उलटा पड़ता दुष्प्रचार अभियान

मोदी कामयाबी के नए झंडे गाड़ रहे हैं । विदेशी मीडिया उनकी छवि बिगाड़ना चाहता है, किंतु अपने विरूद्ध ऐसे अभियान के बाद मोदी और लोकप्रिय होकर उभरते हैं

Pratahkal    14-Mar-2023
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Foreign media 

हृदयनारायण दीक्षित
 
भारत का मन क्षुब्ध और आहत है। कुछ निहित स्वार्थी तत्व और विदेशी मीडिया (Foreign media) घराने देश की जनता द्वारा विधिसम्मत निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और भारत के विरूद्ध लगातार झूठ फैला रहे हैं। उन्हें भारत की लगातार बढ़ती विश्व प्रतिष्ठा से चिढ़ है । इस अभियान में देश के वामपंथी उदारवादी भी शामिल हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विकसित आत्मनिर्भर (Independent) और स्वाभिमानी भारत की प्रतिष्ठा गिराने में संलग्न हैं । अमेरिकी अखबार द न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, कतर के अल जजीरा आदि मीडिया घराने भारत और प्रधानमंत्री के विरूद्ध सक्रिय हैं। न्यूयार्क टाइम्स (New york times) में छपे एक लेख में पत्रकारों को पुलिस (Police) द्वारा परेशान करने, कश्मीर को सूचना शून्य बनाने, आतंकवाद और अलगाववाद जैसे आरोपों की धमकी के आरोप लगाए गए हैं। सूचना और प्रसारण मंत्री (Information and Minister of Broadcasting) अनुराग ठाकुर ने न्यूयार्क टाइम्स (New york times) के लेख को झूठ का पुलिंदा बताते हुए कहा कि इसमें निष्पक्षता जैसी पत्रकारीय मर्यादा का पालन नहीं किया गया। कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन द्वारा लिखे इस लेख के अनुसार मोदी सरकार (Modi Government) के खिलाफ आवाज उठाने वाले मीडिया घरानों को निशाना बनाया जा रहा है। कश्मीर टाइम्स भी मोदी से नहीं बच सका। पीएम चाहते हैं कि मीडिया घराने सरकारी मुखपत्र की तरह काम करें। उल्लेखनीय है कि अनुराधा पर श्रीनगर में पांच सरकारी फ्लैटों पर अवैध कब्जे का आरोप है। प्रशासन ने फ्लैट वापस ले लिए हैं। बीबीसी भी भारत और मोदी विरोध के इस अभियान में शामिल है। बीबीसी की डाक्यूमेंट्री चर्चा में है । यह 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित है। मूलभूत प्रश्न है कि 21 साल बाद ऐसी मनगढ़ंत फिल्म बनाने का क्या औचित्य है ?
 
भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के मध्य विरोध स्वाभाविक है। विचार आधारित दल होने के कारण भाजपा पं. नेहरू, इंदिरा गांधी और उनके परिजनों की सरकारों के विरूद्ध तथ्यगत आरोप लगाती है। आपातकालीन तानाशाही की याद कराती है । तब कथित उदारवादी मीडिया द्वारा कहा जाता है कि 2023 में नेहरू और इंदिरा गांधी से जुड़े विषय उठाने का क्या तुक ? दूसरी ओर वही लोग सावरकर की 1921 की घटनाओं का उल्लेख करते हैं। मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री होने के समय की घटनाएं दोहराते हैं। मोदी की लोकप्रियता से ऐसे सभी तत्वों को चिढ़ है । इसका मुख्य कारण है तमाम आरोपों और झूठे हमलों के बावजूद मोदी जीत जाते हैं। विदेशी मीडिया का मोदी विरोधी हिस्सा 2024 में मोदी की पराजय चाहता है । बीबीसी की डाक्यूमेंट्री भी इसी लक्ष्य के लिए है। इसी लक्ष्य के लिए जम्मू-कश्मीर में कथित रूप में पत्रकारों को उत्पीड़ित करने वाली घटनाओं का दुष्प्रचार है। योजनाबद्ध ढंग से मोदी विरोधी अभियान जारी है। मोदी राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं। विदेशी मीडिया उनकी छवि को ध्वस्त करना चाहता है, लेकिन प्रधानमंत्री की छवि पर ऐसे षड्यंत्रों का प्रभाव नहीं पड़ता मोदी प्रत्येक आरोप के बाद और लोकप्रिय होकर उभरते हैं ।
 
बीबीसी डाक्यूमेंट्री (BBC documentary) बड़ा झूठ है। गुजरात दंगों से जुड़े वास्तविक तथ्य देश जानता है। 27 फरवरी, 2002 को 59 कारसेवक अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस से घर लौट रहे थे । गोधरा रेलवे स्टेशन पर कोच में आग लगा दी गई। दूसरे दिन सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। 6 मार्च, 2002 को राज्य सरकार (State government) ने तत्काल जांच आयोग गठितकिया । 9 अक्टूबर, 2003 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में निष्पक्ष विवेचना के लिए याचिका दी । 8 जून, 2006 को जकिया जाफरी ने मोदी और अन्य के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई।
 
26 मार्च, 2008 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक सक्षम अधिकारी आरके राघवन के नेतृत्व में एसआइटी (SIT) गठित की। सर्वोच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को अद्यतन रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए। 6 मई, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए कि अग्रिम आदेशों तक अंतिम निर्णय न सुनाया जाए। 11 सितंबर, 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने एसआइटी के मुखिया को सभी साक्ष्यों सहित अंतिम रिपोर्ट देने को कहा। एसआइटी ने 8 फरवरी, 2012 को अंतिम रिपोर्ट दी । मोदी सहित 63 अन्य लोगों को निर्दोष पाया । जकिया जाफरी ने इस क्लीन चिट के विरूद्ध स्थानीय न्यायालय में मुकदमा किया । स्थानीय न्यायालय ने जकिया का अनुरोध 26 दिसंबर, 2013 को खारिज कर दिया । जकिया सुप्रीम कोर्ट गईं। 26 अक्टूबर, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई शुरू की । 24 जून, 2022 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जकिया के पक्ष को निरस्त कर दिया। मोदी को क्लीन चिट देने का निर्णय बहाल रहा । सालों-साल चली सुनवाई में मोदी निर्दोष पाए गए। बीबीसी क्या नई बात बताना चाहता है ? सत्य की विजय हुई 7 झूठ हार गया। तथ्य यही है कि सत्य कभी पराजित नहीं होता ।
 
मोदी सरकार (Modi Government) ने नौ वर्षों में देश-विदेश में आश्चर्यजनक सफलता पाई है। इस अवधि में भारत विरोधी - मोदी विरोधी अभियान जारी रहा। देश में असहिष्णुता बढ़ने का शिगूफा छेड़ा गया। भारतीय समाज को असहिष्णु बताना राष्ट्र का अपमान था । कथित उदारवादियों द्वारा पुरस्कार वापसी का अभियान चलाया। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान राजधानी दिल्ली में दंगे हुए। उनका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी करना था। तमाम विदेशी संस्थाएं भारत की सहिष्णुता, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं की गुणवत्ता पर फर्जी सर्वेक्षण प्रकाशित करती हैं। लोकतंत्र समाप्ति का नारा देती हैं । सरकार (Government) पर संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने के आरोप लगाती हैं। कोविड महामारी के दौरान मोदी सरकार की प्रशंसा स्वयं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की थी, लेकिन ऐसे तत्व भारत (India) में कोविड के सफल प्रबंधन के भी निंदक थे। लगभग 34 करोड़ की जनसंख्या वाले अमेरिका (America) में उस दौरान रोजाना हजारों मौतें हो रही थीं। जबकि मोदी इसकी चार गुना भारतीय आबादी में सफल प्रबंधन करने में कामयाब रहे। ऐसे में अनुराग ठाकुर का यह कहना यथार्थी ही है कि भारतवासी अपने यहां राष्ट्र विरोधी दुष्प्रचार का ऐसा एजेंडा चलाने की अनुमति नहीं दे सकते।