अंध विरोध का उदाहरण

Pratahkal    17-Jan-2023
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Remote EVM
 
राजनीतिक दल किस तरह ईवीएम (EVM) पर निशाना साधने और अपनी विफलताओं का ठीकरा उस पर फोड़ने के लिए उतावले रहते हैं, इसका ताजा उदाहरण है बसपा प्रमुख मायावती (BSP Chief Mayawati) की यह मांग की हर चुनाव इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machine) के स्थान पर मत पत्र से कराए जाएं। उन्होंने यह मांग एक ऐसे समय की, जब चुनाव आयोग ने रिमोट इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से मतदान का परीक्षण किया। रिमोट ईवीएम (Remote EVM) के उपयोग की पहल चुनाव सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इसके माध्यम से प्रवासी भारतीय मतदाताओं को वोट देने में समर्थ बनाया जा सकेगा। इससे उन करोड़ों मतदाताओं की चुनाव में सहभागिता हो सकेगी, जो नौकरी, व्यापार, शिक्षा एवं अन्य कारणों से अपने घर से दूर रहने के कारण चाहकर भी मतदान में हिस्सा नहीं ले पाते। यह विडंबना ही है कि जब रिमोट ईवीएम की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए, तब उसके विरोध में स्वर उठ रहे हैं। कांग्रेस (Congress) समेत 16 दलों ने जिस तरह रिमोट ईवीएम के प्रायोगिक परीक्षण का विरोध किया, वह अंध विरोध की राजनीति का एक और शर्मनाक उदाहरण ही है । क्या यह हास्यास्पद नहीं कि रिमोट ईवीएम के परीक्षण और उसके प्रायोगिक उपयोग के परिणाम सामने आने के पहले ही उसका विरोध करने के लिए कमर कसी जा रही है ? इसी के साथ ईवीएम के विरोध को भी नए सिरे से धार दी जा रही है। मायावती का बयान इसी की पुष्टि करता है। मायावती ने जनता की आड़ लेते हुए यह कहा कि उसके मन में ईवीएम को लेकर तरह- तरह की आशंकाएं व्याप्त हैं। यह निरा झूठ ही नहीं, जनता को बरगलाने की कोशिश भी है। इस तरह की कोशिश पहले भी हुई है, लेकिन जनता के स्तर पर ईवीएम को लेकर कोई संदेह नहीं जताया गया। आम तौर पर वही राजनीतिक दल ईवीएम को लेकर जनता को बरगलाने की कोशिश करते हैं, जो चुनाव में पराजित हो जाते हैं या फिर जिन्हें पराजय मिलने की आशंका होती है। यह किसी से छिपा नहीं कि पिछले कुछ विधानसभा और लोकसभा चुनावों (Assembly and Lok Sabha Elections) में बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 2014 के आम चुनाव में उसे लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली थी। इसके विपरीत जब वह 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ी तो उसे 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। बसपा प्रमुख को यह ध्यान होना चाहिए कि ये चुनाव ईवीएम के जरिये ही कराए गए थे। कम से कम उन्हें यह तो अच्छे से स्मरण ही होगा कि 2007 के जिन विधानसभा चुनाव में बसपा को अपने बलबूते बहुमत मिला था, वे भी ईवीएम से हुए थे । ईवीएम का विरोध करने वाले दल जिस तरह बिना कुछ जाने - बूझे रिमोट ईवीएम के भी खिलाफ खड़े होते दिख रहे हैं, उस पर हैरान ही हुआ जा सकता है।