हर्षवर्धन त्रिपाठी
इस बार रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का देश के नाम संबोधन नहीं हुआ, लेकिन आरबीआई (रिजर्व बैंक आफ इंडिया) की तरफ से जारी सूचना देश के नाम प्रधानमंत्री के संबोधन के छोटे संस्करण जैसी ही थी। उसने दो हजार रूपये के नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला लिया है। हालांकि इस बार राहत यह है कि हर किसी को एक बार में दो हजार रूपये के दस नोट यानी बीस हजार रूपये बदलने की सुविधा दी गई है। साथ ही बैंकों में कितने भी दो हजार रूपये के नोट जमा किए जा सकते हैं। नोटबंदी के आलोचक फिर से मैदान में कमर कसकर कूद गए हैं। उनका सवाल है कि नोटबंदी से क्या मिला था और अब इससे क्या मिलेगा? इसका उत्तर एक ही है कि देश को भ्रष्टाचार दीमक की तरह खा रहा है इस दीमक का जब तक पक्का इलाज नहीं होगा, तब तक देश में सामान्य लोगों को लोकतंत्र का अहसास नहीं होगा, जिन्हें संविधान में हम भारत के लोग के तौर पर परिभाषित किया गया है। 2016 में जब नोटबंदी की थी और पांच सौ और हजार के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था तो लोगों के लिए बहुत मुश्किल पैदा हो गई थी, क्योंकि थोड़े बहुत हर किसी के पास वे नोट थे। अचानक नोट बंद करने से अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया। यह भी कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था एकदम से रूक गई, लेकिन काले धन की स्थिति की कुछ ऐसी बन गई थी कि एक बार में सफाई जरूरी थी। पूरा काला धन निकालने के लिए कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन रोकना ही होता है। नोटबंदी का प्रभाव लंबे समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था में रहा, लेकिन तंत्र में मौजूद काला धन एक झटके में साफ हो गया।
नोटबंदी के बाद वित्त मंत्रालय की फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट के अधिकारियों का काम कई गुना बढ़ गया था । अनाप-शनाप काला धन रखने वाले पकड़े जा रहे थे। लाखों कंपनियों को सिर्फ नकदी को काला - सफेद करने के लिए चलाया जा रहा था । भ्रष्टाचार को संगठित तरीके से कारोबार की तरह चलाने वाले चिल्ला रहे थे कि सरकार देश के गरीब लोगों को परेशान कर रही है। देश का गरीब खुश हो रहा था कि भ्रष्टाचारी पहली बार इस तरह से परेशान हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस लड़ाई के अपेक्षित परिणाम आए । भारत डिजिटल लेनदेन के मामले में दुनिया में अव्वल बन गया है। नकद लेकर और खाते में डालकर उसे सफेद कर देने वाले कम हो गए हैं।
पिछली बार हुई नोटबंदी ने देश में भ्रष्टाचारियों के मन में बड़ा डर पैदा कर दिया है, लेकिन एक जायज प्रश्न उस समय भी मोदी सरकार से पूछा जा रहा था कि जब पांच सौ और एक हजार रूपये के नोट बंद किए जा रहे हैं तो फिर भ्रष्टाचारियों के लिए अधिक सुविधाजनक दो हजार रूपये के नोट क्यों छापे जा रहे हैं? इसका उत्तर सीधे सरकार की तरफ से नहीं दिया गया, लेकिन अर्थशास्त्र समझने वालों के लिए और सामान्य समझ के लिहाज से भी यह कोई बड़ी पहेली नहीं है कि जब देश में चलन में रही करीब नब्बे प्रतिशत मुद्रा चलन से बाहर हो गई तो उसकी भरपाई इतनी तेजी में कैसे हो पाएगी। उस समय आरबीआई ने नियमों में दो दर्जन से भी अधिक बदलाव किए थे, क्योंकि बहुत कोशिश करके भी लोगों की नकदी की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा था। दो महीने में ही सरकार और आरबीआई कुछ राहत दे पाए। यह भी इसीलिए हो सका था, क्योंकि भारत सरकार ने आरबीआई को दो हजार रूपये के नोट उसी अनुपात में छापने के निर्देश दिए थे। जैसे ही नकदी का संतुलन बना आरबीआई ने दो हजार रूपये के नोट छापने बंद कर दिए। धीरे-धीरे पांच सौ रूपये के नोटों से उसकी भरपाई की गई। संतुलित, दीर्घकालिक योजना पर सरकार काम कर रही थी । दुनिया के किसी देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध ऐसी लड़ाई का उदाहरण नहीं मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जनता का भरोसा प्रधानमंत्री मोदी पर है कि भ्रष्टाचार के मामले में वह समझौता नहीं कर सकते, लेकिन भ्रष्टाचार मनुष्य की प्रवृत्ति में शामिल रहता है। कहीं कम, कहीं ज्यादा। इसको इस तरह से भी अच्छी तरह से कर दी जाए, लेकिन एक बार की समझ सकते हैं कि नाली की सफाई कितनी भी सफाई से काम नहीं चलता है। समय-समय पर उसकी सफाई करनी ही पड़ती है।
सरकारी योजनाओं के जरिये सुशासन लाने में भ्रष्टाचार के विरूद्ध नियमित लड़ाई की बड़ी आवश्यकता है। इसे प्रधानमंत्री मोदी ने समझकर लोगों को समझा भी दिया है। दो हजार के नोट चलन से बाहर करने की आरबीआई की सूचना में स्पष्ट लिखा है कि दो हजार रूपये के 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले छपे हैं। इन नोटों की आयु करीब पांच वर्ष है। इसका सीधा- सा मतलब यह भी हुआ कि सरकार ने इन नोटों को इतने समय के लिए ही छापा था । हम सबको ध्यान में है कि दो हजार के गुलाबी नोटों के बहुत हल्के होने को लेकर भी खूब चर्चा हुई थी कि ये नोट कितने समय तक चल पाएंगे। दरअसल उन नोटों को लंबे समय तक चलाना ही नहीं था । एक मुश्किल अवश्य है कि सामान्य लोगों के पास भी जो दो हजार के नोट गलती से रह गए होंगे, उन्हें कई दुकानदार अब नहीं लेंगे, लेकिन यह 2016 जैसी समस्या नहीं है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध नियमित लड़ाई से ही देश बेहतर बन सकता है और लोग इस बात पर प्रसन्न हो सकते हैं कि देश का प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के विरूद्ध नियमित लड़ाई के लिए मन बनाकर बैठा है । लोग भी निजी जीवन में काला धन कमाने की प्रवृत्ति कम करें, क्योंकि कब कौन-सी मुद्रा
चलन से बाहर हो जाएगी, उसके बाहर होने का सिर्फ एक आधार होगा कि किस नोट को काला धन बनाकर रखा जा रहा है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध यह लड़ाई अभी लंबा चलने वाली है।