कैप्टन आर. विक्रम सिंह
पाकिस्तान (Pakistan) में इन दिनों गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। शासन का कोई भी अंग सही से काम नहीं कर रहा है। सेना, नौकरशाही और न्यायाधीश दो फाड़ हो चुके हैं। युद्ध तो दूर पाकिस्तान के पास आंतरिक संकट को संभाल पाने की भी वित्तीय शक्ति नहीं रह गई है। आश्चर्य है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व के समक्ष संकट का अहसास तक नहीं है।
पिछले दिनों गोवा में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों की बैठक हुई थी । उसमें शामिल होने के लिए भारत आए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा कि अनुच्छेद 370 भारत - पाकिस्तान (India - Pakistan) वार्ता में बाधा है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयंशकर ने उन्हें स्पष्ट जवाब दिया कि वह तो पाकिस्तानी आतंकवादी (Pakistani terrorists) उद्योग के प्रवर्तक एवं प्रवक्ता हैं। अनुच्छेद 370 अब इतिहास है और कश्मीर (Kashmir) प्रकरण में पाकिस्तान के लिए मात्र गुलाम कश्मीर को खाली करना ही बाकी रह गया है। उनका यह जवाब बहुत कुछ कह गया ।
यह कश्मीर युद्ध में एक जनवरी, 1949 के अस्थायी युद्धविराम के बाद से ही हमारी नीति होनी चाहिए थी, लेकिन नेहरू तो भारत की तरह कश्मीर को भी बांट देने पर आमादा थे । तात्पर्य यह है कि देर से ही सही भारत के लिए कश्मीर मुद्दा अब समाप्त हो चुका है। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तान के अस्तित्व के उस संकट की ओर इशारा कर दिया, जो कश्मीर मुद्दे के दृश्यपटल से विलीन हो जाने के बाद पाकिस्तान की सेना के समक्ष उपस्थित है।
दरअसल पाकिस्तानी सेना 1947 से कश्मीर मुद्दा, भारत शत्रुता एवं कश्मीर विवाद के मजहबी समाधान के आश्वासनों एवं वार्ताओं के आधार पर ही अस्तित्व बचाए हुए है। पाकिस्तान का आधार कश्मीर नहीं, बल्कि कश्मीर मुद्दा रहा है। उन्होंने गुलाम कश्मीर का जो हाल कर रखा है वह किसी से छिपा भी नहीं है। पाकिस्तान की जनता अपनी सेना से सवाल पूछने लगी है कि 75 वर्षों में आप कश्मीर तो ले नहीं सके। इमरान खान कह रहे हैं कि आप तो वही फौज हैं जो 1971 में 93 हजार सैनिक सरेंडर करके आई है। पाकिस्तान के आम नेताओं के बयानों से निकलकर एक मुद्दे के रूप में कश्मीर अब वहां हाशिये पर जा चुका है।
गुलाम कश्मीर को खाली कराना ही जब हमारी एकमात्र घोषित नीति है तो अब भारत की ओर से इस मामले में औपचारिक कूटनीतिक बयान शुरू हो जाने चाहिए। चीन ने 46 अरब डालर के खर्च से काराकोरम से ग्वादर तक चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) बनाने सहित पाकिस्तान में बड़े निवेश किए हैं । यह हाईवे इसी भारतीय क्षेत्र से गुजरता भी है यद्यपि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन को पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले इस कश्मीरी भारतीय क्षेत्र का उपयोग न करने के लिए सचेत किया था, लेकिन उन्होंने इन आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया। संभवतः हम सैन्य दृष्टि से उस मार्ग को बाधित करने में सक्षम नहीं थे इसलिए चीन ने इस सीपैक योजना में सड़क बना डाली। अशक्त हो रहे पाकिस्तान के साथ सामरिक समीकरण बदल रहे हैं। गुलाम कश्मीर का भारतीय भूमि से सैन्य एवं नागरिक परिवहन एक शत्रुतापूर्ण कार्य है।
हमारी यह नई भाषा चीन ही नहीं, बल्कि विश्व को हमारी बदल चुकी कश्मीर नीति का स्पष्ट संकेत होगी । अत: इस दिशा में अब हमें आगे बढ़ना आवश्यक हो जाता है । सवाल है कि वे कदम क्या होंगे? सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि गुलाम कश्मीर और गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र के जनप्रतिनिधित्व के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा (Assembly) में 24 सीटें 1956 से ही आरक्षित चली आ रही हैं। इसी आधार पर वहां लोकसभा और राज्यसभा के लिए भी नई सीटें सृजित की जा सकती हैं। संविधान संशोधन से यह संभव है। कोई विरोध नहीं होगा। संभवतः इस संदर्भ में संसद में निजी सदस्य विधेयक भी प्रस्तुत हो चुके हैं। कश्मीर के विकास के प्रति समर्पित जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रपति द्वारा संसद और विधानसभा में मनोनयन की वैकल्पिक व्यवस्था भी इसी विधेयक में जोड़ी जा सकती है। इस स्वीकृति से कश्मीर से जुड़ा विवाद स्वतः ही नेपथ्य में चला जाएगा। यह अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद दूसरा बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा। इसी प्रकार गुजर- बकरवालों के पश्चिमी कश्मीरी क्षेत्र जिसमें कुपवाड़ा, हंडवाड़ा, उड़ी, पुंछ और राजौरी के पर्वतीय क्षेत्र आते हैं, उन्हें साथ लेकर कश्मीर घाटी से अलग एक नए केंद्रशासित प्रदेश का गठन हो सकता है। यह एक बड़ा क्षेत्र है जो विकास की राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने की बाट जोह रहा है। वह कश्मीर घाटी का पिछलग्गू नहीं। इससे उस पिछड़े इलाके में विकास के नए आयाम खुलेंगे और गोजरी, पहाड़ी एवं डोगरी बोलने वाले गूजर, बकरवालों को अपने जनप्रतिनिधियों के जरिये विकास में भागीदारी का नया अवसर मिलेगा। यह वर्ग विभाजनकारी सोच से बहुत दूर है। कश्मीर घाटी में परिवारवादी वर्चस्व के कारण उन्हें न्यायसंगत राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है। यह संभावित केंद्रशासित प्रदेश प्रकृति और भाषा के स्तर पर जम्मू के निकट होगा, जो कश्मीर घाटी को पाकिस्तान के दुष्प्रभाव से सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह वास्तविकता है कि पाकिस्तान आंतरिक विभाजन की देहरी पर है। उसके पराभव से हमें दोहरे मोर्चे वाले सामरिक दबाव से मुक्ति मिलेगी। फिर हम चीनी ड्रैगन का बदला हुआ रूप भी देखेंगे। जब लक्ष्य ही गुलाम कश्मीर की वापसी है तो हमें इन दिशाओं में अवश्य आगे बढ़ना चाहिए । विदेश मंत्री जयशंकर ने एससीओ बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में एक सवाल के जवाब में कहा था, 'आप काफी की खुशबू लीजिए, अनुच्छेद 370 इतिहास हो चुका है।' यह आत्मविश्वास से लबरेज गजब का जवाब था । कश्मीर अब किसी वार्ता की मेज पर नहीं है, बल्कि भारतवर्ष का एक आदर्श राज्य बनने की दिशा में बढ़ रहा है। कश्मीरी जनता के सामने भी अपने भविष्य को लेकर अब कोई धर्मसंकट नहीं। अगर हम गुलाम कश्मीर को लेकर इस दिशा में आगे चल सके तो बहुत समय नहीं लगेगा जब पाकिस्तान भी एक इतिहास बनकर रह जाएगा कि एक देश हुआ करता था पाकिस्तान ।