नगर नियोजन

Pratahkal    03-Mar-2023
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Town planning
 
प्रधानमंत्री ने शहरी नियोजन (Town planning), विकास (Development) और स्वच्छता (Hygiene) पर एक नार को संबोधित करते हुए यह सही कहा कि तेजी से शहरीकरण के साथ भविष्य के बुनियादी ढांचे का निर्माण करना महत्वपूर्ण है। अच्छा हो कि इसकी महत्ता को शहरों का नियोजन (Planning) करने वाले भी समझें, क्योंकि हमारे शहर अनियेजित विकास का पर्याय बन गए हैं। शायद इसी कारण प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि शहरों का खराब नियोजन और योजना बनाने के बाद उस पर सही ढंग से अमल न करना हमारी विकास यात्रा के सामने बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकता है। सच तो यह है कि खराब नियोजन ने पहले ही तमाम चुनौतियां पैदा कर दी हैं । इन्हीं चुनौतियों के कारण देश के छोटे-बड़े शहर गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं । हमारे शहर कुल मिलाकर गंदगी, प्रदूषण, अतिक्रमण और अनियोजित विकास से उपजी अन्य समस्याओं (Problems) से बुरी तरह जूझ रहे हैं। जो शहर जितना बड़ा है, वहां अनियोजित कालोनियों और झुग्गी वस्तियों की उतनी ही अधिक संख्या है। आम तौर पर ये कालोनियां और बस्तियां सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बसाई गई हैं। राज्य सरकारों और नगर निकायों में अवैध तरीके से बसाई गई वस्तियों को खत्म करके उन्हें नियोजित तरीके से बसाने की इच्छाशक्ति ही नहीं दिखाई दे । इसी कारण जब-तब आधे-अधूरे मन से सरकारी जमीनों से अवैध कब्जे हटाने की कार्रवाई होती है। अधिकांशतः यह कार्रवाई किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने के पहले ही खत्म हो जाती है। सभी इससे परिचित हैं कि आज के युग में शहर आर्थिक विकास (City economic development) के इंजन हैं, लेकिन उन्हें संवारने का काम न तो राज्य सरकारों की प्राथमिकता में दिखाई देता है और न ही उनके नगर निकायों के एजेंडे में नए शहरों के विकास में तो तब भी बेहतर नगर नियोजन की इच्छा दिखाई देती है, लेकिन पुराने शहरों में पुरानी व्यवस्थाओं का समुचित आधुनिकीकरण (Modernization) किसी के एजेंडे में नजर नहीं आता । यह ठीक है कि इस वर्ष के आम बजट में शहरी विकास को महत्व दिया गया है और कई ऐसी योजनाएं लाई गई हैं, जिनसे शहरों की सूरत निखारी जा सकती है, लेकिन बात तो तब बनेगी, जव राज्य सरकारें इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सक्रिय होंगी। कहने को तो शहरीकरण के मामले में हर तरह की योजनाएं बनी हुई हैं, लेकिन आम तौर पर वे कागजों तक ही सीमित हैं । शहरीकरण की योजनाओं पर मुश्किल से ही अमल होता है। आम तौर पर अमल के नाम पर खानापूरी ही अधिक की जाती है। नगर निकायों की कार्यशैली को देखकर इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि वे शहरों को संवारने के लिए प्रतिबद्ध हैं। शहर जिस तरह समस्याओं से घिरते चले जा रहे हैं, उन्हें देखते हुए यह कहना कठिन है कि वे नगरीय जीवन को सुविधासंपन्न बनाने और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए तत्पर हैं।