
पूर्वात्तर तीन राज्यों के चुनावी नतीजे अनुमान के अनुरूप रहे हैं और चंद लफ्जों में अगर कहें, तो क्षेत्रीय पार्टियों को ही जीत नसीब हुई है और अगर राष्ट्रीय पार्टियों की बात करें, तो भाजपा अवश्य खुशियां मना सकती है। भाजपा (BJP) के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी नगालैंड से आई है, जहां गठबंधन में रहते भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली है। नगालैंड (Nagaland) में पिछली बार विशेष स्थिति बन गई थी, सभी 60 विधानसभा (Assembly) सदस्यों ने राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक प्रगतिशील पार्टी (एनडीपीपी) के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन किया था। हालांकि, चुनाव में मोटे तौर पर दो खेमों के बीच मुकाबला हुआ, जिसमें एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन ने बाजी मार ली है। एग्जिट पोल ने भी भविष्यवाणी की थी कि भाजपा और एनडीपीपी (NDPP) सत्ता कायम रखने में कामयाब हो जाएगी और अब ऐसा ही हुआ है। इसमें कोई शक की बात नहीं कि नगालैंड में भाजपा को एक बुनियादी मजबूती मिल गई है। भाजपा के आधे से ज्यादा उम्मीदवारों का जीतना महत्वपूर्ण है। नगालैंड चुनाव में कांग्रेस 23 सीटों पर लड़कर बुरी तरह नाकाम रही है। उसके लिए नगालैंड में रास्ता कठिन हो गया है। वैसे यहां कांग्रेस ने जोर नहीं लगाया, जबकि भाजपा ने जोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मिसाल के लिए, मेघालय (Meghalaya) में भाजपा को जब कोई बेहतर गठबंधन नहीं मिला, तो उसने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया, वहां उसे कामयाबी ज्यादा नहीं मिली, लेकिन उसका जनाधार जरूर बढ़ा होगा। एक बड़ी खुशी की बात है कि नगालैंड को पहली बार दो महिला विधायक नसीब हुई हैं। भाजपा- एनडीपीपी गठबंधन की उम्मीदवार हेकानी जखालु और एस क्रूसे ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। नगालैंड में चौदह बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, पर अभी तक किसी महिला उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी। जाहिर है, इस जीत से नगालैंड की राजनीति में महिलाओं को आगे आने की प्रेरणा मिलेगी। मेघालय में काटे की टक्कर हुई है और यहां चुनाव बाद सरकार बनाने के लिए गठबंधन की जरूरत पड़ेगी। यहां क्षेत्रीय पार्टियों का शिकंजा कसा हुआ है और भाजपा, कांग्रेस को भविष्य में ज्यादा जोर लगाना पड़ेगा। वैसे लगता यही है कि एनपीपी (NPP) सरकार बनाने के लिए भाजपा को साथ ले सकती है। यह एक सकारात्मक बात है कि किसी भी पार्टी से समझौता करने में भाजपा को कोई परहेज नहीं है। दूसरी पार्टियों के लिए यह एक सबक है कि कैसे भाजपा ने पूर्वोत्तर में अपने लिए ठोस जगह तैयार की है। उसकी उपलब्धि के पीछे जमीनी मेहनत ही नहीं, रणनीतिक कौशल भी है। पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों में करीब 135 सीटों पर लड़ते हुए लगभग 45 सीटें जीतना खास मायने रखता है। जहां तक त्रिपुरा के नतीजों की बात है, यहां भाजपा गठबंधन का मुकाबला वाम गठबंधन से था, यहां भी उसने अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया है। कुल मिलाकर, नगालैंड और त्रिपुरा में भाजपा सत्ता में वापसी करेगी, वहीं मेघालय में वह गठबंधन के जरिये सत्ता में शामिल हो सकती है। पूर्वोत्तर ने साफ कर दिया है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की इच्छा रखने वाले एकजुट न हो पाए, तो उन्हें 2024 को लेकर बहुत उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए। बहरहाल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के उप-चुनावों में कांग्रेस को जो जीत मिली है, शायद उसे भाजपा नजरंदाज नहीं करेगी। मतलब, तय है, आगामी चुनावी मुकाबले बहुत दिलचस्प होंगे।