हरेंद्र प्रताप : हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में कोलकाता (Kolkata) में राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council) की दूसरी बैठक हुई। प्रधानमंत्री राष्ट्रय गंगा परिषद के अध्यक्ष हैं तो बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रतिनिधि इसके सदस्य होते हैं। इन राज्यों के मुख्यमंत्री ही इसकी बैठक में हिस्सा लेते हैं। बैठक में अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री तो मौजूद रहे, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने स्वयं भाग न लेकर अपनी जगह उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Deputy CM Tejashwi Yadav) को भेजा। इसी तरह का एक और वाकया देखिए । कुछ समय पहले कोलकाता में ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा पर 'पूर्वी क्षेत्रीय विकास परिषद' की एक बैठक हुई। इसमें सीमा पार यानी बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ और तस्करी आदि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई। बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री के अलावा बंगाल और झारखंड के मुख्यमंत्री तो शामिल हुए, पर ओडिशा और बिहार के मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए। जबकि बिहार इन दिनों जिहादी आतंकवाद (jihadi terrorism) शरणस्थली बना हुआ है। देश को पांच क्षेत्रों - उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिम और दक्षिण में विभाजित किया गया है।
दरअसल अंग्रेजी शासन के तहत बिहार, बंगाल, ओडिशा और झारखंड एक ही प्रांत थे। इसे ही 'पूर्वी भारत' भी कहा जाता है। चारों प्रांतों की सीमाएं अनेक जगहों पर आपस में मिलती हैं। बंगाल और बिहार ही पूर्वोत्तर के आठों प्रांतों को भारत से जोड़ते हैं। अतः सामरिक दृष्टि से इनका अपना एक विशेष महत्व है। बांग्लादेश (Bangladesh) की आधी यानी लगभग 2,200 किलोमीटर की सीमा बंगाल से सटी हुई है। बांग्ला भाषा के कारण भारतीय और बांग्लादेशी के बीच फर्क कर पाना कठिन होता है। इसका फायदा उठाकर बांग्लादेश से घुसपैठिए, आतंकी और तस्कर (terrorists and smugglers) भारत में प्रवेश करते रहे हैं। 1979 में असम के मंगलदोई संसदीय सीट पर पुनर्मतदान के समय मात्र एक वर्ष में ही लगभग 47,000 मुस्लिम (Muslim) मतदाताओं की वृद्धि ने बांग्लादेश से हो रही इस घुसपैठ के प्रति देश का ध्यान खींचा। मुस्लिम घुसपैठ के कारण असम में चले आंदोलन और फिर केंद्र सरकार एवं असम आंदोलनकारियों के बीच 1985 में हुए समझौते के बाद यह मुद्दा न केवल असम, बल्कि राष्ट्र का मुद्दा बन गया । अतः भारत में हो रही इस घुसपैठ को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी शुरू हुई, पर सीमा की प्राकृतिक बनावट और भाषाई अनुकूलता का फायदा उठाकर घुसपैठिए बिना किसी भय के भारत में लगातार आते रहे। आज भी बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा घुसपैठियों का प्रवेश द्वार बने हुए हैं। सेक्युलर राजनीति इन्हें संरक्षण प्रदान कर रही है।
यह घुसपैठ (Infiltration) देश की आबादी के स्वरूप को किस कदर बिगाड़ रही है, इसकी एक बानगी देखिए। 1961 से 2011 यानी विगत पांच दशकों में देश में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर 125.78 प्रतिशत तथा मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 194.38 प्रतिशत रही और देश की कुल जनसंख्या में औसतन मुस्लिम आबादी 3.54 प्रतिशत बढ़ी। वहीं इस दौरान असम में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 286.16 प्रतिशत रही तथा मुस्लिम आबादी 10.93 प्रतिशत बढ़ी। बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 252.95 प्रतिशत रही और मुस्लिम आबादी 7.01 प्रतिशत बढ़ी। ओडिशा में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर 129.51 प्रतिशत तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 323.40 प्रतिशत रही। झारखंड में भी हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर 142.21 तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 340.35 प्रतिशत रही। झारखंड के संताल परगना के साहिबगंज में 14.7 प्रतिशत तो पाकुड़ जिले में मुस्लिम जनसंख्या में 13.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई बिहार के किशनगंज प्रखंड में मुस्लिम आबादी 14.19 प्रतिशत तथा कटिहार के बारसोई प्रखंड में 16.33 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी।
बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ के कारण बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तरी दिनाजपुर जिले तो मुस्लिम बहुल हो गए हैं। बिहार का किशनगंज जिला भी मुस्लिम बहुल हो गया है और निकट भविष्य में कटिहार तथा अररिया भी मुस्लिम बहुल हो जाएंगे। पूर्वोत्तर जाने वाली ट्रेनें झारखंड के साहिबगंज और बिहार के कटिहार और किशनगंज जिले से होकर ही गुजरती हैं जिहादी ताकतें बिहार के अररिया किशनगंज और कटिहार, झारखंड के साहिबगंज और पाकुड़ तथा बंगाल के मुर्शिदाबाद - मालदा और उत्तरी दिनाजपुर जिले को भारत से काटने की एक दीर्घकालिक योजना पर कार्यरत हैं। वैसे सीमाओं की रक्षा के लिए देश में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का गठन हुआ है। इसके साथ अगर राज्य प्रशासन का समन्वय नहीं रहेगा तो देश में घुसपैठ -तस्करी- आतंकवाद पर नियंत्रण पाना असंभव हो जाएगा ।
दुख की बात तो यह है कि बंगाल और बिहार के मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से न केवल बांग्लादेशी घुसपैठ को नकारते रहे हैं, बल्कि 'राष्ट्रीय नागरिक पंजी' यानी एनआरसी बनाने का भी विरोध करते रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग भी है । अतः केंद्रीय गृहमंत्री की बैठक में अपेक्षा थी कि वह स्वयं जाते । इसी तरह राष्ट्रीय गंगा परिषद का भी अपना एक अलग महत्व है। मोक्षदायिनी मां गंगा को स्वच्छ, निर्मल और अविरल बनाना प्रधानमंत्री का सपना है। गंगा बिहार होते हुए बंगाल में प्रवेश करती हैं। स्वच्छ और निर्मल गंगा अभियान का ही परिणाम है कि आज गंगा जल को पाइप के द्वारा ऐतिहासिक-धार्मिक स्थल गया तक पहुंचाने में सफलता मिली है। अगर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री पूर्वी भारत को प्राथमिकता देते हुए एक माह में कोलकाता में दो बैठकें आयोजित करते हैं तो नीतीश कुमार को अहम और पूर्वाग्रह को छोड़कर इस बैठक में भाग लेना चाहिए था ।