भाजपा के गणित में पूर्वोत्तर

हर चुनाव की तरह पूर्वोत्तर के चुनावों में भी भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी, जिसका उसे लाभ मिला। दूसरी ओर, कांग्रेस का निरंतर सफाया हो रहा है। हालांकि चुनावी नतीजे का एक संदेश यह भी है कि वहां के लोग एकरूपता के बजाय अपनी विविधता को बनाए रखना चाहते हैं ।

Pratahkal    04-Mar-2023
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BJP
 
नीरजा चौधरी
 
पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) के तीन राज्यों त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में फरवरी में हुए विधानसभा चुनावों (Assembly elections) के नतीजे बहुत चौंकाते नहीं हैं, लेकिन इन नतीजों के संदेश साफ पढ़े जा सकते हैं। कहने को तो साठ- साठ सीटों वाली इन विधानसभाओं में कुल 180 विधानसभा सीटें हैं और इन्हें देश के एक छोटे से हिस्से में माना जाता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पूर्वोत्तर के इलाके को जो महत्व दिया है, विधानसभा चुनाव के नतीजे उसी को परिलक्षित करते हैं ।
 
पूर्वोत्तर को महत्व देने का फायदा निश्चित रूप से भाजपा को मिला है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने लगातार पूर्वोत्तर का दौरा किया और उस क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री की लुक ईस्ट पॉलिसी में भी पूर्वोत्तर रहा है। इसका मतलब है कि भाजपा (BJP) के गणित में पूर्वोत्तर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि वहां 26 लोकसभा सीटें हैं, जो बाकी भारत के मध्य आकार के एक राज्य के बराबर है।
 
भाजपा ने पूर्वोत्तर के चुनावों को इसलिए इतना ज्यादा महत्व दिया, क्योंकि वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के मद्देनजर यहां की 26 लोकसभा सीटें उसके लिए बहुत अहम हैं। भाजपा (BJP) को इस बात का आभास है कि लोकसभा चुनाव में अन्य राज्यों में उसके खिलाफ सत्ता विरोधी रूझान होगा। लिहाजा उन राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई की दृष्टि से भी पूर्वोत्तर में अपनी स्थिति मजबूत रखना उसके लिए जरूरी था। भाजपा हर चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक देती है और पूर्वोत्तर के चुनाव भी इसका अपवाद नहीं थे। इसकी वजह यह है कि भाजपा ने पूर्वोत्तर को महत्वहीन नहीं माना। पंक्तियों की लेखिका को नगालैंड के लोगों ने भी बताया कि इतना आक्रामक चुनाव प्रचार उन्होंने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से कभी नहीं देखा था । चुनावी नतीजे में यह स्पष्ट दिखता है। तीनों राज्यों में सत्ता विरोधी रूझान के बावजूद भाजपा का अपने सहयोगी दलों के साथ सत्ता में वापस आ जाना बहुत बड़ी उपलब्धि है।
 
इन नतीजों का दूसरा संदेश है- कांग्रेस का सफाया । पूर्वोत्तर को दशकों से कांग्रेस (Congress) का गढ़ माना जाता था । त्रिपुरा में भले ही उसे कुछ सीटें मिली हैं, जो कि सांत्वना पुरस्कार से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन पूर्वोत्तर के इलाके में कांग्रेस का चुनाव में लगातार सफाया हो रहा है। सबसे हैरानी की बात है कि कांग्रेस ने इन चुनावों में कोई प्रयास भी नहीं किया। ऐसा लगता था, जैसे उसने अपने हथियार डाल दिए हैं, जबकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की 'भारत जोड़ो यात्रा' को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और उनकी अपनी छवि भी बहुत अच्छी बनी है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में ‘भारत जोड़ो यात्रा' (Bharat Jodo Yatra) की सफलता से उत्साह का संचार हुआ है। फिर भी इनमें से किसी भी जगह से कांग्रेस का चुनाव न जीत पाना उसके लिए बहुत निराशाजनक है, जबकि मेघालय (Meghalaya) में तो वह पिछली बार 21 सीटों के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसा लगता है कि इन चुनावों में कांग्रेस ने जरा भी दम खम नहीं दिखाया। तो इन नतीजों का संदेश कांग्रेस के लिए भी है कि आप चाहे जितनी यात्राएं कर लें, लेकिन जब तक चुनाव में जीत हासिल नहीं करते, लोग आपको गंभीरता से नहीं लेंगे और अन्य राज्यों में भी आपके कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा।
 
तीसरा महत्वपूर्ण संदेश है कि नगालैंड के इतिहास में आज तक कभी महिला चुनकर विधानसभा (Assembly) नहीं पहुंची थीं। अब तक नगालैंड से मात्र एक महिला सांसद रानो साइजा चुनी गई थीं। वह 1977 में छठी लोकसभा (Lok Sabha) में चुनकर संसद पहुंची थीं। विधानसभा चुनाव में महिलाओं के न चुने जाने को लेकर अक्सर सवाल भी उठते रहते थे, क्योंकि नगालैंड (Nagaland) ऐसा राज्य है, जहां पुरूषों से ज्यादा महिला मतदाता हैं। नगा जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की पैठ है, लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी उपस्थिति शून्य थी । यह नगा समाज की बहुत बड़ी विडंबना थी । इस बार वहां की जनता ने चार महिला प्रत्याशियों में से दो- दीमापुर तृतीय विधानसभा से हेकानी जखालू और अंगामी सीट से सलहूतुनू क्रू से को चुनकर विधानसभा में भेजा है और इस तरह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ठीक पहले इतिहास रचा है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।
 
पूर्वोत्तर सिर्फ सिर्फ भाषा और मजहब की दृष्टि से नहीं, बल्कि नस्ल को लेकर भी भारतीय विविधता (Indian diversity) का प्रतीक है । वह येलो और ब्राउन रेस का मिलन है, जो हमारे देश के लिए बहुत ही अनूठा है। भाजपा ठीक ही कहती है कि दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए पूर्वोत्तर सेतु है, आखिर थाईलैंड और म्यांमार से तो उनके संबंध हैं ही। इसको लेकर इन नतीजों का संदेश है कि क्षेत्रीय पार्टियां अपनी पैठ बनाए रखेंगी।
 
नगालैंड और मेघालय में एनडीपीपी और एनपीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है और त्रिपुरा मे टिपरा मोथा नामक नई पार्टी का एक भावनात्मक मुद्दे को लेकर उदय इसी का संकेत है। टिपरा मोथा का भावनात्मक मुद्दा है कि वह स्वायत्त त्रिपुरा बनाना चाहती है । उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, भाषा आदि उनकी अपनी पहचान से जुड़ा है। वे जीने का स्वायत्त तरीका चाहते हैं। तो इन प्रदेशों के नतीजों से जो संदेश मिल रहा है, वह यह है कि वे अपनी विविधता की स्वायत्त जीवन शैली का सम्मान चाहते हैं, एकरूपता नहीं चाहते। हालांकि भाजपा न तीनों राज्यों में सत्ता में है, लेकिन शेष भारत उसका जो एकरूपता का संदेश है, उससे यहां समस्याएं पैदा होंगी।
अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण संदेश विपक्ष के लिए वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर है कि उसे चुनावों को गंभीरता से लेना होगा और जिस तरह से भाजपा चुनावों में अपनी सारी ताकत झोंक देती है, उसी तरह विपक्ष को एकजुट होकर अपनी ताकत लगानी पड़ेगी। विपक्ष को एकजुट हो हरेक सीट पर भाजपा के खिलाफ अपना एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करना होगा, तभी वह भाजपा को हरा पाएगा। विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के सवाल को उन्हें चुनाव से पहले नहीं, चुनाव के बाद के लिए छोड़ देना चाहिए और एकजुट होकर लड़ाई लड़ने पर ध्यान देना चाहिए, तभी बात बन सकती है।