सियासी होड़ में धूल चाटती परंपराएं

राज्यपाल, जिन्हें संविधान का रक्षक माना जाता है और मुख्यमंत्री, जो कार्यपालिका का संचालन करते हैं, दोनों के बीच चल रही लड़ाई भी जल्लीकट्टू से कुछ कम नहीं है।

Pratahkal    18-Jan-2023
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R N Ravi - CM MK Stalin
 
एस. श्रीनिवासन : रविवार सुबह जब दुनिया भर के तमिल पोंगल महोत्सव (Tamil Pongal Mahotsav) में मशगूल थे, तब मंदिरों के शहर मदुरै के अवनीपुरम अखाड़े में सांडों को खुला छोड़ दिया गया, चमकदार सींगों और फड़कते नथुनों वाले दौड़ते गुस्सैल सांडों या बैलों को वश में करने के लिए युवा भी खतरनाक ढंग से उनके पीछे दौड़ने लगे। ध्यान रहे, 2017 के आंदोलन के बाद जल्लीकट्टू को पूरे देश में तमिल गौरव और संस्कृति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इसे वीरता का खेल कहा जाता है। यह खेल कभी- कभी हिंसक भी हो जाता है, हर साल एकाधिक लोग जान गंवाते हैं और सैंकड़ों घायल हो जाते हैं। घायलों में तमाशबीन और राहगीर भी शामिल रहते हैं।
 
वैसे यह स्तंभ जल्लीकट्टू (Jallikattu) पर केंद्रित नहीं है, बल्कि तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राज्यपाल आर एन रवि (R N Ravi) और मुख्यमंत्री एम के स्टालिन (CM MK Stalin) के बीच चल रही सियासी होड़ पर है। राज्यपाल, जिन्हें संविधान का रक्षक माना जाता है और प्रशासन के मुखिया, मुख्यमंत्री, जो कार्यपालिका का संचालन करते हैं, दोनों के बीच चल रही लड़ाई भी जल्लीकट्टू से कुछ कम नहीं है।
 
पिछले सप्ताह तमिलनाडु में सदन के फर्श पर भले ही लहू न गिरा हो, पर सुस्थापित संसदीय परंपराओं और रिवाजों को रौंद दिया गया। विधानसभा के बाहर तो और भी भद्दे झगड़े हुए हैं, जहां दोनों पक्षों ने परस्पर ऐसे ताबड़तोड़ हमले बोले कि बुरी स्थिति बन गई। 9 जनवरी को राज्य विधानसभा (Assembly) के उद्घाटन सत्र के पहले दिन हंगामा तब शुरू हुआ, जब राज्यपाल रवि ने पारंपरिक अभिभाषण पढ़ना शुरू किया। द्रमुक के विधायक पिछले सप्ताह एक समारोह में तमिलनाडु का नाम बदलकर तमिजाझम करने के राज्यपाल के सुझाव से नाखुश थे, उन्होंने राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान नारे लगाए। उन्होंने महसूस किया कि राज्यपाल केंद्र की ओर से राजनीति करते हुए हदें पार कर रहे हैं।
 
राज्यपाल अंग्रेजी में पहले से लिखित भाषण पढ़ रहे थे। मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने गौर से सुनने पर उनके कथन और लिखित भाषण में अंतर पाया। राज्यपाल ने न सिर्फ कुछ पैराग्राफ छोड़ दिए थे, बल्कि कुछ ऐसी चीजें भी जोड़ दी थीं, जो भाजपा (BJP) और केंद्र सरकार (Central Government) के साथ जुड़ी थीं।
 
मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों ने चर्चा करके एक योजना बनाई, जिसे उन्होंने तब क्रियान्वित किया, जब अभिभाषण का तमिल संस्करण राज्यपाल की ओर से विधानसभा अध्यक्ष पढ़ रहे थे। मुख्यमंत्री ने जल्दी ही एक प्रस्ताव तैयार किया, जिसमें मूल भाषण को बिना किसी बदलाव के बनाए रखने की मांग की गई। जब अध्यक्ष तमिल संस्करण पढ़ने के बाद बैठे, तब मुख्यमंत्री ने अपने प्रस्ताव को तत्काल आगे बढ़ा दिया। सामान्य हालात में राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद राष्ट्रगान होता है और उस दिन की कार्यवाही स्थगित हो जाती है। मूल लिखित भाषण को बहाल करने वाले प्रस्ताव को पढ़ना मुख्यमंत्री के लिए असामान्य था । कैसा अभूतपूर्व समय था, जब कार्यवाही औपचारिक रूप से संपन्न घोषित नहीं की गई थी और राज्यपाल ने बहिर्गमन कर दिया !
 
बेशक, उच्च संस्थानों की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रोटोकॉल और नियम-कायदे तैयार किए जाते हैं। उम्मीद की जाती है कि जो लोग इन ऊंचे संस्थानों में पहुंचेंगे, वे विपरीत हालात का सामना करने में पर्याप्त सूझ-बूझ दिखाएंगे और संयम बरतेंगे। साफ तौर पर उस दिन ऐसा नहीं हुआ। राज्यपाल को जब पता चला कि उनके द्वारा बदले गए अंशों को विधानसभा के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है, तो वह सदन से बाहर निकल गए। वैसे, संविधान में ऐसा कुछ नहीं है, जो राज्यपाल को जो कुछ भी दिया गया है, उसे पढ़ने के लिए बाध्य करता हो। यह मात्र संसदीय परंपरा रही है कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित भाषण ही पढ़ते हैं। पहले भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, पर पहले किसी भी राज्यपाल ने बहिर्गमन नहीं किया था।
 
यह विवाद तब और गहरा गया, जब घटना के तुरंत बाद राजभवन से सूचना लीक हो गई, जिसमें दावा किया गया कि सरकार द्वारा भेजे गए लिखित भाषण को राज्यपाल का अनुमोदन नहीं है। दावा किया गया कि राज्यपाल ने भाषण में बदलाव के सुझाव दिए थे, पर तब तक राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित अभिभाषण ही छपाई के लिए चला गया था, पाठ में संशोधन के लिहाज से बहुत देर हो चुकी थी ।
 
वास्तव में, राजभवन से आई प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा किए गए दावों का जवाब थी। राज्यपाल को 5 जनवरी को एक मसौदा भाषण भेजा गया था और उन्होंने बिना बदलाव 7 तारीख को उसे मंजूरी दी थी । द्रमुक नेताओं ने आश्चर्य जताया जब राज्यपाल के पास भाषण भेजा गया तब उन्होंने कोई संशोधन क्यों नहीं किया? यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि राज्यपाल किन अंशों को पढ़ने से बचना चाहते थे। अभिभाषण में दावा किया गया था कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति अच्छी है, कोविड से जुड़े हालात को अच्छी तरह संभाला गया है, राज्य को रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला है और द्रविड़ मॉडल राज्य में विकास के लिए जिम्मेदार है। इससे भी अहम बात यह है कि राज्यपाल ने उन पंक्तियों को भी नहीं पढ़ा, जिनमें राज्य की प्रगति के लिए आंबेडकर, पेरियार और अन्नादुराई के योगदान को स्वीकारा गया
था।
 
अधिकांश मामलों में राज्यपाल राज्य सरकार से असहमत थे। राज्यपाल का मत था कि कोविड को केंद्र सरकार के सहयोग से संभाला गया और अन्य राज्यों को अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला। वैसे इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि आदर्श राजनीतिक हस्तियों के नाम क्यों हटाए गए ? वैसे, राज्यपाल ने 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती (Vivekananda Jayanti) की याद दिलाने वाला वाक्य अपनी ओर से पेश किया। इस घमासान में एक पहलू खो गया और वह है शासन राज्यपाल ने 22 विधेयकों को मंजूरी नहीं दी है। द्रमुक पहले राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग कर रही थी, लेकिन अब बर्खास्तगी की मांग कर रही है। इस मामले के जल्द पटाक्षेप की संभावना नहीं है।
 
अब आखिर राज्यपाल को क्या हासिल है? वस्तुतः परोक्ष रूप से भाजपा को एक ऐसी ताकत के रूप में पेश किया जा रहा है, जो अन्नाद्रमुक को दरकिनार करते हुए द्रमुक शासन की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है। विधानसभा में चार विधायकों वाली भाजपा राज्य की राजनीति में पैर जमाने को जूझ रही है। उसे लगता है कि राज्य में उसका आधार बढ़ रहा है।