तालमेल के अभाव से जूझता आइएनडीआइए

कांग्रेस का रवैया यही बता रहा कि वह विधानसभा चुनावों में घटक दलों से कोई समझौता करने को तैयार नहीं.....

Pratahkal    11-Nov-2023
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Political Alliances Disarray 
 
संजय गुप्त… विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए (opposition alliance india) में सब कुछ ठीक नहीं, इसके संकेत अब और अधिक स्पष्ट होने लगे हैं। बीते दिवस ही समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के प्रमुख अखिलेश यादव (Chief Akhilesh Yadav) ने कां  (Chief Akhilesh Yadav)  ग्रेस (Congress) और भाजपा (BJP) को एक जैसा बता दिया । वह इससे कुपित हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस (Congress) सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं । वह पहले भी कांग्रेस के रवैये को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट कर चुके थे, लेकिन फिर ऐसा लगा कि कांग्रेस उन्हें मनाना चाहती है और इसी कारण वह थोड़ा नरम पड़े, लेकिन अब जब यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस मध्य प्रदेश में उन्हें कोई महत्व नहीं देने वाली तो वह फिर से उस पर हमलावर हो गए। इस बार उन्होंने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि उसकी विचारधारा वैसी ही है, जैसी भाजपा की । उन्होंने कांग्रेस पर यह आरोप भी मढ़ा कि उसने ही आजादी के बाद जातिगत जनगणना नहीं होने दी और अब वह इसकी मांग कर रही है। साफ है कि वह यह नहीं चाहते कि कांग्रेस इस मुद्दे पर बढ़त लेती हुई दिखे। अखिलेश यादव ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब लोकसभा चुनाव में ही यह देखा जाएगा कि मिलकर चुनाव लड़ना संभव हो पाएगा या नहीं ? वह यह भी कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान मिलकर चुनाव लड़ने पर समझौता होता है तो सपा 65 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और यदि नहीं होता तो सभी 80 सीटों पर । कांग्रेस के रवैये से केवल अखिलेश यादव ही नाराज नहीं हैं। चंद दिन पहले नीतीश कुमार ने भी यह कहकर अपनी नाराजगी जताई थी कि आइएनडीआइए में कोई काम नहीं हो रहा है और कांग्रेस का सारा ध्यान विधानसभा चुनावों पर है। विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में सब कुछ ठीक नहीं, यह बात जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Chief Minister Omar Abdullah) भी कह चुके हैं और एनसीपी के नेता शरद पवार भी ।
 
हालांकि कांग्रेस आइएनडीआइए (Congress India) की मुख्य घटक है, लेकिन उसके रवैये से यह स्पष्ट है कि वह पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन के घटक दलों को कोई भाव देने को तैयार नहीं। उसकी रणनीति यह है कि यदि वह राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में बेहतर प्रदर्शन करती है तो लोकसभा चुनाव में आइएनडीआइए के घटकों से अपनी शर्तों पर समझौता करने में सक्षम हो सकेगी। वह इस रणनीति पर इसीलिए चल रही है, क्योंकि आइएनडीआइए के कई घटक यह चाह रहे हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव कम से कम सीटों पर लड़े। कुछ घटक तो यह सुझाव दे चुके हैं कि कांग्रेस को उन दो-ढाई सौ सीटों पर ही चुनाव लड़ना चाहिए, जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला है । इसी तरह कुछ घटक ऐसे भी हैं, जो लोकसभा चुनाव में अपने प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस को कोई रियायत देने को तैयार नहीं। चूंकि कांग्रेस और आइएनडीआइए के घटक एक-दूसरे को कम करके आंक रहे हैं इसीलिए इस गठबंधन की मुंबई बैठक के बाद समन्वय की दिशा में आगे बढ़ने के स्थान पर एक तरह का गतिरोध दिख रहा है। न तो साझा रैलियों के प्रस्ताव पर कोई बात बनी और न ही सीटों के बंटवारे की दिशा में कोई पहल हुई । गठबंधन का कोई संयोजक भी तय नहीं हो सका ।
 
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आइएनडीआइए के घटकों में किसी तालमेल के आसार इसलिए नहीं, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से कोई बात किए बिना मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने प्रत्याशी उतार दिए। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में इसे लेकर भी कोई समझबूझ कायम होती नहीं दिखती कि दिल्ली और पंजाब में कौन कितनी सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगा ? आइएनडीआइए के घटक दल भले ही कांग्रेस पर यह आरोप मढ़ें कि वह विधानसभा चुनावों में उन्हें कोई महत्व नहीं दे रही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, वहां इन घटक दलों का कोई ठोस राजनीतिक आधार नहीं । वे कांग्रेस पर गठबंधन धर्म का पालन न करने का आरोप लगाकर उस पर दबाव बनाने का ही काम कर रहे हैं। शायद कांग्रेस यह समझ रही और इसी कारण वह घटक दल के नेताओं बयानों की खास परवाह नहीं कर रही है। कांग्रेस के रवैये से यह साफ है कि उसे घटक दलों का यह सुझाव रास नहीं आ रहा कि उसे लोकसभा चुनाव दो-ढाई सौ सीटों पर ही लड़ना चाहिए । इसीलिए वह विधानसभा चुनावों में घटक दलों से कोई तालमेल करने को तैयार नहीं । यदि कांग्रेस विधानसभा चुनावों में घटक दलों से तालमेल करती तो अपनी बची-खुची राजनीतिक जमीन गंवाने का ही काम करती । उसका जनाधार इसीलिए सिकुड़ा है, क्योंकि वह क्षेत्रीय दलों का सहयोग हासिल करने के फेर में अपनी राजनीतिक जमीन उनके हवाले करती गई आज कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में कहीं अधिक कमजोर है तो इसीलिए कि इन राज्यों में असर रखने वाले दलों ने उसके साथ खड़े होने के बहाने उसकी राजनीतिक जमीन पर कब्जा कर लिया। आ आदमी पार्टी को छोड़कर आइएनडीआइए अन्य घटकों को यह समझना होगा कि उनका प्रभाव केवल उनके अपने राज्यों तक ही सीमित है। कांग्रेस कितनी भी कमजोर हो गई हो, वह एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है, जिसकी जड़ें देश भर में हैं ।
 
यह ठीक है कि आइएनडीआइए अपने-अपने राज्यों में कहीं अधिक सशक्त हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वे कांग्रेस की बराबरी नहीं कर सकते। आइएनडीआइए का संयोजक जो भी बने, इस गठबंधन की अगुआई कांग्रेस ही कर सकती है। आइएनडीआइए को मजबूती तभी मिलेगी, जब आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अधिक से अधिक सीटें मिलेंगी। यदि कांग्रेस और आइएनडीआइए के घटक यह चाहते हैं कि वे लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करते हुए दिखें तो उन्हें एक- दूसरे पर अविश्वास जताने के बजाय समन्वय की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। यह विचित्र है कि आइएनडीआइए अभी तक यह तय नहीं कर सका है कि वह किन मुद्दों पर भाजपा के नेतृत्व वाले राजग का मुकाबला करेगा। वह कोई वैकल्पिक एजेंडा देने के स्थान पर यह कहने में लगा हुआ है कि मोदी को हटाना है। इस घिसे-पिटे नारे से बात बनने वाली नहीं ।