होली के अवसर पर मुंबई में जीवंत हो जाती है राजस्थानी संस्कृति

दाल बाटी चूरमा की गोठ से रिसोर्ट तक पहुंचा होली का रंग मारवाड़ी का गैर नृत्य होता है शानदार

Pratahkal    06-Mar-2023
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Holi


मुंबई परिक्रमा
मनीष पालीवाल
 
 
मुंबई: मुंबई (Mumbai) के बारे में कहा जाता है कि यह रावण के मायावी मामा मिरच की धरती है, इसलिए यहां माया के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं।
 
इस मायानगरी में राजस्थानी समाज द्वारा मनाया जाने वाला होली (Holi) का त्यौहार किसी महा महोत्सव से कम नहीं होता है। राजस्थान (Rajasthan) के मेवाड़ मारवाड़, ढूंढाड़, हाडोती, शेखावाटी के साथ तकरीबन हर अंचल के विभिन्न समुदायों के लोग यहां रोजी-रोटी की तलाश में आए और इसी शहर के होकर रह गए। राजस्थान से आने वाले लोग अपने साथ होली से जुड़ी हुई कई परंपराओं को साथ लेकर आए, जिसे वर्षों बाद भी बखूबी निभा रहे हैं। आधुनिकता की चादर में समय ने बहुत सारी करवटें ली लेकिन आज भी राजस्थानी समाज की लोक संस्कृति की झलक हमें होली के अवसर पर खूब देखने को मिलती है।
हमारे संवाददाता मनीष पालीवाल ने राजस्थानी समाज के होली महोत्सव को लेकर गहरी पड़ताल की है। यह खबर पढ़ें और अपने सुझाव हम तक पहुंचाएं।
 
इतिहास (History) की नजर में राजस्थानी होली....
 
 
मुंबई में राजस्थानी समाज की होली का प्रारंभिक इतिहास (History) लिपिबद्ध रूप से नहीं मिलता है। पुराने बुजुर्ग और जानकार लोग बताते हैं कि शुरुआती दौर में कपड़े और कॉटन का व्यवसाय करने वाले शेखावाटी अंचल के लोग दक्षिण मुंबई (South Mumbai) में होली के अवसर पर एक साथ इकट्ठा होकर भजन कीर्तन किया करते थे, और शाम के वक्त किसी मंदिर के अंदर भोजन बनाया जाता था। कालांतर में यही लोग जब व्यावसायिक रूप से समृद्ध होने लगे तो होली का कार्यक्रम व्यवस्थित रूप से आयोजित होने लगा। इसके लिए राजस्थान से गाने बजाने वाले लोगों को भी खासतौर पर मुंबई में बुलाया जाने लगा। वर्तमान में शेखावाटी अंचल के लोगों द्वारा होली के अवसर पर धार्मिक आयोजनों को करने का प्रचलन बढ़ गया है। इस दौरान दिन भर होली खेलने के बाद शाम को धर्म विशेष पर संस्कृति धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिसमें परिवार की महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग सम्मिलित होते हैं। इस तरीके के कार्यक्रम किसी वाड़ी में अथवा किसी बैंक्विट हॉल आदि में किए जाने लगे हैं।
 मेवाड़ माहेश्वरी समाज प्रतिवर्ष करता है अलग थीम की होली
 
मेवाड़ मूल के माहेश्वरी समाज के संगठन मेवाड़ माहेश्वरी मंडल द्वारा पिछले 25 वर्षों से मुंबई में प्रतिवर्ष विविध थीम (Various themes) पर होली (Holi) के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह कार्यक्रम महानगर मुंबई के विभिन्न स्थानों पर आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों में खास बात यह रहती है कि इनमें नेचुरल कलर का इस्तेमाल होता है। मेवाड़ माहेश्वरी मंडल मुंबई के सचिव राजेश मंडोवरा बताते हैं कि इस बार भी मंडल द्वारा बोरीवली स्थित समाज भवन पर फूलों की होली आयोजित होगी।
 
गैर नृत्य की रहती है धुम....
 
मुंबई में रहने वाले राजस्थान (Rajasthan) के प्रवासियों द्वारा होली के 7 दिनों पूर्व और 7 दिनों बाद तक विभिन्न स्थलों पर प्रतिदिन शाम को गेर नृत्य का आयोजन रखा जाता है। यह नृत्य मध्यकालीन युद्ध कला से जुड़ा हुआ एक नृत्य है, जिसमें दो लकड़ी के पतले डंडों के सहारे कलाकार एक दूसरे के साथ इस नृत्य को करते हैं l इसमें मेवाड़ मारवाड़ गोड़वाड़ आदि क्षेत्रों में कुछ विविधता है जिसका स्पष्ट रूप मुंबई में भी देखने को मिलता है l गैर नृत्य के दौरान युवा और बुजुर्ग दूल्हे की तरह सज कर आते हैं। इस दौरान सभी लोग साफा कमीज, धोती अंगरखा जैसी चीजें बड़े चाव से पहनकर खेल में सहभागिता निभाते हैं।
 

Holi 
 
मारवाड़ के राजपुरोहित ब्राह्मण (Brahmin) समाज के संगठन राजपुरोहित युवा मंडल, राजपुरोहित मित्र मंडल द्वारा दक्षिण मुंबई के माधवबाग भोइवाड़ा भूलेश्वर में यह आयोजन किए जाते हैं। वही मारवाड़ के जनवा चौधरी सीरवी व अन्य समाज द्वारा मुंबई के विभिन्न उप नगरों में यह आयोजन बढ़-चढ़कर आयोजित होते हैं।
 
लूर नृत्य (Loor dance) पहली पसंद
 
मारवाड़ की प्रवासी महिलाओं द्वारा मुंबई में लूर नृत्य गीतों के गायन का समय ऐसा माहौल बनता है कि देखने वाला अपने आप को राजस्थान में ही किसी गांव में होने का अहसास महसूस करता है। लूर नृत्य मारवाड़ (राजस्थान) का लोक नृत्य है। यह फाल्गुन मास में महिलाओं द्वारा किया जाता है। गुजराती गरबे की तर्ज पर होने वाला लूर नृत्य पूर्व में जाति विशेष की महिलाओं द्वारा किया जाता था, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता तकरीबन सभी समाजों में समान रूप से पाई जाती है। मारवाड़ के प्रवासियों द्वारा मुंबई में होने वाले गैर नृत्य के बाद अंतिम चरण में महिलाओं को भी कार्यक्रम में सहभागिता निभाने का अवसर प्राप्त होता है उस दौरान महिलाएं लूर नृत्य करते हुए देसी गीत गाती हैं।
 
भांग ठंडाई (Bhang Thandai) का चलता है दौर.
 
मुंबई में प्रवास करने वाले मेवाड़ मूल के पालीवाल, मेनारिया, नागदा, श्रीमाली, दाधीच, जोशी, रावल, आमेटा आदि ब्राह्मण समाज के लोग अधिकतम दूध व खाना बनाने वाले महाराज के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। होली के अवसर पर तकरीबन अधिकांश लोग अपनी दूध की डेरी या घरों में खास तौर पर भांग ठंडाई तैयार करते हैं। यह भांग ठंडाई आने वाले रिश्तेदारों दोस्तों को मनुहार के रूप में पिलाई जाती हैं।
 

Holi 
 शुद्ध भांग के अंदर बादाम पिस्ता को पीसकर दूध के साथ मिलाकर बनाए जाने वाला यह पेय सबसे पहले भोलेनाथ को समर्पित किया जाता है। यूं तो मेवाड़ में भांग प्राचीन काल से ही पी जाती हैं लेकिन भगवान श्रीनाथजी के साथ आई ब्रज संस्कृति के बाद मेवाड़ में भांग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। भांग पीने के बाद ब्राह्मण समाज द्वारा कई मीठे पकवान की गोट या पार्टी भी आयोजित करने का भी प्रचलन देखा जा सकता है।
 
दाल बाटी (Daal baati) चूरमा होता है होली का प्रिय व्यंजन
 
होली (Holi) के अवसर पर राजस्थान के विभिन्न सामाजिक संगठन अपने कार्यक्रमों के दौरान राजस्थान के प्रिय व्यंजन दाल बाटी चूरमा खासतौर पर बनवाते हैं और जमकर खाते और खिलाते हैं। लोगों का कहना है कि दाल बाटी चूरमा स्नेह प्यार और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला व्यंजन है। साथ ही यह भोजन सुपाच्य और भारी होता है। दिन भर की थकान के बाद होली खेलने वाले जमकर भोजन का आनंद उठाते हैं तो शारीरिक और मानसिक रूप से आनंद प्राप्त करते है। साथ ही दाल बाटी चूरमा होली खेलने वाले को आकर्षित भी करता है। इस वजह से आयोजनकर्ता कार्यक्रम के साथ-साथ इस बात का भी प्रचार करते हैं कि आयोजन के प्रसाद दाल बाटी चूरमा की गोट या पार्टी रखी गई है। वर्तमान समय में कुछ कुछ जगहों पर फागुन में गर्मी की शुरुआत को देखते हुए श्रीखंड आमरस जैसे पदार्थ भी भोजन के रूप में रखे जाते हैं।
 
वॉटर पार्क (Water Park) और रिसॉर्ट तक पहुंची धुलेंडी ....
 
राजस्थानी समाज द्वारा मुंबई में होने वाले होली सम्मेलन पुराने जमाने में आरे कॉलोनी, बोरीवली नेशनल पार्क व उपनगरों के किसी रमणीय स्थान पर आयोजित किए जाते रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे बदलते समय के साथ अब लोग होली के दिन किसी रिसॉर्ट में जाकर होली मनाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। वही युवा वर्ग होली के अवसर पर वाटर पार्क आदि में जाते हैं और वहां आनंद उठाते हैं। राजस्थानी समाज के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि होली एक दूसरे से मिलने का और सुख दुख बांटने का अवसर होता है। इस दिन हम अपनी तमाम दुश्वारियां को भुलाकर एक नई शुरुआत करते हैं। वर्तमान में युवा पीढ़ी इसके महत्व को नहीं समझ कर इसे आधुनिक रंग देने का प्रयास कर रही हैं जो भविष्य में इस त्यौहार के लिए घातक सिद्ध होगा।
 

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कर्मचारी (Employee) वर्ग जाता है गांव
 
मुंबई में काम करने वाला राजस्थानी मूल का कर्मचारी वर्ग प्रति वर्ष होली पर अपने गांव जाना नहीं भूलता है। कर्मचारियों को होली का विशेष इंतजार रहता है। इस दौरान वह अपने दुकान मालिक या कंपनी से छुट्टी लेकर खासतौर पर गांव जाते हैं और वहां पर अपने नाते रिश्तेदारों के साथ मिलकर होली का आनंद उठाते हैं। चेंबूर क्षेत्र में ज्वेलर्स की दुकान चलाने वाले संतोष सेन कहते हैं कि होली के अवसर पर उनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों को उन्हें सहज रूप से छुट्टी देनी होती है। होली के उपरांत लगभग 1 माह तक व्यावसायिक गतिविधियों में भी मंदी छाई रहती है। इस कारण से कर्मचारी जाने से दुकानदारों को ज्यादा कोई फर्क नहीं गिरता है।
 
गांव जाने वाली बसों का किराया हो जाता है महंगा
 
होली के दिनों में मुंबई से राजस्थान जाने वाली ट्रेवल्स बसों में भीड़ के दबाव के चलते टिकट महंगा हो जाता है इस दौरान सबसे ज्यादा कर्मचारी वर्ग इन निजी ट्रेवल्स बसों में सफर करता हुआ देखा जा सकता है l कुछ लोग ट्रेन हवाई जहाज के माध्यम से भी अपने गांव पहुंचते हैं और होली मना कर वापस मुंबई आ जाते हैं। होली पर अपने गांव जाने वाले कर्मचारी बसों में तमाम तरीके की परेशानी उठाकर भी अपने गांव जाने की अभिलाषा को छोड़ नहीं पाते हैं।
 
होली पर होने लगे हैं कवि सम्मेलन (Kavi Sammelan)
  
प्रवासी राजस्थानी समाज के विभिन्न संगठनों द्वारा होली पर देर शाम को कवि सम्मेलन आयोजित करने का सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। इस दौरान आयोजक देश के ख्यातनाम कवियों को बुलाकर उनसे वीर रस, हास्य रस, श्रृंगार रस, जैसे विविध रसों की काव्य रचनाएं का पाठ करवाते हैं। कवि सम्मेलन में आजाद मैदान में होने वाला उड़ान कवि सम्मेलन प्रसिद्ध है। युगराज जैन के नेतृत्व में होने वाले इस कवि सम्मेलन का वर्ष भर इंतजार रहता है। संस्थापक शांतिलाल जैन बताते हैं कि आजाद मैदान में होने वाले कवि सम्मेलन कि अपनी एक विशिष्ट परंपरा है। पिछले 10 वर्षों से मेवाड़ के विभिन्न संगठनों द्वारा होली पर कवि सम्मेलन आयोजित करने का रिवाज बढ़ गया है। मेवाड़ के प्रवासी संगठन राजस्थानी मेवाड़ एकता संघ द्वारा षणमुखानंद हॉल में 10 वर्षों से होली के अवसर पर शाम को कवि सम्मेलन करने का एक नया रिवाज शुरू किया गया है जो वर्तमान में भी जारी है।
 

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फागण महोत्सव के लिए आते हैं राजस्थानी कलाकार
 
मुंबई में खुले मैदानों में भी फागण महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। राजस्थानी संगठनों द्वारा आयोजित होने वाले इन फागण महोत्सव के लिए राजस्थान के ख्यातनाम कलाकारों की टीम को बुलाया जाता है। यह कलाकार छह 7 घंटे तक अपनी टीम के साथ राजस्थानी गीतों का समा बांध कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर देते हैं। फागण महोत्सव के कार्यक्रम अग्रवाल समाज के विभिन्न संगठनों द्वारा भी बड़ी संख्या में भाईंदर थाने व दक्षिण मुंबई में आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों के दौरान खाटूश्यामजी की भक्ति भक्ति नानी बाई का मायरा जैसे विविध धार्मिक आयोजन भी आयोजित होते हैं। कहीं-कहीं पर भागवत सप्ताह का भी आयोजन होता है जिसका समापन होली के दिन ही सुनिश्चित किया जाता है।
 
फागण गाने के लिए आता हैं कालबेलिया समाज
 
होली के कुछ दिनों पूर्व भी राजस्थान से कालबेलिया समाज के कई परिवार मुंबई आ जाते हैं और विभिन्न उप नगरों में घूम घूम कर मारवाड़ी दुकानदारों के यहां चंग ढोलक बजाकर फागण आने के गीत सुनाते हैं lइसमें महिलाओं के दल ज्यादा होते हैं, नालासोपारा के एक दुकानदार का कहना है कि गीत गाने आने वाले इन राजस्थानी समाज के कलाकारों के प्रति सभी लोगों के मन में सम्मान का भाव होता है इस वजह से तकरीबन सभी दुकानदार उनकी आर्थिक मदद करते हैं।
 
होली के लिए राजस्थानी समाज की पहली पसंद है तुंगारेश्वर महादेव
 

Holi 
 
मुंबई में रहने वाले राजस्थान के विभिन्न अंचलों के प्रवासी होली के दिन सबसे ज्यादा संख्या में वसई के तुंगारेश्वर महादेव मंदिर पर देखे जा सकते हैं। इस दिन हजारों की संख्या में विभिन्न क्षेत्रों के प्रवासी भोजन बनाने की सामग्री के साथ दलबल को लेकर यहां पहुंचते हैं और विविध प्रकार के व्यंजन बनाकर महादेव की पूजा कर भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं, तुंगारेश्वर महादेव का यह मंदिर संजय गांधी नेशनल अभ्यारण से जुड़ी हुई पर्वत श्रृंखलाओं का एक हिस्सा है जो वसई ईस्ट में स्थित है। एक मारवाड़ी बंधु ने बताया कि यूं तो यहां राजस्थानी समाज के लोग वर्ष भर में शिवरात्रि आदि अवसर पर जाते हैं लेकिन मारवाड़ी समाज का सबसे बड़ा जमावड़ा होली के अवसर पर यहां देखा जाता है।
 
होली पर होता है सार्वजनिक ढूंढ महोत्सव
 
होली के अवसर पर प्रवासी राजस्थानी समाज द्वारा अपने परिवार में जन्मे बच्चे की ढूंढ की रस्म कराई जाती है। दिगंबर नागदा जैन समाज में ढूंढ का कार्यक्रम सामूहिक रूप से मुंबई में मनाए जाने का प्रचलन कई वर्षों से जारी है। आज के समय में भी लोग अपनी परंपराओं से बंधे है और उनके प्रति उनकी गहरी निष्ठा है। ढूंढ के पीछे यह मान्यता है कि इस पूजन के बाद ही बच्चे को सफेद वस्त्र पहनाए जा सकते हैं। साथ ही पूजन के बाद बच्चे के ऊपर किसी भी प्रकार की देवी आपदा नहीं आती हैं। मुंबई में रहने वाले कई प्रवासी परिवार खासतौर पर ढूंढ का आयोजन करने के लिए अपने गांव राजस्थान पहुंचते हैं और पूजन के बाद दूसरे दिन गांव के लिए सार्वजनिक भोजन की व्यवस्था करते है।