कितनी प्रभावी होगी कृत्रिम वर्षा

अनेक प्रकार के उपायों के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक धुंध एवं वायु प्रदूषण की समस्या कायम है। ऐसे में इस संकट के तात्कालिक समाधान या कहें कि फौरी राहत के लिए दिल्ली सरकार ने कुछ अल्पकालीन उपायों पर विचार किया है। इनमें से एक उपाय दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने का भी है। लेकिन क्या यह उपाय कारगर है ? साथ ही इसके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं जिनके बारे में समय रहते विचार किया जाना चाहिए .....

Pratahkal    22-Nov-2023
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अभिषेक कुमार सिंह... दिल्ली- 1- एनसीआर में जहरीली धुंध (स्माग ) एक बार फिर लौट आई है । हरियाणा (Hariyana) - पंजाब (Panjab) के खेतों में जलाई गई पराली से पैदा हुई धुंध से दिल्ली (Delhi) एनसीआर को कुछ राहत बारिश ने दिलाई थी, लेकिन दीवाली (Diwali) के आसपास हुई आतिशबाजी ने वायु प्रदूषण के हालात पहले की तरह बिगाड़ दिए हैं। बीते दो सप्ताह से वायु गुणवत्ता का स्तर (एक्यूआई ) निरंतर 400 से भी ऊपर बना हुआ है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद न तो पराली जलाने और न ही पटाखे फोड़ने पर कोई प्रभावी रोक लग पाई है, इसलिए वायु प्रदूषण (Air Polution) से निपटने के उन उपायों को आजमाने पर जोर है जो समस्या का तात्कालिक समाधान देते हों । जैसे कृत्रिम वर्षा (artificial rain) कराना या एंटी-स्माग गन का उपयोग आदि ।
 
नकली बारिश : पिछले लगभग दो दशकों से दिल्ली-एनसीआर समेत समूचा उत्तर भारत गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। कहने को तो पूरी दुनिया में ही खराब हवा इंसानों की सेहत बिगाड़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति खराब है। लेकिन इस मामले में भारत (India), पाकिस्तान (Pakisthan), बांग्लादेश (bangladesh ) समेत कई एशियाई देशों की दशा पहले की तुलना में खराब होती जा रही है। इस समस्या के समाधान की जितनी कोशिशें की जाती हैं, संकट और ज्यादा गहराता जाता है । जैसे कभी दिल्ली में चलने वाली डीजल बसों के स्थान पर सीएनजी बसों का संचालन शुरू किया गया, डीजल ट्रकों के राजधानी में प्रवेश पर अंकुश लगाया गया, तो कभी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर जुर्माना लगाने की व्यवस्था अदालतों की ओर से लागू की गई। इसी क्रम में ग्रैप (ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान) योजना के जरिए दिल्ली- एनसीआर में वायु प्रदूषण नियंत्रण का प्रबंधन किया गया, जिसमें वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग इलाके के प्रदूषण के स्तर के अनुसार विभिन्न चरणों में प्रतिबंध लगाने वाले आपातकालीन उपायों को लागू करता है। सड़कों पर पानी के छिड़काव, एंटी स्माग गन के उपयोग और ऐसे ही कई उपायों को आजमाने के संतोषजनक नतीजे नहीं आने का ही परिणाम है कि दिल्ली सरकार अक्सर एक ब्रह्मास्त्र के उपयोग की घोषणा करती है। यह ब्रह्मास्त्र है कृत्रिम वर्षा, ताकि हवा में मौजूद धुएं और धूल के कणों को धरातल पर लाते हुए हवा को कुछ स्वच्छ बनाया जा सके।
 
लाभ कम हानि अधिक : इस वर्ष भी जब नवंबर के आरंभिक हफ्तों में दिल्ली- एनसीआर के लोग जहरीली धुंध में बुरी तरह खांसते- हांफते नजर आने लगे, तो दिल्ली सरकार ने घोषणा कर दी कि 20 नवंबर के आसपास कृत्रिम वर्षा कराई जा सकती है। यह तारीख मौसम के पूर्वानुमानों के आधार पर चुनी गई थी, क्योंकि इस दौरान यहां के आकाश में पानी वाले बादलों की मौजूदगी का अनुमान लगाया गया था । हालांकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए फिलहाल अभी ऐसा मुश्किल दिख रहा है। फिर भी क्लाउड सीडिंग नामक तकनीक वाली कृत्रिम बारिश के सहारे वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के बारे में सोचना एक अलग पहल है जिसके फायदे कम, नुकसान ज्यादा नजर आते हैं। इसी तरह अन्य जिन उपायों को अमल में लाने पर सरकार गंभीरता दिखा रही है, वे भी प्रदूषण का प्रबंधन करते ज्यादा नजर आ रहे हैं, निदान नहीं। यहां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कृत्रिम बारिश कराना समस्या का स्थायी समाधान है ?
 
कृत्रिम बारिश को विज्ञान की भाषा में क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है। ऐसी बारिश कराने के लिए छोटे आकार के राकेटनुमा यंत्र केमिकल भर कर आकाश में दागे जाते हैं। विमानों, हेलिकाप्टर और ड्रोन से भी नकली बारिश कराने के कुछ प्रयोग दुनिया में सफल हुए हैं। केमिकल के रूप में सिर आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।
 
यह रसायन आकाश में छितराए हुए बादलों से रासायनिक क्रिया कर बारिश करता है। रसायनों के छिड़काव से बादलों के अंदर की पानी की बूंदें भारी होकर बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं। इस तकनीक से सामान्य तौर पर 20 किमी के दायरे में बारिश होती है वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार, केमिकल से भरा राकेट आकाश में दागे जाने के 45 मिनट बाद कृत्रिम बारिश होती है। इसके लिए कई और चीजें जरूरी होती हैं, जैसे बादलों में वाष्पीकरण की क्षमता हो और जहां कृत्रिम बारिश करानी हो, उस इलाके का तापमान, हवा की दिशा और वेग एक निश्चित अनुपात में हो, क्योंकि इनमें जरा सी भी ऊंच-नीच कृत्रिम बारिश को नाकाम कर देती है।
 
गैस चैंबर बने शहरों की समस्या : कृत्रिम बारिश की एक नई तकनीक का प्रयोग पिछली सदी के अंतिम दशक में दक्षिण अफ्रीका में किया गया था। वहां हाइड्रोस्कोपिक 'क्लाउड सीडिंग' को विकसित किया गया, जिसमें बादलों में सोडियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे रसायनों का छिड़काव करके बारिश कराई जाती है। हाल के वर्षों में इसे लेकर चीन और भारत में काफी दिलचस्पी दिखाई गई है। फिलहाल चीन सालाना लगभग डेढ़ से दो करोड़ डालर कृत्रिम बारिश पर खर्च कर रहा है। हमारे देश में कृत्रिम बारिश का प्रयोग 1951 में ही शुरू हो गया था। सबसे पहले पश्चिमी घाट इलाके में कोशिश की गई थी। अतीत में महाराष्ट्र और कर्नाटक में कृत्रिम बारिश कराने की कोशिशें नाकाम रही हैं, क्योंकि नमी वाले बादल उस दौरान उड़कर कहीं और चले गए। असल में कृत्रिम बारिश कराने की अपनी मुश्किलें हैं। जरूरी नहीं है कि इस तकनीक से कहीं भी, कभी भी बारिश नहीं कराई जा सके।
ध्यान रखना होगा कि अलग-अलग इलाकों में दलों की बनावट अलग होती है। उस खास इलाके के मौसम को ढंग से समझकर ही कृत्रिम बारिश का फैसला लिया जाता है। सर्दी और गर्मी के मौसम में बादलों के भीतर पानी की बूंदें बहुत कम होती हैं। यदि किसी इलाके मैं पराली और वाहनों से पैदा हुए प्रदूषण में जहरीली गैसों की मात्रा ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति में नकली बारिश के कुछ दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं। नमी और पानी से भरे बादलों के अभाव में आसमान में रसायनों का छिड़काव यहां के स्माग में मौजूद जहरीले तत्वों की बारिश करा सकता है जो वर्षा को तेजाबी वर्षा ( एसिड रेन) में बदल सकता है। चीन में कृत्रिम बारिश कराने के तौर तरीकों को लेकर इसीलिए सवाल उठते रहे हैं, क्योंकि इससे गैस चैंबर में बदल चुके शहरों में कई बार यह बारिश एसिड रेन में बदल जाती है।
 
वस्तुतः प्रकृति ने धरती पर वर्षा करने की जो व्यवस्था स्वयं बनाई है, वह अमूमन जमीन और पूरे वातावरण को सेहतमंद बनाती है । इसके लिए जमीन पर हरियाली लाने के उपाय करना और वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की पहल करना तो उचित है, लेकिन स्थान की प्रवृत्ति, हालात और जरूरत को समझे बिना आनन-फानन कृत्रिम बारिश कराना जानलेवा भी साबित हो सकता है। यह समझना होगा कि खेतों में जलाई गई पराली, दीपावली पर जलाए गए पटाखों के रासायनिक धुएं, कारखानों से निकले वायु प्रदूषण और वाहनों से निकली जहरीली गैसों और तत्वों के कारण दिल्ली- एनसीआर की हवा एक किस्म के जहरीले काकटेल में बदल गई है। ऐसे हालात में कृत्रिम बारिश वायु प्रदूषण की समस्या को और बढ़ा सकती है।