सुरेंद्र किशोर : देश की जनता को प्रभावित करने वाले देश प्रमुख मुद्दों में सर्वाधिक गंभीर दो मुद्दों को यदि चुना जाए तो वे कौन से होंगे? संभवतः भ्रष्टाचार और आतंकवाद । ये दो मुद्दे आज किन-किन दलों की प्राथमिकता में हैं? अधिकांश दलों की प्राथमिकता में तो नहीं दिखते, लेकिन भाजपा (bjp) और उसके सहयोगी दलों की प्राथमिकता में जरूर हैं, क्योंकि ये दल समझते हैं कि आम जनता इन मुद्दों का हल चाहती है। यही कारण है कि भाजपा 2014 से लगातार केंद्र और कई राज्यों की सत्ता में है। भले ही ढीले-ढाले ढंग से ही सही, लेकिन एक समय अन्य दलों की प्राथमिकताओं में भी ये मुद्दे थे। हालांकि आज वे इनकी चर्चा भी नहीं करते। चर्चा करते भी हैं तो मुद्दे को दूसरा मोड़ देने के लिए। जैसे कुछ दल कहते हैं कि भ्रष्टाचार (Corruption) कोई मुद्दा है ही नहीं। वहीं आतंकवाद के मुद्दे पर उनका आरोप होता है कि सांप्रदायिक भावना उभारने के लिए ऐसी चर्चाएं भाजपा ही करती रहती है। जबकि वास्तविकता यही है कि आतंकवाद विशेषकर इस्लामिक आतंकवाद आज विश्वव्यापी समस्या है। यहां तक कि चीन भी इस चुनौती से जूझ रहा है। क्या चीन सरकार भी कोई सांप्रदायिक भावना उभारने के लिए जिहादियों का दमन कर रही है या अपनी एकता - अखंडता को बनाए रखने के लिए?
भ्रष्टाचार भारत (india) में बहुत गंभीर मुद्दा रहा है। जयप्रकाश नारायण और डा. राममनोहर लोहिया जैसे दिग्गज भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ते रहे। उनकी अपील जनता में स्वीकार्य भी रही । डा. लोहिया के प्रयासों से 1967 में सात राज्यों में कांग्रेस चुनाव हार गई। कांग्रेस की सरकारें तब भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही थीं। पिछली सदी के आठवें दशक में जेपी आंदोलन के दौरान भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और कुशिक्षा जैसे मुद्दे केंद्र में थे। क्या आज जेपी और लोहिया के नाम पर राजनीति करने वाले दलों और नेताओं के लिए भ्रष्टाचार और आतंकवाद कोई मुद्दा है ? आम धारणा तो यही दिखाती है कि अब ऐसा नहीं है। जबकि एक समय ऐसा नहीं था । 28 सितंबर, 1992 को केंद्रीय गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने घुसपैठियों की समस्या से जूझ रहे राज्यों की एक बैठक बुलाई थी । उसमें बंगाल के ज्योति बसु, असम के हितेश्वर सैकिया और बिहार के लालू प्रसाद यादव शामिल हुए। बैठक में प्रस्ताव पारित हुआ कि सीमावर्ती जिलों के सभी निवासियों को परिचय पत्र दिए जाएं। यह भी तय हुआ कि अवैध घुसपैठ से संबंधित विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोग से एक प्रभावशाली नीति और समन्वित कार्ययोजना बनाई जाएगी। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उस बैठक में यहां तक कहा कि अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में संपत्ति खरीदने से रोकने के लिए कानून बने। क्या ये दल 1992 के अपने उस संकल्प पर अब भी कायम हैं?
इस उपरोक्त सवाल का जवाब तो नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के मसले पर ही मिल गया। सीएए विरोधी प्रदर्शनों को कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने खुलकर समर्थन दिया । इन संगठनों में वह पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआई भी था, जो 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का सपना पाले हुए है। सीएए के अलावा राष्ट्रीय नागरिक पंजिका यानी एनआरसी को लेकर भी इन दलों का रवैया संदिग्ध है। यहां तक कि केंद्रीय स्तर पर एनआरसी की पहल न होने के बावजूद कुछ विपक्षी दल उसका डर दिखाने लगे । जबकि सीएए और एनआरसी जैसी पहल देश में अवैध घुसपैठियों की समस्या का समाधान करने के साथ ही पड़ोसी देशों में सताए जा रहे अल्पसंख्यकों के लिए मानवीय उपचार का काम करने में सक्षम हैं, लेकिन कतिपय राजनीतिक लाभ के चलते अपने ही देश के कुछ दल इनका विरोध करने पर तुले हैं।
एक समय कांग्रेस (congress) भ्रष्टाचार को गंभीर समस्या मानती थी। हालांकि इसके साथ ही उसने मजबूरी भी जताई कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में असमर्थ है। लाल किले से 15 अगस्त, 2011 को दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया था कि देश की तरक्की में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा है और यह सभी के लिए गहरी चिंता का विषय है। उन्होंने यह भी कहा था कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकार के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है। एक अन्य अवसर पर उन्होंने कहा था कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते सरकार भ्रष्टाचार पर प्रहार नहीं कर पा रही है। अब जब मोदी सरकार चुन-चुन कर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है तो कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल कह रहे हैं कि यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से हो रही है। इस मामले से एक बात जरूर साफ होती है कि गठबंधन की मजबूरियां सरकार के हाथ बांध देती है तो स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को भ्रष्टाचार पर वार करने में किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं होता। साथ ही इसमें राजनीतिक दृढ़ता की भी भूमिका होती है, जो प्रधानमंत्री मोदी में प्रत्यक्ष दिखती है ।
आतंकवाद से निपटने से लेकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का लाभ प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) को लगातार मिल रहा है। वहीं घुसपैठ रोकने के मामले में अभी भी कुछ न कुछ शिथिलता की खबरें आती रहती हैं। ये मुद्दे राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील हैं। इन्हें ठीक से न समझ पाना राजनीतिक दलों को बहुत भारी पड़ता है। एक उदाहरण से इसे बखूबी समझा जा सकता है। यह 1977 की बात है। चुनावों के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चुनाव प्रचार में कहते थे कि अमेरिका डिएगो गार्सिया ( हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र) में अपना एक सैन्य अड्डा बना रहा है, जो दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा है । उसी चुनाव में जनता पार्टी के नेता आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों की बात करते थे। उस चुनाव में दक्षिणी हिस्से को छोड़कर शेष भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया । चुनाव बाद बिहार (Bihar) में भाकपा की एक बैठक के दौरान पार्टी के एक सदस्य ने नेतृत्व से चुटकी लेते हुए पूछा भी था ि 'कामरेड, आजकल डिएगो गार्सिया का क्या हाल है?"