जवालिया : कुरीतियों के खिलाफ में बचपन से ही सजग रहते हुए ग्रामीण महिलाओं को प्रेरणा देते हुए इसके विरोध में आवाज उठाने वाली वाली 85 वर्षीय बादाम बाई (Badam Bai) का गत दिनों निधन हो गया। राजसमंद जिले के चारभुजा तहसील क्षेत्र के जवालिया गांव में 1937 में उनका बादलमल सांखला के घर जन्म हुआ। बाल्यकाल के दौरान ही आजादी के आंदोलन की चर्चा अपने पिता से सुन बचपन में ही सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ विचारों के लिए जानी जाती थी। छोटी उम्र में ही चारभुजा निवासी प्रेमचंद के सुपुत्र अर्जुनलाल चोरड़िया के साथ विवाह हुआ। शादी के बाद समय-समय पर महिलाओं मे व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन हेतु स्वरचित गीतिका द्वारा महिलाओं को मुक्ति का संदेश देने का प्रयास प्रारंभ किया। स्पष्टवादी बादाम बाई को गांव में भी महिलाओं का समर्थन मिलता रहा जिसके कारण घूँघट प्रथा के खिलाफ माहौल बनाना शुरू हुआ। अपनी संतानों को पढ़ाने के लिए भी अशिक्षित बादाम बाई ने नवाचार उस जमाने में शुरू किया। इससे उस जमाने में ग्रामीण
शिक्षा (Education) का रुझान बढ़ा और आसपास के गांवों में भी शिक्षा को लेकर नई पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए प्रयास किया। सामाजिक कुरीतियों के अलावा धार्मिक आस्था के लिए भी बादाम बाई ने अलग पहचान बनाई। नियमित रूप से तेरापंथ धर्मसंघ (Terapanth Dharmasangh) के आचार्य एवं साधु संतों के दर्शन, तपस्या तथा खाद्य सामग्री का त्याग रखने की प्रवृत्ति थी। उनके 9 पुत्र -पुत्रियां है, जिसमें से अधिकांश मुंबई (Mumbai) में व्यवसायत हैं। पुत्र ललित चोरड़िया राजसमंद में रहकर राजनीति एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं।