पक्ष-विपक्ष की तैयारी

Pratahkal    14-Mar-2023
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Parliament
 
संसद (Parliament) के प्रत्येक सत्र अब हंगामेदार ही होते हैं । इस पर आश्चर्य नहीं कि बजट सत्र के दूसरे चरण में भी हंगामा होने के आसा हैं। जहां विपक्ष केंद्रीय एजेंसियों (Cons Central Agencies) और विशेष रूप से सीबीआई (CBI) और ईडी (ED) के कथित दुरूपयोग को लेकर सरकार को घेरने के मूड में है, वहीं दूसरी ओर सत्तापक्ष (Government party) भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के ब्रिटेन में दिए गए भाषणों को लेकर उन्हें और उनके बहाने कांग्रेस (Congress) को घेरने की तैयारी करता दिख रहा है। इसमें कोई हर्ज नहीं, सत्तापक्ष और विपक्ष को उन विषयों पर अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है, जिन्हें वे महत्वपूर्ण मान रहे हैं। सीवीआई और ईडी के अनुचित इस्तेमाल की शिकायत नई नहीं है। केंद्र की प्रत्येक सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह केंद्रीय एजेंसियों का मनमाना इस्तेमाल करती है । यह आरोप लगाते समय आमतौर पर नेताओं के भ्रष्टाचार की अनदेखी कर दी जाती है। विपक्षी नेता कुछ भी दावा करें, वे इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि जो नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं, उन्हें अदालतों से भी राहत नहीं मिली है। कुछ को तो जमानत भी नहीं मिल पा रही है। इसका मतलब है कि उन पर लगे आरोप गंभीर हैं । चूंकि भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले जांच के दायरे में होने के साथ अदालतों (Courts) के समक्ष भी हैं, इसलिए मांग तो यह होनी चाहिए कि उनका निस्तारण यथाशीघ्र हो । यह विचित्र है कि इसके बजाय इस पर जोर दिया जा रहा है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में कहीं कोई दम नहीं। इस पर यकीन करना इसलिए कठिन है, क्योंकि एक तो प्रथमदृष्टया सामने आए प्रमाण इसकी काट करते हैं और दूसरे, कई मामलों में आरोपित नेताओं (Leaders) के यहां आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति मिली है। कुछ मामलों में तो भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेताओं के करीबियों के यहां बड़ी मात्रा में नकदी मिली है या फिर इसके प्रमाण कि उन्हें धन कहां से मिला और वह कहां खर्च किया गया ? यदि विपक्ष यह चाहता है कि इस सबकी अनदेखी कर दी जाए तो यह संभव नहीं । आज आवश्यकता इसकी है कि विपक्ष इस पर बल दे कि भ्रष्टाचार के मामलों की गहन जांच हो और वह भी तेजी के साथ । जांच एजेंसियों के साथ अदालतों को भी तेजी दिखानी चाहिए। यदि केंद्रीय जांच एजेंसियों (Agencies) के अनुचित इस्तेमाल का आरोप लगाकर संसद की कार्यवाही ठप की जाती है तो यह एक तरह से भ्रष्टाचार का बचाव ही होगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता । विपक्ष को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि बजट सत्र के दूसरे चरण में करीब तीन दर्जन विधेयक संसद की मंजूरी के इंतजार में हैं उन्हें न केवल संसद की मंजूरी मिलनी चाहिए, वल्कि उन पर व्यापक बहस भी होनी चाहिए। यह ठीक नहीं कि अब ऐसा बहुत कम होता है।