जमाखोरों को झटका

Pratahkal    23-May-2023
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Pratahkal - Lekh - Economy
 
अजय बग्गा
 
इससे अर्थव्यवस्था (Economy) और बाजार पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की आशंका तो नहीं ही है, यह डिजिटल भुगतान (Digital payments) को भी प्रोत्साहित करेगा। हालांकि ‘कैशलेस ́ अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के बजाय, अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह पिछले साढ़े छह वर्षों में दोगुना हो गया है।
 
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने बीते दिनों घोषणा की कि वह दो हजार रूपये के सभी नोटों को प्रचलन से वापस ले रहा है और आगामी 30 सितंबर तक इसे बैंक से बदला जा सकता है। 2,000 रूपये की मुद्रा का प्रचलन नवंबर, 2016 में 500 और 1,000 रूपये के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा की आवश्यकता तेजी से पूरी करने के लिए शुरू किया गया था। अपने बयान में रिजर्व बैंक (Reserve Bank) ने बताया कि प्रचलन में रहे दो हजार रूपये के बैंक नोटों का कुल मूल्य 31 मार्च, 2018 को अपने चरम दौर में (तब 37.3 फीसदी नोट प्रचलन में थे) 6.73 लाख करोड़ रूपये था, जो 31 मार्च, 2023 तक घटकर 3.62 लाख करोड़ रूपये ही रह गया और मात्र 10.8 फीसदी नोट ही प्रचलन में रह गए। 2,000 रूपये मूल्यवर्ग के नोटों की छपाई 2018-19 में बंद कर दी गई थी। 
 
अभी जो दो हजार रूपये के 10.8 फीसदी नोट प्रचलन में हैं, वे किनके पास हैं? रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 31 मार्च 2023 तक 33.5 लाख करोड़ रूपये के नोट प्रचलन में थे। बैंकों द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, उनमें से 1.03 लाख करोड़ रूपये बैंकों के पास हैं। इसलिए बैंकों के पास प्रचलित नोटों का मात्र तीन फीसदी से थोड़ा ज्यादा हिस्सा है, बाकी करीब 97 फीसदी नोट आम लोगों के पास हैं। यानी जनता के पास 3.51 लाख करोड़ रूपये के बराबर दो हजार रूपये के बैंक नोट होंगे। रियल एस्टेट, निर्माण, थोक व्यापार और ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी नकदी का उपयोग प्रचलित है। इसलिए इनमें से अधिकांश दो हजार रूपये के नोट इन क्षेत्रों के कारोबारियों के पास होंगे।
 
बड़ा सवाल यह है कि यह कदम क्यों उठाया गया और वह भी इस समय क्यों। मार्च, 2018 से बैंकों को 2,000 रूपये के नोट जारी न करने का निर्देश दिया गया था। जब इन नोटों को बैंकों में जमा किया गया, तो इन्हें चुपचाप रिजर्व बैंक को वापस भेज दिया गया और अर्थव्यवस्था में पुनः परिचालित नहीं किया गया । मार्च, 2018 के बाद 2,000 रूपये के नए नोट नहीं छापे गए। इस तरह दो हजार रूपये के नोटों का प्रचलन घट गया।
 
रिजर्व बैंक ने इसके पीछे तीन कारण गिनाए हैं- पहला, इन नोटों का उपयोग दैनिक लेन-देन में नहीं किया जाता है। दूसरा, जरूरतें पूरी करने के लिए छोटे मूल्यवर्ग के नोटों की उपलब्धता पर्याप्त है और तीसरा, नकदी के उपयोग को यूपीआई और डिजिटल भुगतान के व्यापक उपयोग द्वारा पूरा किया जा रहा है।
 
नवंबर, 2016 में रातोंरात 86 फीसदी भारतीय मुद्रा के विमुद्रीकरण के बाद से अर्थव्यवस्था की प्रगति को देखें, तो 12 मई, 2023 तक नोटों का प्रचलन वास्तव में 17.74 लाख करोड़ रूपये से बढ़कर 34.58 लाख करोड़ रूपये हो गया है। यानी 'कैशलेस' अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के बजाय, अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह पिछले साढ़े छह वर्षों में दोगुना हो गया है। नोटों के प्रचलन में भारी वृद्धि इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि शायद भ्रष्टाचार को कम करने और काली अर्थव्यवस्था के आकार को सफलतापूर्वक खत्म नहीं किया गया है । सब जानते हैं कि नकदी का उपयोग भ्रष्टाचार तथा आपराधिक गतिविधियों को छिपाने और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जाता है।
 
नकदी के प्रचलन से आर्थिक गतिविधि का पता लगाना अधिक कठिन हो जाता है। नकदी लेन-देन का पता लगाना, सरकार के लिए कर संग्रह करना और अर्थव्यवस्था की निगरानी करना मुश्किल हो जाता है । भले ही छोटे लेन-देन यूपीआई और ई-कॉमर्स जैसे डिजिटल भुगतान नेटवर्क में स्थानांतरित हो गए हैं, पर अर्थव्यवस्था में नकदी में लगभग सौ फीसदी वृद्धि को देखते हुए यह स्पष्ट है कि काले धन के खिलाफ लड़ाई को और अधिक कठोर तथा नवीन बनाने की आवश्यकता होगी। 
 
2,000 रूपये के नोटों को प्रचलन से बाहर रखने से अर्थव्यवस्था और बाजार पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की आशंका नहीं है। हाल के वर्षों में दो हजार रूपये के नोटों का प्रचलन घट गया था और यह कुल प्रचलित मुद्रा का मात्र एक छोटा सा हिस्सा था। इसके अतिरिक्त, देश में डिजिटल भुगतान का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जो 2,000 रूपये के नोटों को वापस लेने के प्रभाव को कम करने में मदद करेगा। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि 2,000 रूपये के नोटों को वापस लेने से मुद्रास्फीति में अस्थायी वृद्धि हो सकती है। हालांकि रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए कदम उठाएगा। 
 
कुल मिलाकर 2,000 रूपये के नोटों को बंद करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक कदम है। यह प्रचलन में नकदी की मात्रा को कम करने में मदद करेगा, जिससे अपराधियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग करना अधिक कठिन हो जाएगा। इसके अतिरिक्त, यह डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करेगा, जो अर्थव्यवस्था को और अधिक कुशल बनाएगा। आम लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में नकदी लेकर चलने की संभावना कम होगी, और भुगतान के लिए वे डिजिटल चैनलों का उपयोग ज्यादा करेंगे। इससे वित्तीय समावेशन में सुधार की भी उम्मीद है, क्योंकि जिन लोगों का बैंक खाता नहीं है, उनके डिजिटल भुगतान की संभावना अधिक होगी। इससे जाली नोटों के प्रचलन और जालसाजी की आशंका भी कम होगी, क्योंकि जालसाजों के लिए छोटे मूल्यवर्ग के उत्तम गुणवत्ता वाले नकली नोट छापना ज्यादा कठिन होगा। इससे कर अनुपालन में बढ़ोतरी की भी संभावना है। 
 
जिन लोगों के पास कम मात्रा में 2,000 रूपये के नोट हैं, उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। 23 मई 30 सितंबर तक बैंक इन नोटों में से 20,000 रूपये के नोटों को एक बार में बदलेंगे। जिन लोगों का बैंक खाता है, वे नकद लेन-देन सूचना और कराधान पर पहले से लागू नियमों के अधीन कितनी भी राशि के दो हजार रूपये के नोट अपने खातों में जमा कर सकते हैं। दो हजार रूपये के नोट कुल करेंसी स्टॉक का 10.8 फीसदी हैं, इसलिए लेन-देन में किसी भी तरह के तनाव का अनुमान नहीं है। साथ ही, व्यापक रूप से उपलब्ध डिजिटल भुगतान नेटवर्क इन चार महीनों में मदद करेंगे।
 
यह रिजर्व बैंक का एक सुविचारित कदम है, जिससे दो हजार रूपये के नकदी जमाखोरों को झटका लगेगा । अर्थव्यवस्था में काले धन के खतरे को कम करने के लिए भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों से सख्ती से निपटने की जरूरत है।