'इंडिया' की अंदरूनी चुनौतियां

तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित हार के बाद उपज रही निराशा से "इंडिया" गठबंधन पर टूट का खतरा मंडरा रहा है। उसे अपनी गतिविधियों के व्यापक प्रबंधन के लिए एक पूर्णकालिक संचालक की दरकार है, पर दिक्कत यह है कि कांग्रेस की योजना में संयोजक का पद "अनावश्यक" माना जा रहा है।

Pratahkal    08-Dec-2023
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रशीद किदवई: छत्तीसगढ़ और मध्य राजस्थान, प्रदेश, इन तीन हिंदी भाषी राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली अप्रत्याशित और अपमानजनक पराजय के बाद कांग्रेस को % इंडिया % गठबंधन के भीतर से भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बमुश्किल 48 घंटों के बाद ही मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख कमलनाथ ने ईवीएम मशीनों के खिलाफ एक सामूहिक मुहिम के लिए जरूरी समर्थन जुटाने हेतु ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और नीतीश कुमार तक पहुंचने की कोशिश की ।
 
दरअसल, कमलनाथ चाहते हैं कि 'इंडिया' गठबंधन चुनावों पर न्यायमूर्ति मदन लोकुर की अध्यक्षता वाले सिटिजन कमीशन की सिफारिशों को जोर-शोर से उठाए जिनके अनुसार ईवीएम मशीनें सत्यापन योग्य नहीं हैं। सिटिजन पैनल के एक सदस्य सुभाशीष बनर्जी का तर्क है कि ईवीएम मशीन के स्रोत कोड को सार्वजनिक होना चाहिए या ईवीएम में केवल एक बार प्रोग्राम करने वाली चिप का ही इस्तेमाल होना चाहिए इत्यादि बातें केवल मुख्य मुद्दे से भटकाने का काम करती हैं।
 
अगर ये सभी मांगें मान भी ली जाएं, तब भी ईवीएम सत्यापन योग्य नहीं होंगी लेकिन ईवीएम के कथित दुरूपयोग के लिए 'इंडिया' गठबंधन का समर्थन पाने की कमलनाथ की इस कोशिश में एक बड़ा दोष है । पहला, यह पराजित पक्ष का तर्क है, और दूसरा, ईवीएम से छेड़छाड़ का यह तर्क तेलंगाना में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन के संदर्भ में अपना अर्थ खोता दिखता है, जहां उसने बीआरएस और भाजपा, दोनों को प्रभावशाली अंतर से हराया, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान 'अखिलेश - वखिलेश ' कहते हुए 'इंडिया' गठबंधन के सहयोगियों को प्रदेश से बाहर रखने के बाद कमलनाथ जिस दुस्साहस के साथ सहयोगियों से समर्थन मांग रहे हैं, उससे अखिलेश, ममता और नीतीश चकित हैं।
 
यह भी याद किया जा सकता है कि तीन महीने पहले सितंबर में दिल्ली में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार के आवास पर विपक्ष के 13 सदस्यीय पैनल की एक बैठक हुई थी, जिसमें 'इंडिया' गठबंधन ने अक्तूबर के पहले हफ्ते में भोपाल में महागठबंधन की पहली बैठक के लिए सहमति जताई गई थी। लेकिन कमलनाथ ने ऐसी किसी सार्वजनिक बैठक की मेजबानी से इन्कार कर दिया था, जो भाजपा सरकार में बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर केंद्रित होगी। भोपाल में 'इंडिया' गठबंधन की बैठक को लेकर कमलनाथ के विरोध को कई तरह से देखा जा सकता है। उनका तर्क था कि प्रस्तावित गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था, जो राज्य विधानसभा चुनाव में उन्हें नुकसान पहुंचा सकता था, जो उन्हें लगा कि वह आसानी से जीत रहे हैं। उन्हें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयगिरि द्वारा सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी से उपजे विवाद की भी जानकारी थी। वह समाजवादी पार्टी, जदयू और वामपंथियों के साथ कुछ ही सीटों को लेकर किसी भी तरह के समझौते के पक्ष में नहीं थे सभी जानते हैं कि अखिलेश यादव ने इसे कितना बड़ा मुद्दा बनाया, जिसे नीतीश कुमार और ममता बनर्जी का समर्थन भी मिला। दरअसल, मध्य प्रदेश में इस 'अन्य' वर्ग के वोट भाजपा के खाते में पड़े, जिसने भाजपा के वोट प्रतिशत को 46 फीसदी तक पहुंचा दिया, जबकि कांग्रेस 40 फीसदी पर ही ठहर गई।
 
सवाल यह है कि क्या कमलनाथ इस झड़प को टाल सकते थे ? व्यापक तौर पर देखें, तो 'इंडिया' गठबंधन के कुछ सहयोगी अब कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। सीटों के बंटवारे के प्रस्तावित फॉर्मूलें को अब टीएमसी, समाजवादी पार्टी, जदयू और आप की तरफ से ज्यादा विरोध का सामना कर पड सकता है । निराशा या अवसरवादिता के चलते 'इंडिया' गठबंधन के टूटने का भी खतरा है, क्योंकि, विपक्ष को डर सताने लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे लगभग तय ही हैं।
 
दरअसल, 'इंडिया' गठबंधन की सभी वार्ताओं में गांधी परिवार एक कमजोर कड़ी बना हुआ है। कांग्रेस में राहुल और प्रियंका गांधी की कोई भूमिका तय नहीं है। मल्लिकार्जुन खरगे को अखिल भारतीय कांग्रेस के 88वें अध्यक्ष बने बेशक एक साल से ऊपर हो चुका है, लेकिन यह बात फैली हुई है कि किसी भी राजनीतिक फैसले या मंजूरी के लिए वह राहुल गांधी के पास जाते हैं। तो, आखिर कांग्रेस के लिए आगे की राह क्या बचती है ? विपक्ष या 'इंडिया' गठबंधन को यथाशीघ्र चुनाव- प्रबंधन के तंत्र, वार्ता के बिंदु और सोशल मीडिया नीति को दुरूस्त कर लेना चाहिए ।
 
गठबंधन के सामने सबसे बड़ा सवाल नरेंद्र मोदी का है। क्या मतदाताओं की नजर में संभावित विकल्प बने बगैर मौजूदा प्रधानमंत्री से सवाल करना या उनकी आलोचना करना उचित है ? 'इंडिया' गठबंधन के लिए कैच - 22 ( विरोधाभाषी स्थितियों में फंसना) जैसी स्थिति हो गई है । उन्हें मोदी को कठघरे में भी खड़ा करना है, और अपने बीच से किसी को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर न दिखाने को लेकर उनमें तकरीबन सहमति भी है। इसी तरह जाति जनगणना और आरक्षण के मुद्दों पर राहुल गांधी का खास जोर और धार्मिक कार्यक्रमों में बदलाव लाने के कांग्रेस के प्रयास कुछ ज्वलंत मुद्दे हैं।
 
कांग्रेस और 'इंडिया' गठबंधन में कई लोग ऐसे हैं, जो जाति जनगणना के मुद्दे पर ज्यादा विचार विमर्श की जरूरत को मानते हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ द्वारा शुरू किए गए हिंदुत्व समर्थक कार्यक्रमों पर भी बात होने की पूरी उम्मीद है। 'इंडिया' गठबंधन को अपनी गतिविधियों के व्यापक प्रबंधन के लिए एक पूर्णकालिक संयोजक की भी जरूरत है, जिस पर सहमति नहीं बन पा रही है। किसी से छिपा नहीं है कि इसके लिए ममता बनर्जी, शरद पवार और नीतीश कुमार इसके कुछ दावेदार हैं, बशर्ते कांग्रेस नेतृत्व (गांधी परिवार और खरगे), उनसे औपचारिक अनुरोध करें ।
 
दिक्कत यह है कि कांग्रेस की योजना में संयोजक का पद कुछ अस्पष्ट वजहों से 'अनावश्यक' माना जा रहा है। इन चुनौतियों को देखते हुए ममता, नीतीश और अखिलेश जैसे 'इंडिया' गठबंधन के नेता चाहते हैं कि कांग्रेस अपनी तरफ से सुलह के कुछ संकेत दे और अनौपचारिक तौर पर गठबंधन का नेतृत्व क्षेत्रीय दलों को सौंपे। यह कड़वी दवा ही कांग्रेस के लिए एकमात्र उपचार है, जिसके लिए वक्त तेजी से खत्म होता जा रहा है ।