कारगर रहा मुस्लिम तुष्टीकरण का दांव

Pratahkal    23-May-2023
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Pratahkal - Lekh - Political 
 
बलबीर पुंज
 
चूंकि कर्नाटक (Karnataka) के मस्लिम (Muslim) किसी भी सूरत (Surat) में भाजपा (BJP) को हराना चाहते थे तो इसी भावना को भुनाने के लिए कांग्रेस (Congress) ने चुनाव (Election) में मजहबी मुद्दों को केंद्र में रखा...
 
कर्नाटक में चुनाव जीतने वाली कांग्रेस ने एक लंबी कशमकश के बाद राज्य में सत्ता को लेकर अंदरूनी खींचतान का समाधान निकाल लिया है। इसमें तय हुआ कि सिद्दरमैया (Siddaramaiah) मुख्यमंत्री के रूप में फिर से कर्नाटक की कमान संभालेंगे तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शिवकुमार को फिलहाल उप- मुख्यमंत्री पद और पार्टी की राज्य इकाई के कर्ताधर्ता की भूमिका से ही संतुष्ट रहना होगा।
 
इसमें कोई संदेह नहीं कि निस्तेज पड़ी कांग्रेस को कर्नाटक के नतीजों ने नए उत्साह से लबरेज किया है। इससे कई राज्यों में चल रही आंतरिक खटपट से निपटने और भाजपा के विरूद्ध मोर्चे की कमान संभालने के मामले में कांग्रेस आलाकमान को नई ताकत मिली है। हालिया जनादेश की बात करें तो जीत के उत्साह में कांग्रेस यही दावा कर रही है कि कर्नाटक की जनता ने 'भ्रष्ट', 'सांप्रदायिक' और 'अक्षम' भाजपा को सत्ता से हटाकर 'सेक्युलर' ढांचे को बचाने हेतु उसे निर्णायक समर्थन दिया है। हालांकि, यह विवेचना सत्य नहीं। भाजपा का मत प्रतिशत करीब 36 प्रतिशत के स्तर पर कायम है। फिर कांग्रेस को किस चमत्कार से 55 सीटों का लाभ मिल गया? दरअसल, कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर यानी जेडीएस के जनाधार में सेंध लगाकर सत्ता की चाबी हासिल की। क्या कर्नाटक में भ्रष्टाचार वाकई मुद्दा था? ऐसा लगता तो नहीं। भाजपा नेताओं के अलावा कांग्रेसी शिवकुमार (Shivakumar) और सिद्दरमैया भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। जहां शिवकुमार के विरूद्ध आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा है, तो सिद्दरमैया के खिलाफ भी लोकायुक्त आयोग में 50 से अधिक मामले लंबित हैं। जहां तक वादों की बात है तो चुनाव में कांग्रेस के साथ भाजपा ने भी कई लोकलुभावन वादे किए थे। भाजपा ने बीपीएल परिवारों को तीन मुफ्त गैस सिलेंडर, प्रतिदिन आधा लीटर दूध और 30 लाख महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा का वादा किया था । कांग्रेस ने 200 यूनिट मुफ्त बिजली, डिप्लोमाधारक - स्नातक बेरोजगारों को मासिक 1500-3000 रूपये, परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को 2000 रूपये प्रति माह और महिलाओं को निश्शुल्क बस यात्रा आदि की घोषणा की। फिर कांग्रेस ने कैसे बाजी मारी? वास्तव में, कांग्रेस ने मजहबी पहचान और भावनात्मक सरोकारों को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा। कर्नाटक की करीब 6.5 करोड़ जनसंख्या में मुसलमान लगभग 82 लाख हैं । कांग्रेस और जेडीएस (JDS) को मुस्लिम मतदाताओं का औसतन बराबर समर्थन मिलता रहा है, किंतु इस चुनाव में दो तिहाई से अधिक मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को एकमुश्त समर्थन दिया। भाजपा को किसी भी सूरत में पराजित करने हेतु मुस्लिम पूरी तरह लामबंद थे ।
 
इसके कई कारण हो सकते हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में चार प्रतिशत असंवैधानिक मुस्लिम आरक्षण को बहाल करने पर प्रतिबद्धता जताई, जिसे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने निरस्त कर दिया था ।
 
कट्टरपंथी मुस्लिमों को लुभाने हेतु कांग्रेस अपनी सरकार में क्रूर आक्रांता टीपू सुल्तान की राजकीय जयंती मनाती थी, जिसे भाजपा ने अपने शासन में समाप्त कर दिया। जब चुनाव से डेढ़ वर्ष पहले हिजाब के नाम पर बहुलतावादी परिवेश को दूषित करने का प्रयास किया गया, तब भाजपा सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में आदर्श एकरूपता को अक्षुण्ण रखने हेतु वैसा ही आदेश पारित किया, जैसा लगभग केरल की वामपंथी सरकार कर चुकी थी। इसके बावजूद कर्नाटक में भाजपा के इस कदम को मुस्लिम-विरोधी बताया गया।
 
जब 2022 में भाजपा सरकार ने छल-बल से होने वाले जबरन मतांतरण के विरूद्ध विधानसभा में कानून पारित किया, तब कांग्रेस इसके विरूद्ध सदन से वाकआउट कर गई । तत्काल तीन तलाक की समाप्ति, अनुच्छेद 370 को हटाने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और काशी - मथुरा मामलों पर न्यायालयों में निष्पक्ष सुनवाई जैसे राश्ट्रीय घटनाक्रम ने भी कट्टरपंथी मुस्लिमों को भाजपा के विरूद्ध एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई। 
 
स्पष्ट है कि उनके लिए पिछले पांच वर्षों का विकास, लोकलुभावन वादे और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे निरर्थक थे। यह रोचक है कि 1938 की पीरपुर रिपोर्ट के बाद जिन विशेषणों- फासीवादी, मुस्लिम-विरोधी, गोरक्षक और 'जबरन हिंदी थोपने' आदि का उपयोग करके जिहादियों- वामपंथियों ने तत्कालीन कांग्रेस को 'सांप्रदायिक' घोषित किया था, अब वही जुमले वामपंथी - जिहादी कुनबे के साथ कांग्रेस ने भाजपा के लिए इस्तेमाल किए। कर्नाटक में कांग्रेसियों ने हिंदू समाज को क्षेत्रवाद - जातिवाद के नाम पर विभाजित करने का प्रपंच रचा। भाजपा को 'हिंदी भाषी' और 'बाहरी' पार्टी बताया। यह शैली कांग्रेस द्वारा 'आउटसोर्स' वामपंथी चिंतन के अनुरूप ही है, जिसका वैचारिक उद्देश्य भारत के टुकड़े टुकड़े करना है। इस मानसिकता की झलक राहुल गांधी द्वारा गढ़े गए  'जितनी आबादी, उतना हक' जैसे विभाजनकारी नारे वाले पैंतरे में भी मिलती है । लगता है कि कांग्रेस का उद्देश्य समाज में व्याप्त समस्याओं का परिमार्जन नहीं, अपितु अपने राजनीतिक (Political) स्वार्थ की पूर्ति हेतु उन्हें सदैव जीवित रखना है।
 
दूषित चिंतन से प्रेरित होकर ही कांग्रेस ने कर्नाटक में जिहादी संगठन पीएफआई के साथ बजरंग दल पर भी प्रतिबंध लगाने का चुनावी वादा किया। वह भी तब है जब भारत सरकार पहले ही पीएफआई (PFI) पर प्रतिबंध लगा चुकी थी। ऐसे में कांग्रेस का यह विमर्श उस फर्जी एवं मनगढ़ंत हिंदू / भगवा आतंकवाद को पुनः स्थापित करने का ही प्रयास है, जिसे 1993 के मुंबई बम धमाकों में सबसे पहले महाराष्ट्र के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री शरद पवार, जो अब राकांपा के मुखिया हैं, ने आतंकियों की मजहबी पहचान से ध्यान भटकाने हेतु गढ़ा था कि एक धमाका मस्जिद बंदर के पास भी हुआ । उसमें लिट्टे का हाथ बताया
गया।
 
पवार के इस फर्जी सेक्युलरवाद की परंपरा को संप्रग सरकार में गृहमंत्री रहे पी. चिंदबरम और सुशील कुमार शिंदे ने आगे बढ़ाया। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में एक दिग्विजय सिंह ने तो 26/11 के मुंबई आतंकी हमले का आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाकर पाकिस्तान को बेगुनाह ही बता दिया। ऐसा ही षड्यंत्र अब बजरंग दल के खिलाफ रचा जा रहा है। इसके विरूद्ध सतर्क रहना अत्यंत आवश्यक है।