शिवेश प्रताप... विश्वकई देशों की अर्थव्यवस्था मंदी (economy recession) विश्व की ओर जाती हुई दिख रही है। परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से प्रगति कर रही है। अमेरिका में फिलहाल 65 प्रतिशत, जापान में 35 प्रतिशत तथा चीन में 12.5 प्रतिशत मंदी की आशंकाओं के बीच भारत में इसकी आशंका फिलहाल नहीं के बराबर है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में भारत का योगदान वर्ष 2014 में 2.6 प्रतिशत था जो वर्ष 2023 में बढ़कर 3.5 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। वर्ष 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 2 लाख करोड़ डालर की थी जो वर्ष 2023 में 3.45 लाख करोड़ डालर की हो चुकी है।
इस बीच मूडीज ने वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत यदि अपनी वर्तमान विकास दर 6 प्रतिशत से ऊपर कायम रखता है तो बहुत जल्द जर्मनी की अर्थव्यवस्था (economy) को पछाड़ कर वह संसार की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उपरोक्त सभी मान बिंदुओं को समझकर यह विचार करना स्वाभाविक है कि भारत (India) जैसी एक सुस्त अर्थव्यवस्था के भीतर आखिर एक दशक में ऐसे कौन-से क्रांतिकारी परिवर्तन हुए जिसने इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का सिरमौर बना दिया है। वस्तुतः निवेश और विकास का चक्रीय संबंध होता है यानी निवेश द्वारा विकास एवं विकास द्वारा निवेश आकर्षित होता है। केंद्र सरकार द्वारा बीते एक दशक के दौरान ईमानदार प्रयासों से भारत के निवेश और विकास के अंतर्संबंधों में परिश्रम का परिणाम ही दुनिया के सामने आना प्रारंभ हुआ है।
इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास : जाने माने अर्थशास्त्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) ने एक बार कहा था कि भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर (आधारभूत संरचना) को आधुनिक होने की आवश्यकता है और इस आधुनिकता की दर इतनी तीव्र होनी चाहिए कि यह हमारे विकास की जरूरत के साथ तालमेल बिठा सके। परंतु इस विचार को जन्म देने वाले डा. मनमोहन सिंह इसे अपने कार्यकाल में भी मूर्त रूप न दे सके, लेकिन उनका यह विचार इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की गंभीरता को व्यक्त करता है । भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की जो रफ्तार वर्ष 2014 के बाद से बढ़ी है, वह अभूतपूर्व है । पिछले एक दशक में केंद्र सरकार द्वारा आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की दिशा में कई गंभीर एवं ठोस कदम उठाए गए हैं। एक -अध्ययन के अनुसार, मूलभूत ढांचे के विकास पर खर्च किया जाने वाले हर एक रूपये का प्रभाव उस देश की जीडीपी पर लगभग एक से डेढ़ गुना तक पड़ता है।
पिछले एक दशक में रोड इंफ्रास्ट्रक्चर में लगभग 50 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण किया गया है। वर्ष 2014-15 में देश में राजमार्ग की कुल लंबाई 97,830 किलोमीटर थी, वहीं नौ वर्षों बाद आज राजमार्गों की लंबाई लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर हो गई है। देश की ग्रामीण जनता को अपने कृषि उत्पादों को शहरी क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए देश के राजमार्गों को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के द्वारा लगभग 99 प्रतिशत गांवों से जोड़ दिया गया है। लेकिन रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के क्रांतिकारी विकास का सबसे बड़ा लाभ सभी प्रकार की माल ढुलाई वाले सप्लाई चेन सिस्टम को हुआ है। माल ढुलाई की लागत में कमी आने के साथ ही आवागमन में भी समय की भारी बचत सुनिश्चित हुई है।
भारतीय रेल का विस्तार : रोड इंफ्रास्ट्रक्चर की तर्ज पर ही रेल इंफ्रास्ट्रक्चर में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है, जिसके अंतर्गत व्यापक स्तर पर रेल मार्ग दोहरीकरण तथा विद्युतीकरण का कार्य किया गया है। वर्ष 2014-15 में 1,545 किलोमीटर रेलवे ट्रैक बिछाया गया तो वहीं वर्ष 2021-22 में 2,907 किलोमीटर रेलवे ट्रैक बिछाया गया । एक और जहां वर्ष 2006 से 2014 के बीच 4,698 किलोमीटर रेल मार्ग का विद्युतीकरण हुआ तो वहीं वर्ष 2014 से 2023 के बीच में 37,011 किलोमीटर रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण हुआ । रेल रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से एक तरफ जहां उद्योग-धंधों को लाभ मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर देसी एवं विदेशी पर्यटन में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया। वर्ष 2013 में जीडीपी में पर्यटन का योगदान मात्र 172 अरब डालर का था जो वर्ष 2018 तक 250 अरब डालर तक पहुंच गया। इसी के साथ भारत अपने उड्डयन क्षेत्र को बेहतर बनाने और बंदरगाहों को उन्नत बनाने के साथ देश भर में जलमार्ग को लोकप्रिय बनाने पर गंभीरता से कार्य कर रहा है।
वस्तुतः भारत के कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर के चलते चीन के मुकाबले हमारे देश में किसी भी वस्तु की निर्माण लागत अधिक होती है। इसलिए दुनिया भर के उद्योगपति चीन में अपनी विनिर्माण इकाइयां लगाना अच्छा मानते थे । भारत में तेजी से होते इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के कारण अब विनिर्माण क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को एक अच्छी प्रतिस्पर्धा मिल रही है । इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से भारत सरकार का लक्ष्य है कि वर्तमान के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को 15-16 प्रतिशत के स्तर से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक पहुंचाया जाए ।
मजबूत होता बैंकिंग क्षेत्र : वर्ष 2023 में अमेरिका के तीन बैंकों के धराशायी होने से दुनिया के ऊपर मंदी का संकट मंडराने लगा, परंतु भारत के मजबूत बैंकिंग तंत्र की वजह से ऐसा कोई भी खतरा भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा । भारत सरकार के साथ- साथ भारतीय रिजर्व बैंक तथा सेबी जैसी संस्थाएं एक रेगुलेटर की तरह भारतीय बैंकिंग तंत्र में पारदर्शिता एवं सहयोग का तंत्र स्थापित करती हैं । अमेरिका की तरह भारत में बल्क विड्रोल यानी एकसाथ बड़ी मात्रा में रकम निकाले जाने जैसी समस्याएं नहीं आती हैं, क्योंकि यहां जमाकर्ताओं को सरकार के द्वारा गारंटी नए राजमागों के निर्माण से देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से नए अवसरों का सृजन होता है। मिलने के कारण अपनी जमा पूंजी के प्रति एक निश्चिंतता रहती है। पिछले एक दशक में एनपीए यानी नान - परफार्मिंग एसेट्स में लगातार गिरावट दर्ज हुई है । वर्ष 2018 में बैड लोन 10.8 प्रतिशत था जो वर्तमान में घटकर मात्र 4.9 प्रतिशत रह गया है। यह बात सीधे रूप में बताती है कि बैंकिंग की दशा में बहुत अच्छा सुधार हुआ है। भारतीय बैंकों ने अपनी पूंजी की स्थिति को भी उत्तरोत्तर मजबूत किया है। बैंकों में जमा पूंजी के मामले में भी बेहद वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2016 में जहां भारतीय बैंकों में कुल जमा पूंजी 1,149 अरब डालर थी, वहीं वर्ष 2022 में यह जमा पूंजी बढ़कर 2,100 अरब डालर हो गई।
तेजी से बदलते हुए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति की समस्या से जूझ रही है, वहीं रिजर्व बैंक आफ इंडिया तथा भारत सरकार ने चैतन्य होकर कार्य करते हुए आवश्यकतानुसार मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रित रखा है। कहा जा सकता है कि विदेशी मुद्रा भंडार तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूपये की स्थिति को स्थिर बनाए रखने में भारत सरकार ने जबरदस्त सफलता पाई ।
निवेश का सतत अभियान : पहले कोविड (covid) जैसी वैश्विक महामारी (global pandemic) और उसके बाद रूस (russia) यूक्रेन (ukraine) संकट के बीच जहां दुनिया भर में ऊहापोह की स्थिति रही, तो भारत इन दोनों संकटों में और निखरकर उभरा है। यही कारण है कि विदेशी निवेशक भारत में निरंतर अपनी रकम को निवेश करना चाहते हैं। वर्ष 2011-12 में विदेशी निवेश 46.5 अरब डालर थी जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 83.5 अरब डालर हो गई है। सीआईआई (कन्फेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्रीज) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अगले पांच वर्षों में 475 अरब डालर के विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है।
इतनी भू-राजनीतिक चुनौतियों, बेरोजगारी, उच्च मुद्रास्फीति एवं मुद्रा के अवमूल्यन के बावजूद विश्व भर के निवेशक भारत में निवेश करना चाहते हैं । वैश्विक गवर्नमेंट बांड इंडेक्स में भारत के शामिल होने का अर्थ है कि विश्व के निवेशकों द्वारा अब भारत के राजनीतिक तंत्र पर इतना विश्वास किया जा रहा है कि वह सरकार के बांड को निवेश के लिए उपयुक्त मानते हैं। यह देश की राजनीति की दृढ़ता एवं आर्थिक शुचिता के लिए एक बड़ा प्रमाण है।