खुद से परास्त होता पाकिस्तान

वह जितना कमजोर होता जाएगा, भारत को परेशान करने की उसकी क्षमता उतनी कम होती जाएगी। यह हमारे लिए सुखद स्थिति होगी, मगर इसमें कुछ पेचीदगियां भी हैं।

Pratahkal    18-Mar-2023
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Pakistan would have been defeated by itself

सुशांत सरीन : कुछ वर्ष पहले, जब इमरान खान (Imran Khan) सत्ता में नहीं आए थे, तब उनका एक वीडियो क्लिप खूब वायरल हुआ था। उसमें वह कह रहे थे कि हमारे (पाकिस्तान के) फौजी जनरल इतने डरपोक हैं कि अगर कोई शख्स पाकिस्तान (Pakistan) के शहरों में 25 से 30 हजार लोगों की भीड़ जुटा ले, तो इन जनरल साहिबान की सलवार गीली हो जाएगी। अपने इस बयान को इमरान खान ने सही साबित कर दिया है। पिछले तीन दिनों से पुलिस (Police) उनको गिरफ्तार (Arrested) करने के लिए मशक्कत कर रही है, लेकिन सफलता उसके हाथ नहीं लग रही। बुधवार को तो वह सैकड़ों की तादाद में इमरान के घर पहुंची थी। मगर जैसा पहले भी हो चुका है, उनके समर्थकों ने वहां मानव दीवार बना ली और पुलिस के प्रयासों को विफल कर दिया। इस क्रम में दोनों पक्षों के बीच तीखी झड़पें हुईं और पुलिसकर्मियों को डंडे, पत्थर व पेट्रोल बम झेलने पड़े। आखिरकार वहां रेंजर्स को बुलाना पड़ा।
 
रेंजर्स हैं तो अर्द्धसैनिक बल, पर उनके अफसर पाकिस्तानी फौज से आते हैं, इसलिए रेंजर्स के आने का अर्थ होता है, फौज का मोर्चा संभाल लेना । मगर रेंजर्स भी खाली हाथ रहे, और जो प्रतिरोध उनको झेलना पड़ा, वे आम तरीकों से उसे नियंत्रित न कर सके। हालांकि, गुरूवार को इस्लामाबाद की जिला व सत्र अदालत ने गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट निलंबित करने की इमरान खान की याचिका खारिज कर दी। फिर भी, इमरान खान ने एक लिहाज से अपना दबदबा साबित किया है। दिक्कत यह है कि पाकिस्तान के अंदर जिस तरह के हालात पैदा हो गए हैं, उनमें या तो पाकिस्तानी फौज (Pakistani Army) व सरकार बचेगी, या इमरान खान बचेंगे, पर जो चीज कतई नहीं बचेगी, वह है लोकतंत्र ।
 
सवाल है कि इमरान की गिरफ्तारी में मुश्किलें कहां आ रही हैं? दरअसल, वह पंजाब (Punjab) से ताल्लुक रखते हैं, जहां उनको भारी समर्थन हासिल है, और पाकिस्तान की फौज व पुलिस में पंजाबियों का दबदबा है। यही कारण है कि वे कानून-व्यवस्था लागू करने वाले उन तरीकों का इस्तेमाल नहीं कर रहे, जो बलूचों, सिंधियों या पश्तूनों के खिलाफ इस्तेमाल में लाए जाते हैं। पंजाबियों के खिलाफ इन तरीकों के उपयोग से तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसे संभालना वहां के हुक्मरानों के लिए कठिन हो सकता है। इतना ही नहीं, पंजाब में इमरान खान के समर्थक आम-ओ-खास, सभी तरह के लोग हैं। मध्यवर्ग भी उनका साथ दे रहा है, तो पेशेवर व रसूखदार तबका भी । इस कारण भी पुलिस के हाथ बंधे हुए हैं। फिर, पिछले कुछ वर्षों में इमरान खान ने अदालतों के ऊपर इतना प्रभाव बना लिया है कि जब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तो अदालती हस्तक्षेप से उनको राहत मिल जाती है ।
 
संभवत यह पहला मौका है, जब किसी एक शख्स के नाम पर पाकिस्तानी फौज में भी फूट है। आला अधिकारी इमरान खान को एक बड़ा खतरा मानते हैं, लेकिन उनके परिवार इससे इत्तफाक नहीं रखते, यहां तक कि निम्न व मध्यवर्ग के अधिकारी भी इमरान के समर्थक माने जाते हैं। आलम यह है कि सेवानिवृत्त फौजी अफसर भी उनको पसंद करते हैं।
 
सवाल है कि अब आगे क्या होगा ? अगर पाकिस्तान की हुकूमत इमरान खान को किसी कारणवश गिरफ्तार नहीं कर पाती, तो एक लिहाज उसका औचित्य खत्म हो जाएगा। फौज और सरकार को इस कदर ठेस पहुंचेगी कि उससे उबरना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। देखा जाए, तो रियासत पर इमरान पूरी तरह हावी हो जाएंगे। और, अगर उनको गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, इसका अनुमान फिलहाल मुश्किल है। अगर यह काफी तीखी हुई, तो वहां गृह युद्ध जैसे हालात बन सकते हैं।
 
इमरान समर्थकों की एक आशंका यह भी है कि गिरफ्तारी (Arrest) के बाद उनके नेता की या तो हत्या की जा सकती है या फिर कोई व्यवस्था बनाकर उनको सक्रिय राजनीति से आजीवन बाहर किया जा सकता है। इस आशंका का आधार यह है कि वहां की हुकूमत और फौज पाकिस्तान तहरीक-ए- इंसाफ के मुखिया को मुल्क के लोकतंत्र (Democracy) के लिए गंभीर खतरा मान चुकी है।
 
यही वजह है कि इमरान खान (Imran Khan) ने एक लिहाज से रियासत के खिलाफ ही जंग छेड़ दी है। उनके समर्थक यह धमकी भी दिया करते थे कि अगर उनको हाथ लगाया गया, तो वह पाकिस्तान में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा कर देंगे। पिछले तीन दिनों का घटनाक्रम इसी की तस्दीक कर रहा है। यह स्थिति पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। जाहिर है, इमरान खान गिरफ्तार होते हैं या विजयी, दोनों ही सूरतों में वहां के लोकतंत्र को गंभीर खतरा है।
 
क्या हमें वहां की चिंता करनी चाहिए ? फिलहाल भारत के लिए तो कोई सीधा खतरा नहीं है। पाकिस्तान जितना कमजोर होता जाएगा, भारत को परेशान करने की उसकी क्षमता उतनी कम होती जाएगी। यह हमारे लिए सुखद स्थिति होगी। मगर इसमें कुछ पेचीदगियां भी हैं। मसलन, पाकिस्तान के पास यह आसान बहाना रहेगा कि आंतरिक उथल-पुथल को संभालने में लगे रहने के कारण 'नॉन-स्टेट एक्टर्स' पर उसका नियंत्रण नहीं । या, वह ऐसे तत्वों को हवा देना तेज कर देगा, ताकि भारत स्थिर न रह सके। या फिर अपने आंतरिक मतभेदों को पाटने या खुद को एकजुट करने के लिए वह नई दिल्ली के साथ तनाव बढ़ाने के प्रयास करे। मगर यह सब आसान नहीं होगा, क्योंकि पाकिस्तान आर्थिक मुश्किलों से भी मुकाबिल है और यदि भारत ने जवाब दिया, तो उसे संभलने का मौका नहीं मिलेगा।
 
हां, एक लिहाज से पाकिस्तान की अस्थिरता भारत पर दूरगामी असर डाल सकती है। यदि वहां के बिगड़ते हालात को देखकर पलायन शुरू हुआ, तो भारी तादाद में पाकिस्तान के नागरिक भारत (India) की सीमा में दाखिल हो सकते हैं, क्योंकि वहां की एक बड़ी आबादी भारतीय सरहद से जुड़े इलाकों में ही बसती है। उसके लिए अफगानिस्तान (Afghanistan) या ईरान (Iran) में गुजारा करना मुश्किल होगा, इसलिए वह हमारी जमीन पर ठिकाना ढूंढ़ने का प्रयास करेगी। इस पर हमारी हुकूमत को नजर रखनी होगी। हालांकि, हमारे लिए एक अवसर भी है। पाकिस्तान यदि संभल भी जाता है, तो उसे अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कम से कम पांच- छह साल लगेंगे। इस बीच भारत चाहे, तो पाकिस्तान के साथ ताकत के अंतर को बहुत ज्यादा बढ़ा सकता है। इसका कई मोर्चों पर हमें फायदा मिलेगा।