बदलती विश्व व्यवस्था और भारत

यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिम एशिया के संकट में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका नगण्य ही दिखी। जी -20 की अध्यक्षता के बाद भारत से भी प्रभावी भूमिका अदा करने की अपेक्षा है। आज भारत के पास मजबूत नेतृत्व और आर्थिक ताकत है, लिहाजा उसे समय पर सक्रिय होते हुए अपनी क्षमता प्रदर्शित करनी होगी।

Pratahkal    21-Nov-2023
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India's Role in Changing Global Dynamics 
 
एम के नारायणन… हम निरंतर तीव्र (Constant Intense) और बढ़ती भूरणनीतिक प्रतिस्पर्धा (Increasing Geostrategic Competition) के समक्ष भारी जोखिम (Huge Risk) और संभावनाओं (Possibilities) के समय में जी रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के आखिर में संशय का शिकार होने के बाद से दुनिया ज्यादा से ज्यादा संघर्ष की तरफ झुकती दिख रही है। नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था आज पश्चिमी देशों की कल्पना मात्र रह गई है, दुनिया भर के ज्यादातर देश मात्र इसका दिखावा कर रहे हैं। वर्ष 2022 का यूक्रेन संघर्ष इस गिरावट की शुरूआत है तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संघर्ष एवं विकास के विस्तार से इसमें तेजी आई है।
 
जैसे ही दुनिया ने 21वीं सदी में प्रवेश किया, चीन और उसकी आधिपत्यवादी प्रवृत्ति विशेष रूप से पश्चिम के लिए एक स्थायी चिंता का विषय बन गई और यह मौजूदा विश्व व्यवस्था के लिए भी खतरा है। उनमें से कई देशों के लिए ताइवान ज्वलंत प्रतीक है, जहां कभी भी संघर्ष शुरू हो सकता है। हालांकि ज्यादातर दूसरे देश यह सोचते हैं कि लंबे समय तक चलने वाला यूक्रेन युद्ध वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा हो सकता है, जिसने पहले ही विभिन्न देशों को अपना पक्ष चुनने के लिए मजबूर कर दिया है।
इस बीच हिंद- प्रशांत क्षेत्र को रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखा जाने लगा है। ऐसा इसलिए है कि आज इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में सैन्य शक्ति और धन मौजूद है। साथ ही विभिन्न तरह के तनावों को झेलने की इसकी क्षमता अनिश्चित बनी हुई है । ताइवान को लेकर संघर्ष या दक्षिण चीन सागर में समुद्री यातायात को लेकर खतरे (जो हमेशा रहने वाला खतरा है) जैसी स्थितियों के नतीजे तब तक गंभीर साबित हो सकते हैं, जब तक कि इससे उचित तरीके से निपटा नहीं जाता है, क्योंकि अमेरिका, यूरोपीय शक्तियां और सभी पश्चिमी देश चीन ( और रूस एवं उनके सहयोगियों के समूह) के खिलाफ हैं। दोनों पक्षों के पास परमाणु सहित अत्याधुनिक हथियार हैं और ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्या हो सकता है। इस क्षेत्र में शांति चीन के व्यवहार पर निर्भर करती है, लेकिन उसका रवैया अस्पष्ट एवं अनिश्चित है।
 
शी जिनपिंग के राष्ट्रपति काल में चीन और भी आक्रामक हो गया है, जो पहले एशिया-प्रशांत क्षेत्र में और फिर दुनिया के बाकी हिस्सों में वर्चस्व हासिल करना चाहता है। चीन द्वारा निर्देशित और चीन के प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था के प्रति उसका विश्वास न केवल एशिया के देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक आसन्न खतरा है। हाल के घरेलू घटनाक्रम ने भले ही चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी हो, लेकिन वह अब भी विश्व शांति के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है।
बंटी हुई दुनिया में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और संघर्ष के मद्देनजर आज हम पश्चिम एशिया की सबसे शक्तिशाली सेना यानी इस्राइली रक्षा बलों का हाल देख रहे हैं, जिसे हमास ने घातक झटका दिया है, जबकि हमास को कभी बहुत घातक आतंकी संगठन नहीं माना गया । इस्राइल का इस तरह से झुकना एक नए खतरे की आशंका को जन्म देता है यानी कि भविष्य की लड़ाई देश की सेनाओं और आतंकी संगठनों के बीच हो सकती है, जो अप्रत्याशित परिणामों का मार्ग प्रशस्त करेगी।
 
शांति का माहौल बनाने के लिए कई महीनों से चल रहे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों (इस्राइल और पश्चिम एशिया के कुछ देशों के बीच अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर सहित ) की पृष्ठभूमि में हमास का विगत 7 अक्तूबर को किया गया हमला दुनिया के सबसे अशांत क्षेत्रों में से एक पश्चिम एशिया में शांति की कमजोर स्थिति को दर्शाता है। हमास के 7 अक्तूबर के हमले ने शांति के लिए मौजूद सभी अवसरों और उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया है। खास बात यह है कि इसने न केवल दुनिया भर में आतंकवाद को बढ़ावा दिया है, बल्कि आधुनिक संघर्ष को एक नया आयाम दिया है।
 
हाल के घटनाक्रमनों ने, चाहे वह यूक्रेन हो, पश्चिम एशिया हो या फिर सुदूर पूर्व, निर्णायक रूप से यह प्रदर्शित किया है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन और शांति की दिशा में कोई भी सार्थक कदम उठाने या शांति के लिए बातचीत की शुरुआत करने की उसकी क्षमता पूरी तरह से अप्रासंगिक है। इसका नतीजा यह है कि जैसे-जैसे 2023 अंत की ओर बढ़ रहा है, दुनिया बिखरी हुई नजर आ रही है। इससे भी बुरी बात यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों पर असर डालने वाले संघर्षों के समाधान की कोई उम्मीद नहीं है।
 
इन सबने भारत को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। जी-20 की सफल अध्यक्षता से उत्साहित और अपेक्षाकृत बेहतर अर्थव्यवस्था वाली दुनिया के कुछेक गिने-चुने देशों में से एक भारत से कम से कम यूरोप और पश्चिम एशिया के देशों में इन विवादों के निपटारे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की गई होगी। रूस और अधिकांश यूरोपीय देशों के साथ भारत के बहुत बेहतर रिश्ते रहे हैं और दोनों क्षेत्रों के लोगों एवं नेताओं के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंध हैं। हाल ही में यह अमेरिका और पश्चिमी देशों के सबसे पसंदीदा देशों में से एक बनकर उभरा है। फिर भी यह यूक्रेन-रूस संघर्ष में शांति की उम्मीद जगाने या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तनाव कम करने के लिए इस सद्भावना का फायदा उठाने में विफल रहा है। पश्चिम एशिया के संकट में इसकी बहुत कम भूमिका रही है।
 
कुछ लोग इससे इन्कार करते हुए कह सकते हैं कि आज शायद ही कोई ऐसा देश है, जिसके पास अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तेजी से आई मौजूदा गिरावट पर विराम लगाने और संभावित महायुद्ध को रोकने की क्षमता और आवश्यक सद्भावना है, जिस पर दुनिया अभी विचार कर रही है । यदि मौजूदा स्थिति को कुछ और समय तक जारी रहने दिया गया, तो 21वीं सदी को 17वीं और 18वीं सदी की तरह ही देखा जा सकता है। आ भारत के पास अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गिरावट को रोकने के लिए उपयोगी भूमिका निभाने की खातिर मजबूत नेतृत्व और आर्थिक ताकत है, लेकिन उसे जरूरी समय पर सक्रिय होते हुए अपनी क्षमता प्रदर्शित करनी पड़ेगी । (लेखक इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेशक, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल हैं)