गीतांजली हॉस्पिटल में टीएमवीआर द्वारा हार्ट के हाई रिस्क रोगी को मिला स्वस्थ जीवन

Pratahkal    08-Dec-2023
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Geetanjali Medical College and Hospital 
उदयपुर (वि.) । गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (Geetanjali Medical College and Hospital), उदयपुर में दिल की गंभीर बीमारी से जूझ रही जैसलमेर निवासी 64 वर्षीय रोगी का गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के कार्डियक सेंटर ने अत्याधुनिक चिकित्सा तकनीक टीएमवीआर (ट्रांसकैथेटर माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट) से सफल उपचार कर स्वस्थ जीवन प्रदान किया गया। यहाँ की कुशल हृदय रोग विशेषज्ञों की टीम में डॉ. रमेश पटेल, डॉ. दिलीप जैन, डॉ. जय भारत, डॉ गौरव मित्तल, हृदय शल्य चिकित्सक डॉ संजय गाँधी, डॉ गुरप्रीत सिंह, डॉ अनुभव बंसल, आयुष रिछारिया, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ अनिल भीमाल व टीम द्वारा रोगी का इलाज किया गया। 64 वर्षीय महिला रोगी जिनको डायबिटीज की शिकायत है कि 2016 में अहमदाबाद में एंजियोप्लास्टी तथा माइट्रल वाल्व रिपेयर सर्जरी हुई तब रोगी लगभग एक माह तक कमजोर हार्ट फंक्शन के कारण आईसीयू में भर्ती रही। पिछले छः माह से रोगी के वॉल्व में लीकेज की शिकायत थी जिस कारण सांस फूलना, आधी रात में सोते हुए भी सांस का फूल जाना जैसे लक्षण थे। ऐसी स्थिति में रोगी को गीतांजली हॉस्पिटल द्वारा आयोजित कैंप में लाया गया, डॉ जय भारत द्वारा रोगी को देखा गया और हॉस्पिटल आने की सलाह दी। गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल आने पर रोगी की पूर्णतया जांच की गई जिसमें पता चला की जिस वाल्व का ऑपरेशन अहमदाबाद में 2016 में हुआ था वह पुनः लीक हो रहा था। रोगी के इस वाल्व को पुनः ठीक करना आवश्यक था इसके लिए दो विकल्प थे ओपन ऑपरेशन या टीएमवीआर जोकि बिना चीरे के किया जाता है। डॉ रमेश पटेल ने बताया की चूँकि रोगी का पहले भी 2016 में हाई रिस्क ऑपरेशन किया जा चुका था और कई बार हार्ट फेलियर के कारण रोगी हॉस्पिटल में भर्ती हो चुकी थी इसलिए पुन: ऑपरेशन करने में रिस्क भी था। रोगी के परिवारजनों ने ऑपरेशन के अलावा डॉक्टर्स से विकल्प पूछा तब टीएमवीआर की सलाह दी गयी और रोगी के परिवारजनों को विस्तार में इसके बारे में जानकारी दी गई। डॉ संजय गाँधी ने बताया कि जब परिजन चीरे वाला ऑपरेशन नहीं चाहते थे तब टीएमवीआर द्वारा इलाज संभव है। इस तरह के दुर्लभ प्रोसीज़र को अंजाम देने के लिए रोगी के रिजिड रिंग को पहले बलून द्वारा खोला गया और इसकी सहायता से रंग को वाल्व के अनुसार काफी हद तक गोल आकार दिया गया। इसके पश्चात वाल्व को प्रत्यारोपित किया गया।