वृद्धि को गति देने वाला अनुशासित बजट

तमाम विरोधाभासी चुनौतियों के बीच सरकार ने कर सुधारों, गुणवत्तापरक व्यय और राजकोषीय अनुशासन के तार्किक मिश्रण वाला बजट पेश किया है।

Pratahkal    03-Feb-2023
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Budget 2023
 
धर्मकीर्ति जोशी : आर्थिक मोर्चे पर तमाम पहलुओं का निर्धारण बजट (Budget) के बाहर होने से उसे लेकर उत्सुकता में कुछ कमी आई है, लेकिन इस बार का बजट कहीं ज्यादा ध्यान खींचने वाला है। आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर के साथ ही यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्णकालिक बजट था। बढ़ती ब्याज दरों, काबू से बाहर होती महंगाई एवं आशंकित वैश्विक मंदी के साये ने वित्त मंत्री के समक्ष चुनौतियां और बढ़ा दी थीं। इनके अतिरिक्त महामारी के दौर में खर्चों में हुई बढ़ोतरी से बढ़े राजकोषीय घाटे को घटाने की भी चुनौती थी । यकीनन ऐसी कठिन परिस्थितियों से कोई भी वित्त मंत्री बचना चाहता । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस विकट परिस्थिति में संतुलन साधने का प्रयास किया है। तमाम विरोधाभासी चुनौतियों के बीच वित्त मंत्री सीतारमण ने एक ऐसा व्यावहारिक बजट पेश किया है, जिसमें कर सुधारों, गुणवत्तापरक व्यय और राजकोषीय अनुशासन का तार्किक मिश्रण है।
 
बजट में राजकोषीय घाटे को जीडीपी (GDP) के 5.9 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है, जो चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 6.4 प्रतिशत से कम है। इस प्रकार देखें तो बजट वृद्धि को प्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन देता नहीं दिखता। असल में राजकोषीय घाटे के अनुमान में कटौती उस सीमा के अनुरूप ही है, जिसमें सरकार ने 2025-26 तक उसे घटाकर 4.5 प्रतिशत से कम रखने का लक्ष्य रखा है। हालांकि चुनावी साल से पहले घाटे में कटौती के लक्ष्य का सकारात्मक निहितार्थ यही है कि इससे नीतिगत मोर्चे पर सरकार की साख बढ़ने के साथ ही देसी-विदेशी निवेशकों का भरोसा एवं अपेक्षाएं भी परवान चढ़ेंगी। घाटा कम होने से सरकार की उधारी लागत भी घटेगी। राजकोषीय अनुशासन का यह रूख महंगाई घटाने के रिजर्व बैंक के प्रयासों के अनुरूप भी है। याद रहे कि महंगाई घटी जरूर है, लेकिन वह गायब नहीं हुई है।
 
बजट में खर्च की उच्च गुणवत्ता बेहतरीन राजकोषीय नीति के अहम पहलुओं में से एक है। राजस्व के मोर्चे पर कुछ तंगी के बावजूद सरकार पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की रफ्तार बरकरार रखने में कामयाब हुई है। बजट में कैपेक्स कुल 27.7 प्रतिशत बढ़ा है। इसमें सरकार का फोकस सड़क, रेलवे, तेल एवं गैस और बिजली एवं अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर बना हुआ है। ऐसे खर्च के अर्थव्यवस्था (Economy) पर चक्रीय एवं गुणात्मक प्रभाव होते हैं, जिसमें अर्थव्यवस्था की उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ मध्यम अवधि में कुछ सुनिश्चित सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त होते हैं। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सरकारी और निजी कैपेक्स एक दूसरे के विकल्प नहीं, बल्कि परस्पर पूरक होते हैं। जहां बुनियादी ढांचा विकास में सरकार एक प्रमुख खिलाड़ी है तो विनिर्माण में बहुलांश निवेश निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है। ऐसे में बजट में यह आवश्यक था कि कैपेक्स की गति कायम रखी जाए और अनिश्चित परिदृश्य में निजी निवेश को प्रोत्साहन के साथ ही पुरस्कृत करने की भी राह बने। पूर्व में पीएलआई जैसी पहल निजी निवेश को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुई है और ऐसे कदमों से समय के साथ निजी निवेश में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा।
 
इस बजट में जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों का संज्ञान लेते हुए उनके समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। बजट के सप्तर्षि स्तंभों में से एक हरित वृद्धि को समर्पित है, जिसमें उत्पादन प्रक्रियाओं में कार्बन उत्सर्जन को घटाने साथ ही हरित वृद्धि की ओर संक्रमण में सुविधा- सहायता प्रदान करना है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के अतिरिक्त बजट में के ईंधन, ऊर्जा, आवाजाही, कृषि पद्धतियों और ऊर्जा के सक्षम उपयोग की दिशा में भी पहल की गई हैं। इसके लिए कैपेक्स और सब्सिडी दोनों का सहारा लिया गया है। बजट अगले साल की वृद्धि के लिए 10.5 प्रतिशत की व्यावहारिक नामिनल जीडीपी वृद्धि पर आधारित है। मुद्रास्फीति, विशेषकर थोक कीमतें तेजी से गिरावट की ओर हैं और वास्तविक वृद्धि के समक्ष तमाम चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं तो इस साल के लिए नामिनल जीडीपी का 15.4 प्रतिशत के स्तर से फिसलना तय है। ये आकलन हमारे अनुमानों के अनुरूप ही हैं।
 
महामारी के बाद 'के-शेप' वाली वृद्धि देखने को मिली है, जहां उच्च आमदनी वाले लोग कम आय वालों की तुलना में अधिक लाभ की स्थिति में हैं। साथ ही कम आय वालों को महंगाई की तपिश ने भी कहीं ज्यादा झुलसाया है । इसीलिए बजट में जरूरतमंद वर्गों के लिए दो लाख करोड़ रूपये की खाद्य सब्सिडी जारी रखी गई है। निजी आयकर के मोर्चे पर भी सरकार ने कुछ राहत प्रदान की है। करों में रियायत से सरकार को राजस्व में करीब 37,000 करोड़ रूपये की क्षति होगी, जिस राशि का करदाता बचत या उपभोग में उपयोग कर सकते हैं। इससे एफएमसीजी उत्पादों और कम कीमत वाले उपभोक्ता सामानों की मांग बढ़ेगी। इन उत्पादों से जुड़े बाजार अभी भी अपनी स्थिति में सुधार का इंतजार कर रहे हैं।
 
खजाने में सीमित गुंजाइश के बावजूद सरकार अपने राजस्व खाते के बजाय पूंजी खाते से सार्वजनिक पूंजीगत व्यय की गति में निरंतरता कायम रख पाई है। बजट में पूंजीगत व्यय करीब 28 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि राजस्व व्यय में 1.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं सब्सिडी पर चालू वित्त वर्ष के 5.6 लाख करोड़ रूपये के खर्च की तुलना में अगले वित्त वर्ष में खर्च घटकर चार लाख करोड़ रूपये रहने का अनुमान है। पिछले वर्ष भी कुछ इसी प्रकार की रणनीति अपनाई गई थी, लेकिन रूस - यूक्रेन युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं की कीमतों में आई तेजी ने वह गणित बिगाड़ दिया। यदि अस्थिर भू-राजनीतिक परिदृश्य खेल नहीं बिगाड़ता तो यह रणनीति कारगर हो सकती है, क्योंकि वैश्विक वृद्धि में भी कमी के आसार हैं। इस साल जब वैश्विक मंदी (Global Recession) की आशंका जताई जा रही है तो कोई यह नहीं बता सकता कि हालात कितने अनिश्चित हो सकते हैं। केवल यही निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार को किसी भी स्थिति के अनुसार बजट के अपने आंकड़ों पर नए सिरे से काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए ।