जोशीमठ की त्रासदी के सबक

भले ही सरकारें यह दावा करें कि पर्वतीय क्षेत्रों के निर्माण कार्यों में मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है।

Pratahkal    16-Jan-2023
Total Views |
 
 
Joshimath
 
संजय गुप्त : उत्तराखंड (Uttarakhand) के जोशीमठ (Joshimath) में भूमि दरकने के कारण वहां कई घरों, होटलों और अन्य भवनों को जिस तरह खाली कराना पड़ा, वह आघातकारी है। जोशीमठ बदरीनाथ और केदारनाथ (Badrinath, Kedarnath) का प्रवेश द्वार और देशवासियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ है। उसका अपना एक पौराणिक महत्व है। इसके अतिरिक्त सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण वहां सेना की भी उपस्थिति है। वहां जो आपदा आई, वह किसी वीरान क्षेत्र में आई आपदा से कहीं गंभीर है और इसीलिए राज्य सरकार चिंतित हैं । जोशीमठ की आपदा केंद्र सरकार (Central Government) के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि एक तो उत्तराखंड में भाजपा की ही सरकार है और दूसरे केंद्र सरकार ने पिछले आठ वर्षों में राज्य में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए कई परियोजनाएं शुरू की हैं। इनमें चार धाम परियोजना भी है। जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं पर यह कहा गया कि पास से गुजरते हए हाइवे के निर्माण और एनटीपीसी की परियोजना के कारण यहां की जमीन खिसक रही है। इसके बाद कई विशेषज्ञों ने बताया कि इस निर्माण के कारण जमीन नहीं दरक रही है, लेकिन इतनी जल्दी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि जोशीमठ और उसके आसपास हर तरह के निर्माण को ठप नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक तो यह तीर्थस्थल है और दूसरे चीनी सीमा भी अधिक दूर नहीं। ऐसे में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो भी निर्माण हो, वह मानकों को ध्यान में रखते हुए हो ।
 
ब्रिटिश काल से ही लोग इस तथ्य से अवगत है कि जोशीमठ की बसाहट ऐसी जगह पर है, जो एक ग्लेशियर के पिघलने से निकले मलबे के रूप में है । यह भूगर्भीय दृष्टि से एक नाजुक जगह है। ऐसी जगह पर किए जाने वाले निर्माण कार्यों के प्रति सावधानी बरती जानी चाहिए थी । एक समय ऐसा होता था । ऐसी जगहों पर लकड़ी के घर होते थे और आबादी भी कम होती थी, लेकिन धीरे-धीरे कंक्रीट के घर बनने लगे। जैसे-जैसे इन क्षेत्रों की आबादी और तीर्थाटन के साथ पर्यटन बढ़ा, वैसे-वैसे घरों के साथ होटलों का निर्माण भी तेज हुआ। ऐसा उत्तराखंड के साथ हिमाचल (Himachal) में भी हुआ। अधिकांश निर्माण न तो वैज्ञानिक ढंग से हुआ और न ही यह ध्यान में रखते हुए कि यह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। देश का एक बड़ा हिस्सा सेस्मिक जोन 5 में आता है, जो भूकंप की दृषिट से सबसे अधिक संवेदनशील है। इसमें उत्तराखंड का भी एक हिस्सा है। इसे ध्यान में रखते हुए वहां निर्माण कार्यों को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरती जानी चाहिए थी । दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया गया । इसका दुष्परिणाम सबके सामने है।
 
ऐसा नहीं है कि पर्वतीय क्षेत्रों में किए जाने वाले अंधाधुंध निर्माण को लेकर पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों की ओर से समय-समय पर चेताया न गया हो, लेकिन उस पर मुश्किल से ही ध्यान दिया गया भले ही सरकारें यह दावा करें कि पर्वतीय क्षेत्रों (Mountainous Terrain में जो निर्माण कार्य हो रहे हैं, उनमें उचित मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है । पर्वतीय क्षेत्रों की प्राकृतिक संपदा का दोहन तो किया ही गया, वहां से निकलने वाली नदियों से भी छेड़छाड़ की गई। आज इसी छेड़छाड़ की कीमत चुकानी पड़ रही है अब यह सामने आ रहा है कि जोशीमठ में जमीन दरकने का सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है। प्रश्न यह है कि क्या वहां और आसपास आधारभूत ढांचे का निर्माण कराने वाले ठेकेदारों को इंजीनियरिंग की दृष्टि से आवशयक मानकों का सही तरह पालन करने को कहा गया सच यह है कि ऐसा नहीं किया गया और बढ़ते तीर्थाटन का लाभ लेने के लिए उत्तराखंड के लोग भी घरों और होटलों का निर्माण कराते रहे। इस निर्माण में सिविल इंजीनियरिंग के तमाम मानकों की अवहेलना हुई। इसके बुरे नतीजे सामने आने ही थे।
 
उत्तराखंड कोई अकेला राज्य नहीं है, जहां पर घरों और अन्य भवनों के निर्माण में सिविल इंजीनियरिंग के मानकों की धज्जियां उड़ाई गई हों। उत्तराखंड जैसी ही कहानी हिमाचल की भी है और यह किसी से छिपा नहीं कि वहां भी जमीन दरकने के साथ भूस्खलन की घटनाएं सामने आती रहती हैं। बात केवल पर्वतीय क्षेत्रों में जमीनी स्थिति की अनदेखी करके किए जाने वाले निर्माण की नहीं है । ऐसी ही अनदेखी मैदानी इलाकों में भी होती है। इनमें वे इलाके भी हैं, जो भूकंप (Earthquake) की दृष्टि से संवेदनशील (Sensitive) माने जाने वाले सेस्मिक जोन-4 में आते हैं। इनमें देश की राजधानी दिल्ली और आसपास का एक बड़ा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में भी निर्माण की गुणवत्ता सही नहीं और बड़े भूकंप आने पर यहां तबाही मच सकती है। आखिर क्या कारण है कि केंद्र और राज्य सरकारें नाजुक भौगोलिक स्थिति के बाद भी उपयुक्त निर्माण कार्यों के लिए न तो जनता को प्रेरित कर पाईं और न ही इंजीनियरों और ठेकेदारों को ।
 
भारत (India) एक विकासशील देश है और आबादी के मामले में वह विश्व का सबसे बड़ा देश बनने जा रहा है। यहां अभी भी अधिकतर लोग गरीब या निम्न मध्यम वर्ग के हैं। चूंकि देश लगातार प्रगति कर रहा है, इसलिए एक बड़ी आबादी आने वाले कुछ दशकों में अपने लिए घरों का निर्माण कराने में सक्षम होगी। सरकार भी लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रही है कि वे अपना घर बनाएं। स्पष्ट है कि आने वाले समय में पर्वतीय क्षेत्रों के साथ मैदानी इलाकों में और अधिक घरों का निर्माण होगा। इसी के साथ आधारभूत ढांचे का विकास भी तेज होगा। इन घरों के साथ आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए जिस गुणवत्ता की आवश्यकता है, यदि उसकी पूर्ति नहीं की गई तो गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं और जोशीमठ सरीखी आपदाएं सामने आ सकती हैं।
 
उचित यह होगा कि सरकारें हर तरह के निर्माण कार्य की गुणवत्ता जांचने के लिए किसी समिति का गठन करने के साथ यह सुनिश्चित करें कि उसकी ओर से तय किए गए मानकों पर वास्तव में अमल भी हो । यह अमल तब होगा, जब इंजीनियरों के साथ ठेकेदारों को जवाबदेह बनाया जाएगा और उनकी ओर से कराए जाने वाले निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की प्रभावी ढंग से निगरानी भी की जाएगी।