जाएगा। अच्छाई और बुराई दोनों का समाविष्ट उपयोग ही विकसित मनुष्य की पहचान है, हमारे शरीर में आधी अग्नि सूर्य की है और आधी अग्नि चंद्रमा की है जिससे शीतलता आती है।